#धर्म
January 26, 2025
हिमाचल का एक ऐसा मंदिर : जिसे कहते हैं देवी-देवताओं का सुप्रीम कोर्ट
इस स्थान पर शक्तियां लेने आते हैं देवी-देवता
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कुल्लू। देवभूमि कहलाए जाने वाला हिमाचल प्रदेश अपने धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व के लिए विश्व प्रसिद्ध है। यहां के पहाड़ों में बसे देवी-देवताओं के अनगिनत मंदिर ना केवल आध्यात्मिकता का केंद्र हैं, बल्कि यह स्थान लोगों की गहरी आस्था और भक्ति का प्रतीक भी हैं। हिमाचल की यह आध्यात्मिक विरासत इसे विशेष बनाती है।
हिमाचल में स्थित हर एक मंदिर की अपनी अलग मान्यता और पौराणिक कथा है- जो श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करती है। हिमाचल के मंदिर ना केवल पूजा और प्रार्थना के लिए महत्वपूर्ण हैं- बल्कि यह आध्यात्मिक शांति और मानसिक सुकून का अनुभव भी कराते हैं।
स्थानीय लोग देवी-देवताओं को अपना संरक्षक मानते हैं। हर त्योहार और शुभ कार्य मंदिरों में पूजा-अर्चना के बिना अधूरा समझा जाता है। इन मंदिरों में ना केवल स्थानीय बल्कि देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालु भी अपनी आस्था और भक्ति प्रकट करने आते हैं।
आज के अपने इस लेख में हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताएंगे- जिसे देवी-देवताओं का सुप्रीम कोर्ट कहा जाता है। इसी मंदिर में देवी-देवताओं की संसद लगती है और यहां से आए देव आदेश के आगे सरकार भी झुक जाती है। हम बात कर रहे हैं कुल्लू जिला में मौजूद जगती पट मंदिर की। जगती पट में जगती का अर्थ है न्याय और पट का अर्थ है मूर्ति।
कुल्लू के नग्गर कैसल में मौजूद इस मंदिर में एक शिला को पूजा जाता है। जिसे संसार के सभी देवता मधुमक्खी का रूप धारण कर भृगु तुंग पहाड़ी के पास मौजूद बांहग गांव से नग्गर लाए थे।
लोग बताते हैं कि जब एक अंग्रेज अधिकारी ने इस शिला पर अपना पैर रख दिया था- तो ये शिला खंडित हो गई। मगर अंग्रेज अधिकारी की भी जान चली गई थी। तभी से इस शिला की शक्ति समझ आने पर मंदिर में आम लोगों की एंट्री को बंद कर दिया गया।
मान्यता के अनुसार, जब भी किसी देवी-देवता को अत्याधिक शक्तियों की जरूरत पड़ती है। तब वे देवी-देवताओं का सिंहासन कहे जाने वाले इस स्थान पर शक्तियां लेने पहुंचते हैं।
साथ ही इसी स्थान पर देवी-देवताओं की धर्म संसद यानी जगती भी बुलाई जाती है- जिसमें निमंत्रण यानी छन्दा भेजने पर सभी देवी-देवताओं के प्रतिनिधि यहां आते हैं। इस प्रक्रिया में देवी-देवताओं के आदेश गुर के माध्यम से सुने जाते हैं।
इस दिन भगवान रघुनाथ के छड़ीबरदर महेश्वर सिंह भगवान कि पूजा करने के बाद जगती में शामिल होने वाले सभी देवताओं के गुर के आगे पूछ डालते हैं। पूछ के जरिए सभी गुर अपने देव वचन सुनाते हैं फिर देवताओं की संयुक्त विचार के बाद एक निर्णय सुनाया जाता है। जिसे सभी देवी-देवता भी मानते हैं और हमारी सरकारें भी।