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July 6, 2025
हिमाचल फ्लड : पानी में पति और छोटे बच्चे के साथ फंसी थी शिक्षिका, स्टूडेंट्स ने खुद की परवाह किए बिना बचाया
तीनों की गर्दन तक पहुंच चुका था पानी
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मंडी। 30 जून की रात हिमाचल प्रदेश के मंडी जिला स्थित थुनाग कस्बे ने वो मंजर देखा, जिसे शायद ही वहां रहने वाले कभी भूल पाएंगे। हर तरफ चीख-पुकार, बहते मकान, पानी में डूबे वाहन और मदद की आस में मोबाइल की टिमटिमाती रोशनी। ये कोई फिल्मी दृश्य नहीं, बल्कि एक सच्ची आपदा की कहानी है।
थुनाग से करीब आठ किलोमीटर दूर डेजी गांव में बादल फटने की खबर जैसे ही फैली, थुनाग के लोगों की रूह कांप गई। शाम का खाना खत्म करने के बाद लोग सोने की तैयारी में थे, लेकिन तभी एक चेतावनी आई- डेजी गांव से मलबा और पानी थुनाग की ओर तेजी से बढ़ रहा है। मकान मालिकों और आसपास के जागरूक लोगों ने कॉलेज के हॉस्टल में रह रहे छात्रों और स्थानीय प्रशिक्षुओं को फोन कर तुरंत सुरक्षित स्थानों पर जाने को कहा।
सरकाघाट के काश गांव निवासी प्रशिक्षु साहिल ठाकुर और सिरमौर जिले की प्रशिक्षु रोनित ने बताया कि सराज क्षेत्र में बादल फटने के बाद थुनाग में जो तबाही हुई, वह आंखों के सामने घटी। मिनटों के भीतर थुनाग का पूरा बाजार मलबे और पानी से भर गया। प्रशिक्षुओं ने इधर-उधर दौड़कर जान बचाई। बागवानी और वानिकी कॉलेज थुनाग के 150 से अधिक छात्र-छात्राएं वहीं फंसे हुए थे।
स्थिति इतनी भयावह थी कि छात्र जहां जगह मिली, वहीं छतों पर चढ़ गए। अंधेरे में मोबाइल की रोशनी से मदद की गुहार लगाई जा रही थी। उसी समय कॉलेज की शिक्षिका कल्पना ठाकुर, उनके पति और छोटा बच्चा पानी के तेज बहाव में फंस गए। उनकी गर्दन तक पानी पहुंच चुका था। साहिल और उसके साथियों ने अपनी जान की परवाह न करते हुए तीनों को खींचकर सुरक्षित बाहर निकाला। उस रात कई छात्र छतों पर ठिठुरते रहे, लेकिन नीचे उतरने की हिम्मत किसी की नहीं थी।
अगली सुबह 1 जुलाई को जब धूप निकली, तो पूरे क्षेत्र का मंजर दिल दहला देने वाला था। कई शव मिल चुके थे, चारों तरफ कीचड़, टूटी सड़कें, धंसे मकान और सन्नाटा पसरा था। बागवानी कॉलेज की इमारत पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुकी थी। छात्रों ने बताया कि कॉलेज की पहली मंजिल तक बह गई, नींव हिल गई है, दीवारें झुक गई हैं — यह भवन अब किसी काम का नहीं रहा।
छात्रों का कहना है कि अब थुनाग लौटने का ख्याल भी डरावना लगता है। उनका सुझाव है कि कॉलेज को कहीं और शिफ्ट किया जाए और परीक्षाएं नौणी विश्वविद्यालय में करवाई जाएं। क्योंकि मानसिक रूप से वे अब दोबारा उस त्रासदी के स्थान पर नहीं जाना चाहते।
आपदा के तीसरे दिन प्रशासन ने कांढा क्षेत्र तक वाहनों की आवाजाही बहाल की। तब जाकर कॉलेज प्रशासन और स्थानीय लोगों ने 92 छात्र-छात्राओं को वहां तक पहुंचाने की योजना बनाई। लेकिन रास्ता आसान नहीं था-14 किलोमीटर पैदल ट्रैक तय कर छात्र कांढा पहुंचे। कीचड़, गिरे पेड़ और बह चुकी सड़कें उनके रास्ते में थीं, लेकिन फिर भी वे जिंदा लौटे।
प्रशिक्षुओं के मुताबिक, थुनाग की यह त्रासदी केवल भौतिक नुकसान नहीं है। यह उन युवाओं के मन और आत्मा पर गहरा जख्म है, जिन्होंने पहली बार कुदरत का ऐसा उग्र रूप इतने करीब से देखा। कई छात्र अब भी सदमे में हैं, रात को नींद नहीं आती, और मन बार-बार उस क्षण में लौट जाता है, जब सब कुछ बहता चला गया।