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October 2, 2025

अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा उत्सव आज से शुरू, 200 KM का सफर तय कर पहुंचे कई देवी-देवता

इस बार नहीं होंगी भव्य सांस्कृतिक झलकियां

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International Kullu Dusshera Festival 2025

कुल्लू। जहां देव उतरते हैं धरती पर, वहीं बनता है कुल्लू दशहरे का देवलोक। आपदा के गहरे घावों के बीच भी हिमाचल की आस्था और परंपरा ने उम्मीद की नई रोशनी जलाई है। 24 दिन पहले आई त्रासदी की उदासी को पीछे छोड़कर ऐतिहासिक अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा महोत्सव ढालपुर मैदान में शुरू हो गया।

देवताओं का महाकुंभ

इसे देवताओं का महाकुंभ कहा जाता है, जहां सैकड़ों देवी-देवताओं की मौजूदगी पूरा माहौल दिव्यता से भर देती है। दशहरे की शुरुआत भगवान रघुनाथ की पालकी और रथयात्रा के साथ हुई।

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भगवान रघुनाथ की रथयात्रा से शुभारंभ

बुधवार दोपहर 2 बजे भगवान रघुनाथ पालकी में सवार होकर अपने स्थायी मंदिर से ढालपुर की ओर रवाना हुए। शाम 4:30 बजे रथ मैदान में जैसे ही उनकी रथयात्रा निकली, पूरा मैदान "जय श्री राम" और "जय देव" के उद्घोषों से गूंज उठा। हर तरफ ढोल-नगाड़ों और शहनाइयों की ध्वनि ने माहौल को भक्ति और उल्लास से सराबोर कर दिया।

300 से अधिक देवी-देवताओं की शिरकत

इस वर्ष उत्सव समिति ने कुल 332 देवी-देवताओं को न्योता भेजा है। बुधवार शाम तक 200 से अधिक देवी-देवता अपने-अपने अस्थायी शिविरों में ढालपुर पहुंच चुके थे। इनमें से कई देवी-देवता दूरस्थ क्षेत्रों से 150–200 किलोमीटर की लंबी और कठिन यात्रा तय करके आए हैं। खासतौर पर आनी-निरमंड क्षेत्र से 16 देवता, माता हिडिंबा रामशिला और बिजली महादेव मार्ग होते हुए सुल्तानपुर तक पहुंची हैं।

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365 साल पुरानी परंपरा

साल 1660 ईस्वी से लगातार मनाया जा रहा यह पर्व न केवल कुल्लू बल्कि पूरे हिमाचल और देश-विदेश के श्रद्धालुओं के लिए आस्था का प्रतीक है। इसे देवताओं का सबसे बड़ा पर्व कहा जाता है, जहां लोक परंपराएं, धार्मिक आस्था और सामूहिक उत्साह एक साथ दिखाई देते हैं।

सुरक्षा के कड़े इंतजाम

राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल ने भगवान रघुनाथ के अस्थायी शिविर में जाकर आशीर्वाद लिया और इस ऐतिहासिक क्षण के साक्षी बने। उनके आगमन से उत्सव का महत्व और बढ़ गया।उत्सव के दौरान सुरक्षा और यातायात व्यवस्था के लिए प्रशासन ने व्यापक तैयारी की है। कुल 1,200 पुलिस जवानों की तैनाती की गई है। इसके अलावा सभी 14 सेक्टरों की निगरानी ड्रोन कैमरों और 136 CCTV से की जा रही है।

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इस बार नहीं होंगी भव्य सांस्कृतिक झलकियां

हाल की आपदा को देखते हुए इस बार उत्सव का स्वरूप सादा रखा गया है। विदेशी सांस्कृतिक दल, विभिन्न राज्यों के कलाकार और बॉलीवुड हस्तियां इस बार शामिल नहीं होंगी। साथ ही परंपरागत उत्तर भारत स्तरीय वॉलीबॉल प्रतियोगिता भी आयोजित नहीं की जाएगी। दशहरा समिति ने इस बार की थीम "आपदा से उत्सव की ओर" रखी है, ताकि प्रभावित लोगों को यह संदेश दिया जा सके कि विपरीत परिस्थितियों में भी जीवन का जश्न मनाना जरूरी है।

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आउटर सिराज से पहुंचे देवी-देवता

कुल्लू दशहरे में इस बार आउटर सिराज के कई देवी-देवता विशेष आकर्षण का केंद्र बने हैं। इन देवताओं ने 150 से 200 किलोमीटर का सफर तय कर उत्सव में शिरकत की है। इनमें-

  • खुडीजल महाराज
  • शमशरी महादेव
  • व्यास ऋषि
  • कोट पझारी
  • जोगेश्वर महादेव
  • कुईकंडा नाग
  • टकरासी नाग
  • चोतरु नाग
  • बिशलू नाग
  • देवता चंभू उर्टू
  • देवता चंभू रंदल
  • देवता चंभू कशोली
  • देवता शरशाई नाग
  • घाटू के कुई कंडा नाग
  • भुवनेश्वरी माता दुराह
  • सप्तऋषि थंथल

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