शिमला: हिमाचल प्रदेश में मचे सियासी उथल पुथल के बीच राजधानी शिमला से एक बड़ी खबर निकलकर सामने आ रही है। हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट में अपने इस्तीफे को विधानसभा अध्यक्ष द्वारा ना स्वीकार किए जाने का मुक़दमा लड़ रहे तीन निर्दलीय विधायकों द्वारा चलाया दांव अब उनपर ही उल्टा पड़ता हुआ नजर आ रहा है।
दरअसल, बताया ये जा रहा है कि एक तो अब इस मामले में इन विधायकों को निष्कासन की कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है। वहीं, दूसरी तरफ अगर ये विधायक दल बदल कानून के तहत दोषी पाए जाते हैं, तो आगामी वक्त में इनके चुनाव लड़ने पर भी रोक लग जाएगी।
इस्तीफ़ा स्वीकार होने से पहले ही ज्वाइन कर ली बीजेपी
बतौर रिपोर्ट्स, आज बागवानी व राजस्व मंत्री जगत सिंह नेगी ने विधानसभा में तीनों निर्दलीय विधायकों के खिलाफ एक याचिका दायर की है। जिसमें उन्होंने नियमों का हवाला देते हुए आरोप लगाए हैं कि तीनों विधायकों ने निर्दलीय रूप से चुनाव लड़े थे तथा नियमानुसार अब चुनाव जीत जाने के पश्चात वो किसी भी दल का हिस्सा नहीं हो सकते।
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यदि अब विधायक किसी दल से जुड़ जाते हैं तो उनको सदन कि सदस्यता से हाथ धोना पड़ेगा। याचिका में उन्होंने तीनों विधायकों की सदस्यता रद करने की मांग भी की है। उन्होंने आरोप लगाए कि तीनों विधायक इस्तीफा स्वीकार होने से पहले ही भाजपा में चले गए थे, इसलिए इनपर भी दलबदल कानून के तहत करवाई होनी चाहिए।
क्या कहता है कानून
कानून के मुताबिक यदि कोई नेता चुनाव जितने के बाद पार्टी बदलता है, तो उसपर दल बदल अधिनियम (1985) के अंतर्गत कार्रवाई हो सकती है। जिसमें उसकी विधायकी जाने का खतरा तो रहता ही है। साथ ही उसको चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित भी किया जा सकता है।
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किन्तु इसमें यह बात उल्लेखनीय है कि यदि कोई राजनीतिक दल किसी अन्य दल में विलय करता है, तो उसके सदस्य अपनी सीटें नहीं खोएंगे तथा उनपर किसी तरह ही कार्रवाई नहीं होगी। ऐसे में अब तीनों निर्दलीय विधायकों पर भी भारतीय संविधान के इसी अधिनियम के अंतर्गत कार्रवाई किए जाने की मांग की जा रही है।
कब क्या हुआ, संक्षेप में जानें
देहरा विधायक होशियार सिंह, नालागढ़ विधायक कृष्ण लाल ठाकुर और हमीरपुर सीट से निर्दलीय विधायक चुने गए आशीष शर्मा ने राज्यसभा चुनावों में भाजपा प्रत्याशी हर्ष महाजन को वोट देने के बाद 22 मार्च को विधानसभा अध्यक्ष से मुलाकात कर उन्हें अपना इस्तीफा सौंप दिया था।
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इसके बाद अगले ही दिन यानी कि 23 मार्च को ये तीनों विधायक भाजपा में शामिल हो गए थे। मगर इस मामले में पेंच ये फंसा हुआ है कि विधानसभा अध्यक्ष ने अबतक इन विधायकों का इस्तीफ़ा स्वीकार ही नहीं किया है। इस कारण से अब ये विधायक बिना इस्तीफ़ा स्वीकार हुए बीजेपी ज्वाइन करने के चलते नई मुसीबत से घिरते हुए नजर आ रहे हैं।