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July 9, 2025

हिमाचल फ्लड : मलबे में दब गए आशियाने, सड़क पर खाना खाने को मजबूर हुए बेघर लोग

कल तक दूसरों को खिलाते थे खाना

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Mandi Flash Flood

मंडी। सराज घाटी कभी वो जगह थी जहां से रोटियों की सोंधी महक उठती थी, तो राह चलता भी ठहरकर आंखों में ठहराव ले आता था। ये वो जमीन थी जहां भूखे को खिलाना धर्म और किसी को बिना भोजन के सोने देना पाप माना जाता था।

कल तक दूसरों को खिलाते थे खाना

यहां हर घर का चूल्हा हर आने-जाने वाले के लिए जलता था। गांव में न होटल थे, न ढाबे क्योंकि किसी को खाने के लिए बाहर जाना ही नहीं पड़ता था। लेकिन आज... हालात ऐसे हैं कि वही लोग जिनके आंगन में कभी मेहमानों के लिए थाल सजा करती थी, आज राहत शिविरों में पत्तल थामे बैठे हैं-हाथ थरथरा रहे हैं, दिल अंदर से टूट चुका है।

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सड़क पर खाना खाने को मजबूर

थाली में खाना है, लेकिन गले से नीचे नहीं उतरता। वो स्वाद नहीं रहा, क्योंकि स्वाद की जगह अब दुख ने ले ली है। घाटियों में हर चेहरा खालीपन से भरा है। आपदा में बेघर हुए इन लोगों को मजबूरन सड़कों पर खाना खाना पड़ रहा है।

कांप उठा पूरा इलाका

उस रात करीब साढ़े 10 बजे था जब सराज की जमीन थरथराने लगी। बारिश ने जैसे अपना रौद्र रूप धर लिया था। नालों और खड्डों का पानी देखते ही देखते उफनने लगा। लोगों को समझ आ गया कि ये आम बरसात नहीं है, कुछ बड़ा और भयावह होने वाला है।

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बच्चों की रोने की आवाजें, मची भगदड़

कुछ घरों में बच्चों के रोने की आवाजें थीं, कहीं भगदड़ और घबराहट की आहट। पूरी घाटी जैसे सांस रोके खामोशी से इस तबाही को सुन रही थी। कई परिवारों ने समय रहते हिम्मत दिखाई और सुरक्षित जगहों की तरफ निकल पड़े। मगर जिनके कदम थमे या जिन्हें देर हो गई, उनका सब कुछ बह गया-घर, चूल्हे, बिस्तर, अन्न, पशु, जीवन की जमा पूंजी।

 

देजी, पखरैर, थुनाग, लंबाथाच, पांडवशिला- ये वो नाम थे जो कभी गांवों और कस्बों की पहचान थे, अब सिर्फ मलबे में बदल चुके हैं। सेब के जो बाग कभी आंखों का तारा थे, जिन पेड़ों को बच्चों की तरह पाला गया था, वे या तो टूट चुके हैं या कीचड़ में दफ्न हैं। एक साल की नहीं, कई वर्षों की मेहनत पलक झपकते उजड़ गई।

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राहत शिविरों में गुजर रही जिंदगी

राहत शिविरों की कहानी और भी चुभने वाली है। बुज़ुर्ग तुलसी की निगाहें उस पत्तल पर टिकी थीं जिसमें चावल और दाल थी। लेकिन आंखें भीगी थीं-वो कहते हैं, "जिसने उम्र भर दूसरों को खिलाया हो, वो अब हाथ फैला कर कैसे खा सकता है?" उनकी आवाज में टूटी हुई अस्मिता थी।

 

वो नाले, जो इस तबाही के कारण बने, अब उन्हीं के पानी से लोग अपने बचे-खुचे सामान को धो रहे हैं। हर बाल्टी पानी के साथ, वो अपने अंदर की टूटी यादों को भी धोने की कोशिश कर रहे हैं-वो तस्वीरें, वो दरवाज़े, वो दीवारें... जिनसे जिंदगी की कई कहानियां जुड़ी थीं।

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