#विविध
December 23, 2025
हिमाचल : बच्चों ने चुराया दान पात्र, अब मंदिर की करेंगे साफ-सफाई; हनुमान चालीसा भी पढ़ना होगा
पैसे निकाल झाड़ियों में फेंका दान पात्र
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कांगड़ा। हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित एक मंदिर में हुई चोरी की घटना की हर ओर चर्चा हो रही है। ऐतिहासिक कस्बे हरिपुर में सामने आई इस घटना की चर्चा होने की वजह चोरी की रकम नहीं, बल्कि उसे सुलझाने का तरीका है।
यहां मंदिर के दानपात्र से सालभर का चढ़ावा चुराने वाले तीन नाबालिगों को न तो पुलिस की सलाखों के पीछे भेजा गया, न ही उन पर कोई जुर्माना लगाया गया। इसके बजाय मंदिर कमेटी और ग्रामीणों ने मिलकर ऐसा फैसला लिया, जिसे लोग अब “सुधार की सजा” कह रहे हैं।
मामला बीते रविवार का है। हरिपुर स्थित श्री रामचंद्र मंदिर परिसर में बने मां नवदुर्गा मंदिर के दानपात्र से अचानक चोरी की खबर फैली। सुबह जब पुजारी और मंदिर सेवक पहुंचे तो दानपात्र अपनी जगह से गायब मिला।
कुछ ही देर बाद मंदिर से थोड़ी दूरी पर झाड़ियों में वह दानपात्र खाली पड़ा मिला। इससे साफ हो गया कि चोरी मंदिर परिसर में ही हुई है और बदमाश नकदी निकालकर दानपात्र को फेंक गए हैं।
दानपात्र में पूरे साल का चढ़ावा जमा था। जानकारी के अनुसार, चोरों ने केवल कुछ सिक्के और 10-10 रुपये के नोट छोड़ दिए, जबकि बाकी सारी नकदी निकाल ली गई। घटना की सूचना मिलते ही मंदिर कमेटी सक्रिय हुई और स्थानीय पुलिस को भी सूचित किया गया।
मंदिर परिसर में लगे CCTV कैमरों की फुटेज खंगाली गई। जांच में सामने आया कि चोरी किसी बाहरी गिरोह ने नहीं, बल्कि क्षेत्र के ही तीन नाबालिग लड़कों ने की थी। फुटेज में तीनों मंदिर परिसर में घूमते और दानपात्र उठाकर ले जाते हुए साफ दिखाई दिए।
पहचान होने के बाद तीनों नाबालिगों को बुलाया गया। पूछताछ में उन्होंने अपनी गलती स्वीकार कर ली। इसके बाद मंदिर प्रबंधन और ग्रामीणों के सामने बड़ा सवाल खड़ा हुआ—क्या इन बच्चों को पुलिस के हवाले किया जाए, या फिर उन्हें सुधार का मौका दिया जाए?
इस मुद्दे पर मंदिर कमेटी ने स्थानीय ग्रामीणों और बुजुर्गों के साथ विशेष बैठक बुलाई। बैठक में यह बात सामने आई कि तीनों बच्चे नाबालिग हैं और यदि उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई होती है तो उनके भविष्य पर हमेशा के लिए अपराधी का दाग लग सकता है।
ग्रामीणों का मानना था कि सख्त सजा के बजाय इन्हें अपनी गलती समझाने और सही रास्ते पर लाने की जरूरत है। काफी विचार-विमर्श के बाद सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि बच्चों को एक सप्ताह तक मंदिर सेवा की सजा दी जाएगी। यह सजा दंड नहीं, बल्कि आत्मचिंतन और सुधार का माध्यम होगी।
सोमवार से यह अनोखी सजा लागू कर दी गई। तीनों नाबालिग रोजाना मंदिर पहुंच रहे हैं। वे मंदिर परिसर में झाड़ू-पोंछा लगाते हैं, कूड़ा साफ करते हैं और पूजा-अर्चना में सहयोग करते हैं। इसके साथ ही उन्हें प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पाठ करना अनिवार्य किया गया है।
मंदिर परिसर में इन बच्चों को सेवा करते देख स्थानीय लोग भी भावुक नजर आ रहे हैं। कई ग्रामीणों का कहना है कि इस तरह की सजा बच्चों के मन में अपराधबोध के साथ-साथ जिम्मेदारी की भावना भी पैदा करती है।
मंदिर कमेटी के सदस्यों का कहना है कि उद्देश्य बच्चों को शर्मिंदा करना नहीं, बल्कि उन्हें यह समझाना है कि गलत रास्ता नुकसान ही पहुंचाता है। यदि समाज समय रहते बच्चों को संभाल ले, तो वे भटकने से बच सकते हैं।
हरिपुर की यह घटना अब पूरे क्षेत्र में चर्चा का विषय बनी हुई है। लोग इसे कानून से ऊपर उठकर मानवता और समाजिक जिम्मेदारी की मिसाल मान रहे हैं। यह कहानी बताती है कि हर गलती का जवाब सजा ही नहीं होती, कभी-कभी सुधार का मौका देना भी सबसे बड़ा सबक बन जाता है।