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August 12, 2025
हिमाचल: भूस्खलन ने छत छिनी, सपने बिखरे... 9 घर किए खाली; सड़क पर सामान सहेज रहे ग्रामीण
9 घरों पर मंडराया खतरा, सामान समेट खाली करने पड़े सपनों के आशियाने
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मंडी। हिमाचल प्रदेश में भारी बारिश ने जमकर कहर बरपाया है। ऐसा ही कहर मंडी जिला के एक गांव पर भी बरपा है। मंडी-कुल्लू फोरलेन पर झलोगी (शालानाल) टनल के पास बसे टनीपरी गांव के लोगों के सपने इस कद्र टूट रहे हैं, जिसकी पीड़ा शायद सदियों तक नहीं जाएगी। पिछले 6 दिनों से लगातार हो रहे भूस्खलन ने गांव के नौ घरों को पूरी तरह से खतरे में डाल दिया है। कभी अपने खून-पसीने की कमाई से बनवाए गए सपनों के ये आशियाने, अब दरकती पहाड़ियों की भेंट चढ़ने को तैयार हैं।
गांव के लोगों को मजबूरी में वो घर छोड़ने पड़े, जिनकी एक-एक ईंट उन्होंने वर्षों की मेहनत से जोड़ी थी। आज उन घरों के बाहर ताले हैं, और अंदर सिर्फ सन्नाटा पसरा है। सामान सड़क किनारे सहेज कर रखा है, और आंखों में बस चिंता बच्चों के भविष्य की, बुजुर्गों की सेहत की, और उस जमीन की जो अब शायद कभी अपनी नहीं रहेगी।
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बता दें कि झलोगी (शालानाल) टनल के पास स्थित टनीपरी गांव भूस्खलन की जद में आ गया है। इस गांव के पास पिछले छह दिन से लगातार भूस्खलन हो रहा है। फोरलेन निर्माण में सही तरीके से कटिंग न होने से हो रहे से भूस्खलन ने गांव के 9 घरों को खतरे में डाल दिया है। इन घरों में रहने वाले करीब 30 ग्रामीण बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं।
ग्रामीणों मोहर सिंह, पूर्ण चंद, मिंटू राम, दीवान चंद, तुला राम, लाल सिंह, रूप चंद, चरण दास व हरि सिंह ने बताया कि फोरलेन बनाने वाली कंपनी की गलत कटिंग के कारण उनके गांव पर खतरा मंडरा रहा है। भूस्खलन पिछले 6 दिनों से जारी था, लेकिन रविवार और सोमवार को इसकी तीव्रता काफी बढ़ गई, जिससे अब सभी घर गिरने की कगार पर हैं। अब मजबूरी में उन्हें घर खाली करने पड़े हैं।
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भारी बारिश ने हालात और बदतर कर दिए हैं। रविवार और सोमवार को जब भूस्खलन की रफ्तार बढ़ी, तो ग्रामीणों को रातों.रात घर खाली करना पड़ा। कोई कपड़े समेट रहा था, कोई स्कूल बैग संभाल रहा था, तो कोई बूढ़े मां.बाप को सहारा दे रहा था। सड़क पर रखे बिस्तर, ट्रंक, रसोई के बर्तन और बच्चों की किताबें सब बिखरे सपनों की तरह बेजान पड़े थे।
ग्रामीण मोहर सिंह, पूर्ण चंद, मिंटू राम, दीवान चंद समेत अन्य लोगों ने बताया कि फोरलेन बनाने वालों ने पहाड़ी की कटिंग तो कर दी, पर सही तकनीक नहीं अपनाई। रॉक बोल्ट लगाए, मगर ग्राउटिंग नहीं की। अब भुगतना हमें पड़ रहा है। ग्रामीणों की पीड़ा और तब बढ़ गई, जब उनकी इस स्थिति को जानने ना तो कोई बड़ा अधिकारी आया, न ही कोई जनप्रतिनिधि। चुनाव के वक्त वोट मांगने के लिए तो हर दरवाज़ा खटखटाते हैं, पर जब हमारे घर गिरने के कगार पर पहुंच गए तब कोई पूछने तक नहीं आया।
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भूस्खलन की सूचना मिलने पर एसडीएम बालीचौकी और तहसीलदार औट ने मौके पर पहुंचकर स्थिति का जायजा लिया। प्रशासन ने फिलहाल ग्रामीणों के लिए थलौट में विद्युत विभाग के खाली पड़े शैड में रहने की वैकल्पिक व्यवस्था की है। लेकिन लोग कहां तक किसी और की छत के नीचे रहेंगे। उनका सवाल सीधा है हमारे लिए स्थायी जमीन कब मिलेगी। बच्चों के स्कूल छूट रहे हैं, रोजगार ठप है, और सिर पर सुरक्षित छत नहीं।
टनीपरी गांव के लोगों की बस एक ही गुहार है कि हमें फिर से बसाया जाए, जहां पहाड़ ना हों, सिर्फ शांति हो। जहां बच्चों को स्कूल जाने के लिए मलबे नहीं लांघने पड़ें, और रातें डर के साये में ना बीतें।