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October 16, 2025
हिमाचल हाईकोर्ट ने महिला की लगाई 'क्लास', कहां- रे*प के झूठे आरोप करते हैं अपमानित
करवाचौथ पर सहेली के घर बच्चों के साथ रहने गई थी महिला
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शिमला। हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने एक अहम टिप्पणी करते हुए कहा है कि जहां रेप के मामलों में पीड़िता की गरिमा और सुरक्षा सर्वोपरि है, वहीं आरोपी के भी समान अधिकार हैं जिनकी रक्षा की जानी चाहिए।
अदालत ने कहा कि झूठे आरोप किसी व्यक्ति की सामाजिक प्रतिष्ठा और जीवन को गहराई से प्रभावित कर सकते हैं, इसलिए ऐसी संभावना को पूरी तरह से खारिज किया जाना आवश्यक है।
जस्टिस विवेक सिंह ठाकुर और जस्टिस सुशील कुकरेजा की खंडपीठ ने ऊना जिले के बंगाणा क्षेत्र से जुड़े एक पुराने रेप केस में पीड़िता की अपील को खारिज करते हुए निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा।
अदालत ने कहा कि इस मामले में पीड़िता के बयानों में इतने विरोधाभास और बदलाव हैं कि यह तय करना मुश्किल है कि उसका कौन सा बयान सत्य है। पीठ ने अपने निर्णय में लिखा कि इसमें कोई संदेह नहीं कि रेप की शिकार महिला को समाज में भारी अपमान और मानसिक पीड़ा सहनी पड़ती है।
मगर जब कोई व्यक्ति झूठे आरोप का सामना करता है, तब वह भी सामाजिक, मानसिक और आर्थिक रूप से क्षतिग्रस्त होता है। ऐसे मामलों में न्याय का संतुलन बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है।
अदालत ने कहा कि यह ऐसा मामला है, जहां पीड़िता ने अपने बयानों में कई बार बदलाव किए और घटनाक्रम को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने की कोशिश की। इस वजह से उसकी विश्वसनीयता संदेह के घेरे में आ गई।
ऊना जिले के बंगाणा की एक महिला ने 24 अप्रैल 2013 को पुलिस में एफआईआर दर्ज करवाई। शिकायत में कहा गया कि नवंबर 2012 की करवा चौथ की पूर्व संध्या पर आरोपी सीमा देवी ने उसे अपने घर बुलाया, जहां रात में सीमा देवी के पति ज्ञान चंद ने कथित तौर पर उसके साथ बलात्कार किया।
शिकायत के अनुसार, जब घटना हुई, तब सीमा देवी बाहर चली गई और दरवाजा बाहर से बंद कर दिया। पीड़िता ने आरोप लगाया कि पति-पत्नी ने मिलकर उसका यौन शोषण करने की साजिश रची।
महिला ने कहा कि वह भय और शर्म के कारण कई महीनों तक चुप रही। अंततः 18 अप्रैल 2013 को उसने अपने पति और बहन को यह बात बताई और कुछ दिनों बाद पुलिस में शिकायत दर्ज कराई।
FIR के बाद पुलिस ने 24 अप्रैल 2013 को ज्ञान चंद को और 23 जून 2013 को सीमा देवी को गिरफ्तार किया। जांच के बाद दोनों के खिलाफ आईपीसी की धारा 376 (बलात्कार) और 506 (धमकी) के तहत चार्जशीट दाखिल की गई।
25 अप्रैल 2014 को ऊना की अतिरिक्त सत्र अदालत ने गवाहों और सबूतों की कमी के चलते दोनों आरोपियों को बरी कर दिया। अदालत ने पाया कि पीड़िता के बयानों में स्पष्ट विरोधाभास हैं और घटना की पुष्टि के लिए पर्याप्त साक्ष्य नहीं हैं।
पीड़िता ने इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील दायर की, मगर अदालत ने अपील खारिज कर दी। खंडपीठ ने कहा कि अभियोजन पक्ष का मामला संदेह से परे साबित नहीं हो सका। कोर्ट ने कहा कि पीड़िता के बयान समय-समय पर बदलते रहे हैं, जिससे उसकी गवाही की विश्वसनीयता पर प्रश्न उठता है। अभियोजन के अन्य गवाह भी उसके कथन का समर्थन नहीं करते। अतः निचली अदालत द्वारा आरोपियों को बरी करने में कोई त्रुटि नहीं है।