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October 4, 2025
हिमाचल में दो दिन के नवजात को थी दुर्लभ बीमारी, डॉक्टर्स ने सफल सर्जरी कर बचाई मासूम जिंदगी
जन्म के समय बच्चे का वजन 2.4 किलोग्राम था
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शिमला। हिमाचल प्रदेश के सबसे बड़े स्वास्थ्य संस्थान इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज IGMC शिमला ने शिशु शल्य चिकित्सा के क्षेत्र में बड़ी उपलब्धि हासिल की है। यहां के डॉक्टरों ने महज दो दिन की बच्चे में अत्यंत जटिल जन्मजात बीमारी ग्रसनी-अवरोध और श्वासनली-ग्रसनी नालव्रण का सफल ऑपरेशन किया है।
इस चुनौतीपूर्ण सर्जरी ने न केवल बच्चे की जान बचाई बल्कि प्रदेश में चिकित्सा क्षेत्र की क्षमताओं को भी नई पहचान दिलाई है। यह बच्चा शिमला के कमला नेहरू अस्पताल (KNH) में पैदा हुआ था।
जन्म के समय उसका वजन 2.4 किलोग्राम था। जन्म के तुरंत बाद ही उसमें अत्यधिक लार आने और ओरोगैस्ट्रिक ट्यूब पेट तक न पहुंच पाने जैसी गंभीर समस्या सामने आई। चिकित्सकों को आशंका हुई कि यह मामला जन्मजात विकृति का है, जिसके बाद बच्चे को तुरंत IGMC रेफर कर दिया गया।
IGMC पहुंचने पर बच्चे को डॉ. प्रवीन भारद्वाज की देखरेख में PICU (पीडियाट्रिक इंटेंसिव केयर यूनिट) में भर्ती किया गया। जीवन के दूसरे ही दिन डॉक्टरों ने जोखिम उठाते हुए शल्य चिकित्सा का फैसला लिया।
ऑपरेशन टीम में डॉ. राज कुमार, डॉ. कमल कांत शर्मा और डॉ. प्रदीप शामिल रहे। सर्जरी के दौरान बच्चे की भोजन नली का पुनर्निर्माण किया गया और श्वासनली से जुड़ी असामान्य नली को सफलतापूर्वक हटाया गया। यह प्रक्रिया तकनीकी दृष्टि से बेहद कठिन थी, क्योंकि इतनी नाजुक अवस्था में शिशु की सर्जरी करना चिकित्सकों के लिए एक बड़ी चुनौती मानी जाती है।
इस सर्जरी में एनेस्थीसिया टीम की भूमिका निर्णायक रही। टीम में डॉ. एस. सोढी, डॉ. दारा सिंह नेगी, डॉ. कार्तिक, डॉ. राधिका, डॉ. मेहक, डॉ. सृष्टि और डॉ. शिवानी शामिल थे। ऑपरेशन के दौरान डॉ. एस. सोढी ने फ्लेक्सिबल वीडियो ब्रोंकोस्कोप की मदद से शिशु का सुरक्षित इंटुबेशन किया। इस प्रक्रिया में डॉ. कार्तिक सायल, ओटी सहायक श्री कमेश्वर और नर्सिंग स्टाफ मिस सपना व मिस दीपिका ने अहम सहयोग दिया।
सर्जरी सफल होने के बाद बच्चे को PICU में लगातार निगरानी में रखा गया। वार्ड सिस्टर रीटा के नेतृत्व में नर्सिंग स्टाफ श्यामा, स्मृति, सविता, तेजस्विनी, रंजना और शालू ने दिन-रात समर्पण के साथ शिशु की देखभाल की। उनके अथक प्रयास और सतत निगरानी के कारण बच्चा धीरे-धीरे स्वस्थ हुआ और कुछ ही दिनों में उसकी स्थिति सामान्य हो गई। अंततः बच्चे को सुरक्षित रूप से अस्पताल से छुट्टी दे दी गई।
बाल शल्य चिकित्सा विभाग के प्रमुख डॉ. राज कुमार ने कहा कि ग्रसनी-अवरोध और श्वासनली-ग्रसनी नालव्रण जैसी जन्मजात विकृतियां अत्यंत जीवन-घातक होती हैं। इनकी समय रहते पहचान और विशेषज्ञ सर्जरी ही शिशु की जान बचा सकती है। IGMC की टीम ने सामूहिक प्रयास और अनुभव के बल पर यह सर्जरी सफल की है, जो हमारे संस्थान और प्रदेश दोनों के लिए गौरव का विषय है।
बच्चे के परिवार ने IGMC की पूरी टीम का आभार जताते हुए कहा कि हमने उम्मीद छोड़ दी थी, लेकिन डॉक्टरों ने हमारे बच्चे को नई जिंदगी दी है। यह हम सबके लिए किसी चमत्कार से कम नहीं है।