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December 11, 2025

हिमाचल में इस महीने महिला का प्रेग्नेंट होना अशुभ- भेज दी जाती हैं मायके, जानें क्या है वजह

कांगड़ा, मंडी, बिलासपुर व चंबा में जिंदा है प्रथा

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Kaala Mahina

कांगड़ा। हिमाचल प्रदेश रीति-रिवाजों, परंपराओं की भूमि है। वे प्रथाएं जो लोगों के हित में हैं, उन्हें आज भी निभाया जा रहा है। इसी कड़ी में प्रदेश के कुछ जिलों में काले महीने की परंपरा है। ये नई नवेली दुल्हन से जुड़ी हुई प्रथा है जिसके पीछे के कारण आजकल के युवाओं को हैरान कर सकते हैं। 

1 महीने के लिए मायके जाती नई दुल्हन

काला महीना सावन के बाद आता है, ऐसे में सावन पति के साथ बिताने के बाद पत्नी पूरे एक महीने के लिए मायके चली जाती है। रीति-रिवाजों के मुताबिक इन दिनों में सास-बहू और दामाद-सास का एक दूसरे को देखना भी वर्जित होता है।

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खुद पति छोड़कर आता या ससुर छोड़ते

बहू को मायके भेजने के लिए पूरी तैयारी की जाती है। एक दिन पहले ही पकवान बना दिए जाते हैं जो नई दुल्हन के साथ उसके मायके भेज दिए जाते हैं। दुल्हन को मायके छोड़ने या तो पति खुद जाता है या फिर ये काम ससुर भी कर सकते हैं।

महीने लोगों के घरों में अनाज की कमी

बुजुर्ग कहते हैं कि अगर दुल्हन इस महीने में गर्भवती होती है तो ये अशुभ का संकेत है। ये भी बताया जाता है कि जब पुराने समय में काला महीना आता था तो उस महीने को 13वां महीना माना जाता था। ज्यादातर लोगों के घरों में इन दिनों अनाज की कमी रहती थी।

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गरीबी छिपाने के लिए मायके भेजते बहू

कमाई का साधन या कमाई का धंधा लगभग शून्य के बराबर होता था। ऐसे में नई दुल्हन को किसी चीज की कमी का एहसास ना हो तो ससुराल पक्ष अपनी गरीबी छिपाने के लिए नई दुल्हन को मायके भेज देते थे। 

आज भी चाव के साथ निभाई जाती रीति

दामाद को भी इसलिए उसकी सास से नहीं मिलने देते थे ताकि उनकी बेटी दामाद के सामने अपने ससुराल की बुराई और कमियां ना निकाल सके। आज भले ही लोग साधन संपन्न हो गए हों लेकिन आज भी इस रीति को बड़े चाव से निभाया जाता है। 

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इन जिलों में आज भी जिंदा है ये परंपरा

ये परंपरा खास तौर पर कांगड़ा, मंडी, बिलासपुर व चंबा जिले में निभाई जाती है। सावन के खत्म होने और भाद्रपद के आगाज के साथ ही काला महीना भी शुरू हो जाता है। काला महीना अगस्त और सितंबर महीनों के दौरान आता है। 

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