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February 21, 2025

हिमाचल: SMC टीचर्स बोले- बस! अब और नहीं, नियमित करो वरना परीक्षाएं रद्द करनी पड़ेगी

12 साल से कोरे वादे झेल रहे गुरुजी गए बेमियादी हड़ताल पर, संकट में परीक्षाएं

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smc teachers

शिमला। पांच साल की नौकरी पूरी करने के बाद बीते 12 साल से नियमित करने की मांग कर रहे हिमाचल प्रदेश के 2,408 एसएमसी टीचर्स के सब्र का बांध शुक्रवार को टूट गया। उन्होंने शिमला के चौड़ा मैदान पर सरकार की वादाखिलाफी के विरोध में आवाज बुलंद करते हुए बेमियादी हड़ताल का ऐलान कर दिया। उनके इस ऐलान से आगामी मार्च में होने वाली राज्य की परीक्षाओं पर संकट के बादल गहरा गए हैं।

हड़ताल नहीं तोड़ेंगे

हिमाचल प्रदेश में एसएमसी टीचर्स का मसला सुक्खू सरकार के लिए भी गले की हड्डी बन चुका है। राज्य के दुर्गम इलाकों में स्कूली बच्चों को पढ़ा रहे इन शिक्षकों की भर्ती तो हो गई, लेकिन अभी तक सत्ता में आई हर सरकार ने इनके साथ सौतेला बर्ताव किया है।

 

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करीब 200 स्कूल एसएमसी टीचर्स के भरोसे चल रहे हैं, लेकिन अस्थायी रूप से शिक्षण दे रहे एसएमसी टीचर्स को आज भी पक्की नौकरी का इंतजार है। एसएमसी शिक्षक संघ के प्रवक्ता निर्मल ठाकुर ने मीडिया से कहा कि जब तक सरकार विभागीय अधिसूचना जारी नहीं करती, वे हड़ताल नहीं तोड़ेंगे। 4 मार्च से हिमाचल प्रदेश स्कूल शिक्षा बोर्ड की परीक्षाएं शुरू होनी है।

एलडीआर कोटे से कोई फायदा नहीं

एसएमसी टीचर्स ने सुक्खू सरकार के हालिया भर्ती नियमों में एसएमसी शिक्षकों के लिए 0.5% सीमित सीधी भर्ती (एलडीआर) कोटे को बेफिजूल बताते हुए इसके खिलाफ कोर्ट जाने की बात कही है।

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उनका कहना है कि एक तो सरकार बीते दो साल में शिक्षकों के सभी खाली पदों को नहीं भर सकी है। केवल राजनीतिक फायदे के लिए पिछले दरवाजे से 2400 एसएमसी टीचर्स को अस्थायी रूप से रखा गया है। अब यही सरकार 0.5% सीधी भर्ती की बात कहकर जले पर नमक छिड़कने का

काम कर रही है।

इसलिए हो रही है नियमितकरण की मांग

एसएमसी शिक्षकों का कहना है कि एलडीआर कोटा के तहत निर्धारित प्रतिशत उनकी संख्या की तुलना में कम है, जिससे सभी शिक्षकों का नियमितीकरण शीघ्र संभव नहीं हो पा रहा है।

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इससे उनमें असंतोष व्याप्त है, और वे अपने नियमितीकरण की प्रक्रिया में तेजी लाने की मांग कर रहे हैं। एसएमसी शिक्षक अपने भविष्य की सुरक्षा और स्थिरता के लिए नियमित सरकारी सेवा में शामिल होने की मांग कर रहे हैं। उनका तर्क है कि वे वर्षों से कठिन परिस्थितियों में शिक्षण कार्य कर रहे हैं, और नियमितीकरण से उन्हें सामाजिक और आर्थिक स्थिरता मिलेगी।

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