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April 4, 2025

हिमाचल के वो देवता साहिब- जो सतयुग से लेकर आज तक कर रहे हैं तपस्या

हर मुश्किल में रहते हैं अपने भक्तों के संग 

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Devta Sahib Harsang ji

शिमला। देवभूमि हिमाचल के लोग देवी-देवताओं को अपने जीवन का अभिन्न अंग मानते हैं। यहां हर गांव का अपना स्थानीय देवता या देवी होती है। इन देवताओं की अपनी मान्यताएं और परंपराएं होती हैं। लोग अपने देवताओं को परिवार के सदस्य की तरह मानते हैं और उनके आदेशों का पालन करते हैं।

देवी-देवताओं की राय

देवता केवल पूजा तक सीमित नहीं रहते, बल्कि गांव की हर सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधि में उनकी उपस्थिति अनिवार्य मानी जाती है। किसी भी शुभ कार्य, त्योहार या महत्वपूर्ण निर्णय लेने से पहले देवी-देवताओं की राय ली जाती है।

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सतयुग से आज तक कर रहे तपस्या

आज के अपने इस लेख में हम आपको हमारे हिमाचल के एक ऐसे देवता साहिब के बारे में बताएंगे- जो सतयुग से लेकर आज तक तपस्या कर रहे हैं। इसलिए इनके आगे रक्षक बनकर मां भीमकाली चलती हैं और ये किसी भी सीमा को लांघ सकते हैं।

 

हर मुशिकल में रहते हैं भक्तों के साथ इन देवता महाराज की आस्था चार रियसतों तक फैली हुई है और ये आज भी 18 तरह की बीमारियां हर लेते हैं। हम बात कर रहे हैं सोलन के हरसंग धार में विराजित सतयुगी ऋषि देवता साहब हरसंग जी की- जो हर मुश्किल में अपने भक्तों के संग रहते हैं।

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नहीं स्वीकार की अधीनता

देवता हरसंग जी भगवान शिव जी के अंश हैं, जिस कारण से उन्होंने कभी भी किसी राजा की अधीनता स्वीकार नहीं की- ऐसे में जब एक बार धामी के राजा ने  देवता जी को अपने अधीन लेने की कोशिश की, तो उसे ऐसा देव दोष लगा कि- हर बार देवता जी या उनके साथ में रहने वाली शक्तियों की प्रोड़ खुलने पर राजा के घोड़े की मौत हो जाती है।

 

प्रोड में मौजूद हैं निशान

वहीं, देवता साहिब के प्रोड को हमेशा से ही सुबह 4 बजे ही खोल जाता रहा है- ऐसे में जब एक बार प्रोड खोलने में देर हुई तो एक बाघ ने यहां आकर खुद ही इसे खोल दिया- जिसके निशान आज भी प्रोड पर मौजूद हैं।

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बताते हैं कि साल 1980 तक देवता साहब रोज सुबह आकाशवाणी की जरिए पूरे दिन की भविष्यवाणी करते थे- जिसे सुनने के लिए लोग 4 बजे ही अपने घर का दरवाजा खोल लेते थे।

तीन बार गिरा चुके हैं बिजली

वहीं, बिझी बदली करने वाले ये देव अपने मंदिर पर भी तीन बार बिजली गिरा चुके हैं। वहीं, एक बार देवता जी ने भक्तों की विनती पर ओला वृष्टि को रुकवा दिया था। जिसके बाद से आज तक देवता जी के नाम पर 'चंडी की जातर' मेला लगता है।

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