#राजनीति
December 22, 2025
चंदा मांगकर बुरी फंसी सुक्खू सरकार : विरोध बढ़ने के बाद पलटा फैसला, रविवार के दिन ही ऑर्डर जारी
किरकिरी के बाद सुक्खू सरकार ने वापस लिया फैसला
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शिमला। हिमाचल प्रदेश में गहराते आर्थिक संकट के बीच सुक्खू सरकार द्वारा प्रस्तावित कांगड़ा वैली कार्निवाल अब सियासी विवाद का केंद्र बन गया है। सरकार की मंशा 24 से 31 दिसंबर तक कांगड़ा में भव्य आयोजन की थी।
इस आयोजन के लिए अपनाए गए तरीके ने प्रशासन और सरकार दोनों को कटघरे में ला खड़ा किया। बाकायदा 17 दिसंबर को जारी आदेश को अब सुक्खू सरकार द्वारा रविवार को वापस ले लिया गया है।
दरअसल, 17 दिसंबर को जिला नियंत्रक, खाद्य, नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता मामले कांगड़ा पुरुषोतम शर्मा की ओर से एक आदेश जारी किया गया था। इस आदेश में जिले के पेट्रोल पंप संचालकों, गैस एजेंसियों, ईंट भट्टा मालिकों,HPTL लाइसेंस धारकों, चावल व आटा मिल संचालकों से कांगड़ा वैली कार्निवाल के लिए आर्थिक योगदान देने का अनुरोध किया गया था।
आर्थिक तंगी से जूझ रहे प्रदेश में इस आदेश को ‘चंदा उगाही’ करार दिया गया और देखते ही देखते मामला राजनीतिक तूफान में बदल गया। विवाद तब और बढ़ गया जब भाजपा विधायक सुधीर शर्मा ने एक स्क्रीनशॉट सार्वजनिक किया।
इसमें स्पष्ट लिखा था कि सभी पंचायत सचिव 20 दिसंबर को अपने-अपने विकास खंड कार्यालय से कार्निवाल की पर्चियां लें और प्रत्येक पंचायत से 10 हजार रुपये 23 दिसंबर तक कार्यालय में जमा करवाना सुनिश्चित करें। इस संदेश के सामने आने के बाद विपक्ष ने इसे सीधे तौर पर प्रशासनिक दबाव और जबरन वसूली बताया।
भाजपा विधायक सुधीर शर्मा ने इस आदेश पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए पंचायत प्रतिनिधियों और अधिकारियों से अपील की कि वे इस तरह के किसी भी निर्देश का पालन न करें। उन्होंने कहा कि जिसे कार्निवाल का शौक है, वह इसे अपनी जेब से करे, जनता और पंचायतों पर बोझ डालना पूरी तरह गलत है।
सुधीर शर्मा ने बाद में आदेश वापसी पर तंज कसते हुए सोशल मीडिया पर लिखा-
“हे प्रभु, हम धन्य हुए। इस याचना को जो स्वीकार किया। हम समझ गए, आप तो आप ही हो।”
लगातार हो रहे विरोध और आलोचना के बाद आखिरकार प्रशासन को कदम पीछे खींचने पड़े। रविवार को जिला नियंत्रक पुरुषोतम शर्मा की ओर से नया पत्र जारी कर पहले के सभी आदेशों को तत्काल प्रभाव से वापस ले लिया गया। नए आदेश में साफ तौर पर कहा गया है कि जिन संचालकों से कांगड़ा वैली कार्निवाल के लिए योगदान देने का अनुरोध किया गया था, वह पत्र अब निरस्त किया जाता है।
इस पूरे घटनाक्रम ने सुक्खू सरकार की प्राथमिकताओं पर सवाल खड़े कर दिए हैं। एक ओर सरकार आर्थिक संकट का हवाला देकर कर्मचारियों और योजनाओं पर कटौती की बात कर रही है, वहीं, दूसरी ओर कार्निवाल जैसे आयोजनों के लिए निजी कारोबारियों और पंचायतों से योगदान मांगने के आरोप लगे। आदेश वापसी के बाद भले ही प्रशासन ने राहत की सांस ली हो, लेकिन विपक्ष इसे सरकार की “गलत मंशा” और जनता के दबाव में झुकने का उदाहरण बता रहा है।
अब देखना यह होगा कि कांगड़ा वैली कार्निवाल किस स्वरूप में आयोजित होता है और सरकार इसके खर्च का प्रबंधन किस तरह करती है। फिलहाल इतना तय है कि इस विवाद ने हिमाचल की राजनीति में साल के अंत में एक नया मुद्दा जरूर जोड़ दिया है, जिसकी गूंज आने वाले दिनों तक सुनाई दे सकती है।