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August 8, 2025

आपदा में मिसाल : मलाणा के लोगों ने उफनती नदी पर खुद बनाया पुल, सरकारी मदद का नहीं किया इंतजार

आपदा में भी दिखाई मिसाल बनती एकजुटता

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MalanaVillage

कुल्लू। हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले के ऐतिहासिक मलाणा गांव में हाल ही में आई प्राकृतिक आपदा ने जहां एक ओर व्यापक तबाही मचाई, वहीं दूसरी ओर गांववासियों ने जो साहस, आत्मबल और एकता दिखाई, वह समूचे प्रदेश के लिए मिसाल बन गई है।

एकजुटता बनी मिसाल

जानकारी के अनुसार, बीते 1 अगस्त की रात को आई मूसलधार बारिश और उसके बाद मलाणा नदी में आई भीषण बाढ़ ने गांव को बाहरी दुनिया से जोड़ने वाला एकमात्र पैदल पुल पूरी तरह बहा दिया।

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नदी के उफान में एक महिला की मौत हो गई, जबकि कई मवेशी, एक गाड़ी, एक ट्रक और एक जेसीबी मशीन भी बह गई। घटनास्थल पर सरकारी बचाव दल के समय पर न पहुंचने की स्थिति में गांववासियों ने स्वयं शव को खोजा और अन्य राहत कार्य भी अपने स्तर पर किए।

देव संस्कृति के मार्गदर्शन में, बनाया अस्थाई पुल

सरकारी मदद का इंतजार किए बिना मलाणा गांव के लोगों ने पारंपरिक 'हल' संस्कृति के तहत सामूहिक श्रम से एक बार फिर अद्भुत उदाहरण पेश किया। ग्रामीणों ने लकड़ी और रस्सों से खुद अस्थायी पुल बना डाला, जिससे गांव की बाहरी दुनिया से संपर्क बहाल हो गया। ग्रामीणों का मानना है कि यह आपदा केवल प्राकृतिक नहीं, बल्कि मानवजनित भी है।

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गांव के ऊपर बन रही 109 मेगावाट की मलाणा हाइड्रो प्रोजेक्ट के निर्माण कार्य को स्थानीय लोग इसकी एक प्रमुख वजह मानते हैं। उनका आरोप है कि जलविद्युत कंपनी ने भारी मात्रा में पेड़ों की कटाई की, जिससे मिट्टी की पकड़ कमजोर हुई और भू-स्खलन व बाढ़ की स्थिति बनी।

यहां देवता के आदेश से चलता है शासन

स्थानीय लोगों ने पहले भी सरकार और प्रशासन को कई बार इस परियोजना से पर्यावरण को हो रहे नुकसान के बारे में चेताया था, परंतु कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई। अब जबकि खुद परियोजना की मशीनरी व वाहन भी बाढ़ में बह गए, स्थिति की गंभीरता और स्पष्ट हो गई है।

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मलाणा को दुनिया के सबसे प्राचीन लोकतांत्रिक गांवों में गिना जाता है। यहां हर निर्णय देवता ‘जमलू ऋषि’ की आज्ञा से लिया जाता है। बाहरी हस्तक्षेप यहां सीमित है, पर संकट आने पर गांववासियों की एकता और आत्मनिर्भरता हर बार उन्हें उबार लेती है।

सोशल मीडिया पर हो रही है तारीफ़

यह पहला मौका नहीं है जब मलाणा के लोगों ने आपदा के समय अपनी हिम्मत और हुनर से स्थिति को संभाला हो। पिछले वर्ष भी इसी पुल को नुकसान पहुंचा था, तब भी ग्रामीणों ने खुद लकड़ी का पुल बनाकर रास्ता जोड़ा था। सोशल मीडिया पर मलाणा गांव के आत्मनिर्भर जज्बे की जमकर सराहना हो रही है। कई यूजर्स ने इसे “सच्चे आत्मनिर्भर भारत” का उदाहरण बताया है।

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अब उठ रहे सवाल… कब सुनेगी सरकार?

यह आपदा जहां हिमाचल की भौगोलिक संवेदनशीलता को रेखांकित करती है, वहीं यह भी दिखाती है कि आज भी कई गांव आपदा प्रबंधन में खुद पर ही निर्भर हैं। ऐसे में सरकार और प्रशासन को चाहिए कि वह न केवल राहत बल्कि दीर्घकालिक समाधान की दिशा में ठोस योजना बनाएं।

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