#विविध
November 5, 2025
हिमाचल HC ने पैसों के लेकर सुक्खू सरकार को फिर लगाई फटकार, दे डाली बड़ी वॉर्निंग
आदेश का पालन न करने पर कंटेम्प्ट की चेतावनी
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शिमला। हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को सख्त लहजे में फटकार लगाते हुए कहा है कि न्यायपालिका के लिए आवंटित बजट का भुगतान न होना अदालतों के सामान्य कामकाज को प्रभावित कर रहा है।
कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि वित्त सचिव स्वयं 10 करोड़ रुपए का ड्राफ्ट लेकर 13 नवंबर को अदालत में पेश हों, अन्यथा राज्य सरकार के खिलाफ कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट (अवमानना) की कार्रवाई शुरू की जाएगी। सयदि राशि अदालत में जमा कर दी जाती है, तो वित्त सचिव की उपस्थिति आवश्यक नहीं होगी।
इस मामले में हिमाचल हाईकोर्ट ने वर्ष 2023 में जनहित याचिका के रूप में स्वत: संज्ञान (Suo Motu) लिया था। कोर्ट ने पाया कि रिटायर्ड जजों और न्यायालय प्रशासन से संबंधित खर्चों के भुगतान में लगातार देरी की जा रही है।
सुप्रीम कोर्ट पहले ही निर्देश दे चुका है कि रिटायर्ड जजों को आंध्र प्रदेश मॉडल के अनुसार वित्तीय लाभ दिए जाएँ, और यह व्यवस्था 1 अक्टूबर 2014 से लागू मानी जाएगी। लेकिन हिमाचल सरकार ने इसे 14 मई 2025 की अधिसूचना से लागू किया, जिससे पुरानी अवधि का भुगतान अधर में लटक गया।
कोर्ट के मुताबिक, हाईकोर्ट को आवंटित धनराशि अभी तक जारी नहीं की गई है।
अदालत ने यह भी पाया कि सरकार ने 7 नए जिला न्यायाधीशों और 39 सिविल जजों की अदालतों की स्थापना के प्रस्ताव पर कोई कार्रवाई नहीं की। वित्त विभाग हर बार वित्तीय संसाधन नहीं हैं का हवाला देकर इस पर रोक लगा रहा है।
राज्य सरकार की ओर से एडवोकेट जनरल अनूप रत्न पेश हुए। उन्होंने अदालत को बताया कि मामला संवेदनशील है, इसलिए अंतिम निर्णय के लिए मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू को भेजा गया है। इस पर अदालत ने नाराज़गी जताई और कहा कि सरकार सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट दोनों के आदेशों की अनदेखी कर रही है।
कोर्ट द्वारा नियुक्त सीनियर एडवोकेट नीरज गुप्ता (अमिकस क्यूरी) ने दलील दी कि राज्य सरकार ने खुद तो मंत्रियों और विधायकों की सैलरी बढ़ा दी, लेकिन न्यायपालिका के बकाए भुगतान रोक दिए हैं। उन्होंने कहा कि यह सीधे तौर पर न्यायिक स्वतंत्रता पर प्रहार है। मुख्य न्यायाधीश गुरमीत सिंह संधावालिया और न्यायमूर्ति रंजन शर्मा की खंडपीठ ने कहा कि न्यायपालिका के बजट और खर्च को रोकना न्यायिक कार्य में हस्तक्षेप है, जो कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट एक्ट, 1971 की धारा 2(c), 2(i) और 3(i) के अंतर्गत दंडनीय अपराध है।