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December 29, 2025
16वें वित्तायोग की रिपोर्ट तैयार: तय होगा हिमाचल का बजट-भविष्य; सुक्खू सरकार की बढ़ी धुकधुकी
16वें वित्तायोग ने केंद्र को सौंपी रिपोर्ट, केंद्रीय वित्त मंत्रालय कर रही समीक्षा
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शिमला। हिमाचल प्रदेश इस समय गंभीर आर्थिक दबाव से गुजर रहा है। सीमित संसाधनों, लगातार बढ़ते खर्च और घटती केंद्रीय सहायता ने राज्य की वित्तीय स्थिति को चुनौतीपूर्ण बना दिया है। कर्ज का बोझ लगातार बढ़ रहा है और सरकार के सामने विकास व कल्याण योजनाओं को आगे बढ़ाने की बड़ी परीक्षा खड़ी हो गई है। ऐसे हालात में सुक्खू सरकार की उम्मीदों का केंद्र अब 16वां वित्तायोग बन गया है, जिसकी रिपोर्ट आने के बाद ही प्रदेश की आर्थिक दिशा और दशा का खाका स्पष्ट हो पाएगा।
राज्य सरकार को एक ओर जहां राजस्व घाटा अनुदान में कटौती का सामना करना पड़ रहा है, वहीं जीएसटी के बदले हुए प्रारूप से भी प्रदेश को अपेक्षित लाभ नहीं मिल पा रहा। इसके अलावा ओल्ड पेंशन स्कीम (ओपीएस) लागू करने के कारण केंद्र से मिलने वाली वित्तीय सहायता में भारी कटौती हो रही है। ऋण उठाने की सीमा कम किए जाने से सरकार की वित्तीय गुंजाइश और सिमट गई है। इन सभी कारणों ने सुक्खू सरकार की चुनौतियों को और जटिल बना दिया है।
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इन कठिन परिस्थितियों में अब सरकार की नजरें पूरी तरह से 16वें वित्तायोग की रिपोर्ट पर टिकी हुई हैं। यह रिपोर्ट न केवल आने वाले वर्षों में केंद्र से मिलने वाली सहायता का रास्ता तय करेगी, बल्कि हिमाचल के आर्थिक भविष्य की दिशा भी निर्धारित करेगी। वित्तायोग अपनी रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंप चुका है, जिसे जल्द ही लोकसभा के पटल पर रखा जाना है।
प्रदेश का आगामी बजट भी इस बार वित्तायोग की सिफारिशों पर निर्भर रहेगा। रिपोर्ट सार्वजनिक होने के बाद ही राज्य सरकार बजट को अंतिम रूप दे पाएगी। इसी कारण बजट तैयार करने की प्रक्रिया में इस बार देरी की संभावना जताई जा रही है। सरकार खास तौर पर अगले पांच वर्षों के लिए मिलने वाले राजस्व घाटा अनुदान को लेकर बड़ी उम्मीद लगाए बैठी है।
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हालांकि वित्तायोग ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी है, लेकिन अभी तक इसे संसद में पेश नहीं किया गया है। माना जा रहा है कि केंद्रीय वित्त मंत्रालय रिपोर्ट की गहन समीक्षा कर रहा है और इसके बाद ही इसे लोकसभा में रखा जाएगा। जब तक रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं होती, तब तक प्रदेश सरकार बजट की प्रमुख घोषणाओं को अंतिम रूप देने से परहेज कर रही है।
मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू इस मुद्दे को लेकर वित्तायोग के अध्यक्ष से चार बार मुलाकात कर चुके हैं। सरकार का मानना है कि यदि सिफारिशें प्रदेश की उम्मीदों के अनुरूप नहीं रहीं, तो आने वाले वर्षों में हिमाचल को आर्थिक मोर्चे पर भारी संघर्ष करना पड़ सकता है।
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सुक्खू सरकार के सामने अगले दो वर्षों में अपनी चुनावी गारंटियों को पूरा करने की भी बड़ी चुनौती है। महिलाओं को 1500 रुपये प्रतिमाह सम्मान राशि और 300 यूनिट तक मुफ्त बिजली जैसी योजनाओं के लिए भारी वित्तीय संसाधनों की आवश्यकता होगी। इसके साथ ही ओपीएस लागू करने की एवज में हर साल लगभग 1600 करोड़ रुपये की केंद्रीय कटौती और सीमित ऋण सीमा ने सरकार की मुश्किलें और बढ़ा दी हैं।
वित्तीय अनिश्चितता का असर प्रशासनिक कामकाज पर भी दिखने लगा है। बजट में देरी के चलते विधायकों के साथ होने वाली प्राथमिकता योजनाओं की बैठकें टलने की संभावना है। विभागाध्यक्षों के साथ प्रस्तावित बैठकों का शेड्यूल भी अभी तय नहीं हो पाया है।
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अब राज्य सरकार की पूरी उम्मीद फरवरी महीने पर टिकी है, जब वित्तायोग की रिपोर्ट के आधार पर बजट, विकास योजनाओं और ‘व्यवस्था परिवर्तन’ के एजेंडे को अंतिम रूप दिया जा सकेगा। 16वें वित्तायोग की सिफारिशें हिमाचल प्रदेश के लिए आर्थिक संजीवनी साबित होंगी या चुनौतियां और बढ़ेंगी—इसका जवाब अब इसी रिपोर्ट के सामने आने के बाद मिलेगा।