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July 9, 2025
हिमाचल : जवानी में उजड़ा था सुहाग, बीमारी ने बेटा-बहू को छीन लिया- अब आपदा ने किया बेघर
पोता-पोती की अकेले परवरिश कर रही बुजुर्ग दादी
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मंडी। 30 जून की रात आई बरसात और भूस्खलन की विनाशलीला ने न जाने कितनी जिंदगियों को पल में उजाड़ दिया। लेकिन बूंगरेल पंचायत के बयोड़ गांव की 70 वर्षीय कमला देवी की कहानी उस तबाही की सबसे मार्मिक तस्वीर बनकर सामने आई है।
कमला देवी की आंखों में न आंसू बचे हैं, न शिकायतें- बस एक ठहराव है, जिसने जिंदगी को कई बार चोट खाई दी है। शादी के कुछ ही सालों बाद जवानी में पति गुजर गया। फिर बेटे और बहू भी बीमारी के चलते एक-एक कर दुनिया छोड़ गए।
अपने आंसू छिपाकर, अपने हिस्से की रोटी काटकर, उन्होंने किसी तरह पोता और पोती को पाला। जब लगा कि अब जिंदगी की सांझ में कुछ राहत मिलेगी, तो 30 जून की रात को आई तबाही सब कुछ फिर छीन कर ले गई।
कमला देवी की आवाज कांपती है जब वह कहती हैं- आधी रात को खड्ड का पानी गांव की तरफ बढ़ा तो मजबूरी में घर छोड़ना पड़ा। एक तो मेरे पति की निशानी था वह घर, दूसरा मेरी सारी जमा पूंजी वहीं रखी थी। डेढ़ लाख रुपये नकद और चार तोले सोना सब पानी में बह गया।
गांव के बाकी लोग रिश्तेदारों के पास या किराये पर चले गए, लेकिन कमला कहती हैं, “मेरा कोई नहीं है... इसलिए पंचायत घर की लाइब्रेरी ही अब मेरा आसरा है।”अब उनके साथ उनकी पोती और पोता है-जो कुल्लू में ITI का कोर्स कर रहा है।
दोबारा छत छिनने के बाद उन्हें बच्चों की चिंता और भी गहराने लगी है। हालांकि राज्य सरकार की ‘सुख आश्रय योजना’ के तहत अनाथ बच्चों को सहायता मिल रही है, लेकिन कमला की आंखों में घर की टूटी दीवारें आज भी बसी हैं।
कमला देवी कहती हैं कि जब आराम करने की उम्र थी, तब फिर से सिर छुपाने की जगह नहीं रही। इतने साल की मेहनत और हिम्मत से बनाया घर आंखों के सामने गिर गया। अब कोई बड़ा मददगार चाहिए, जो मेरे घर को दोबारा खड़ा कर दे।
उनके आंसू तब छलक पड़ते हैं जब वो छत से टपकते पानी को रोकने की कोशिश करती हैं और कहती हैं- जिस उम्र में लोग नाती-पोतों संग आंगन में धूप सेंकते हैं, उस उम्र में मैं अब सरकारी कमरे में दिन काट रही हूं।
बूंगरेल पंचायत के उपप्रधान भीम सिंह बताते हैं कि कमला देवी का मकान आपदा में बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया है, इसलिए पंचायत ने उन्हें लाइब्रेरी में ठहराने की व्यवस्था की है। उपप्रधान कहते हैं- जो भी संभव मदद है, हम कर रहे हैं, लेकिन अब उन्हें सरकार या किसी संगठन की ठोस सहायता की जरूरत है, ताकि दोबारा अपने घर में लौट सकें।