कांगड़ा। कहते हैं कि पत्नी अपने पति के लिए कुछ भी कर सकती है। हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के टांडा मेडिकल कॉलेज में दो महिलाओं ने वह कर दिखाया जो सच्चे प्रेम, समर्पण और हिम्मत की मिसाल बन गया। दो महिलाओं ने अपनी किडनी देकर अपने-अपने पतियों की जान बचाई।
पत्नियों ने पति को दिया नया जीवन
कांगड़ा तहसील के बांध गांव निवासी 50 वर्षीय सुरेश कुमार और 52 वर्षीय जगदेव सिंह लंबे समय से किडनी की गंभीर बीमारी से जूझ रहे थे। डायलिसिस पर ज़िंदगी चल रही थी, लेकिन यह कोई स्थायी समाधान नहीं था। जब अन्य विकल्प थमने लगे, तो उनकी पत्नियों—46 वर्षीय रितु देवी और 42 वर्षीय सरोती देवी—ने वह फैसला लिया जो हर कोई नहीं ले पाता। दोनों ने आगे आकर अपने पतियों को अपनी एक-एक किडनी दान देने की ठानी।
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एक-एक किडनी दी दान
मंगलवार को टांडा मेडिकल कॉलेज के सुपरस्पेशियलिटी विंग में दोनों ट्रांसप्लांट सफलतापूर्वक किए गए। इस जटिल प्रक्रिया की अगुवाई नेफ्रोलॉजी विभाग के अध्यक्ष डॉ. अभिनव राणा और ट्रांसप्लांट सर्जन डॉ. अमित शर्मा ने की। उनके साथ मेडिकल टीम के अन्य विशेषज्ञ डॉक्टरों और स्टाफ ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
सफल रहा किडनी ट्रांसप्लांट
विशेषज्ञों का कहना है कि पति-पत्नी के बीच किडनी का जैविक मिलान (मैचिंग) एक दुर्लभ स्थिति है। आमतौर पर पारिवारिक सदस्यों में भी यह मेल आसानी से नहीं बैठता। यही वजह है कि दोनों मामलों में इस तरह का मेल होना और ट्रांसप्लांट का सफल हो जाना मेडिकल साइंस और इंसानी जज़्बे दोनों की शानदार मिसाल है।
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इस समय दोनों दंपत्ति सीसीयू (सघन चिकित्सा इकाई) में चिकित्सकीय निगरानी में हैं और उनकी हालत स्थिर है। डॉक्टर्स का कहना है कि अगर सब कुछ सामान्य रहा, तो दोनों मरीज़ जल्द ही सामान्य जीवन में लौट सकेंगे।
टांडा मेडिकल कॉलेज में फिलहाल किडनी ट्रांसप्लांट के लिए 40 से अधिक रोगी पंजीकृत हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि पूरा स्टाफ और ज़रूरी संसाधन मिलें, तो हर महीने तीन से चार सफल ट्रांसप्लांट किए जा सकते हैं। इससे न सिर्फ मरीजों को राहत मिलेगी बल्कि उन्हें चंडीगढ़ या अन्य बड़े संस्थानों का रुख भी नहीं करना पड़ेगा।
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ब्लड ग्रुप के मेल
डॉ. अभिनव राणा ने यह भी बताया कि अभी ब्लड ग्रुप के मेल पर आधारित ट्रांसप्लांट किए जा रहे हैं। लेकिन यदि अस्पताल को एबीओ-इनकंपैटिबल ट्रांसप्लांट की सुविधा मिल जाए, तो ब्लड ग्रुप के न मिलने पर भी मरीजों को जीवनदान देना संभव हो सकेगा।
अटूट रिश्ते की मिसाल
यह कहानी सिर्फ मेडिकल साइंस की नहीं, बल्कि उस अटूट रिश्ते की भी है जो "सात जन्मों के साथ" के वादे को आज के युग में भी जीवित रखे हुए है। रितु देवी और सरोती देवी जैसे नाम अब सिर्फ पारिवारिक पहचान नहीं, बल्कि प्रेरणा का प्रतीक बन चुके हैं।