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July 4, 2025

हिमाचल मानसून : दो हफ्तों में 69 लोगों ने गंवाया जीवन, 37 अभी भी मलबे में कहीं दफन

15 पक्के और 55 कच्चे मकान क्षतिग्रस्त, मलबे में दबे 250 पशु

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Himachal Cloud Burst

शिमला। हिमाचल प्रदेश में मानसून की दस्तक इस बार राहत नहीं, बल्कि गहरा जख्म बनकर आई है। 20 जून को जैसे ही प्रदेश में मानसून ने प्रवेश किया, इसके साथ ही प्राकृतिक आपदाओं की एक श्रृंखला शुरू हो गई — कभी बादल फटने की घटनाएं, कभी भूस्खलन, तो कभी नदियों का रौद्र रूप। इस सबने मिलकर प्रदेश में जनजीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया है।

14 दिन में 69 मौतें

राजस्व विभाग की आपदा प्रबंधन रिपोर्ट के अनुसार, मानसून के इन पहले 14 दिनों में ही प्रदेश में 69 लोगों की जान चली गई। सबसे अधिक मौतें मंडी जिले (20) में दर्ज की गईं, जबकि कांगड़ा में 13, चंबा में 7, शिमला में 5, बिलासपुर और ऊना में 5-5 लोगों की मृत्यु हुई।

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37 लोग अभी भी हैं लापता

इसके अतिरिक्त कुल्लू, सोलन, हमीरपुर, किन्नौर और सिरमौर जैसे जिलों में भी जानमाल का नुकसान हुआ। इस दौरान 110 लोग घायल हुए और 37 लोग अब भी लापता हैं, जिनकी तलाश अब भी युद्धस्तर पर जारी है।

24 घंटे में 88.80 करोड़ का नुकसान

मानसून की इस तबाही से प्रदेश को हर दिन करोड़ों का नुकसान उठाना पड़ रहा है। 2 जुलाई तक नुकसान 407.02 करोड़ था, जो 3 जुलाई तक बढ़कर 495.82 करोड़ हो गया। यानी सिर्फ 24 घंटों में 88.80 करोड़ रुपए की अतिरिक्त क्षति हुई। यह आंकड़े केवल रिपोर्ट किए गए नुकसान के हैं, जमीनी स्तर पर हालात कहीं अधिक खराब हैं।

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गांवों-शहरों का संपर्क टूटा

जल शक्ति विभाग को अब तक 287.80 करोड़ का नुकसान हुआ है। तेज बारिश और बाढ़ से कई पेयजल योजनाएं बह गईं, और लाइनों के टूटने से हजारों लोग जल संकट से जूझ रहे हैं। इस आपदा में PWD विभाग को 203.88 करोड़ का नुकसान हुआ है। भारी बारिश के कारण कई सड़कें और पुलिया टूट गई हैं, जिससे गांव-शहरों का संपर्क टूट गया है।

मकान, दुकानें और गौशालाएं तबाह

  • इस प्राकृतिक आपदा के कारण-
  • 10 पक्के मकान और 8 कच्चे मकान पूरी तरह ढह गए।
  • 15 पक्के और 55 कच्चे मकान आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हुए।
  • 21 दुकानें और 198 गौशालाएं पूरी तरह से बर्बाद हो गईं।
  • 250 पशुओं की मौत भी दर्ज की गई है।

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राहत कार्य जारी, लेकिन चुनौतियां गंभीर

राजस्व विभाग के निदेशक एवं विशेष सचिव डीसी राणा ने बताया कि हमारी प्राथमिकता रेस्टोरेशन और रिलीफ मेजर्स हैं। वास्तविक नुकसान दर्ज आंकड़ों से कहीं अधिक है। फ्लैश फ्लड और मलबा इतनी तेजी से आता है कि लोगों को संभलने का मौका नहीं मिलता। मलबे के नीचे दबे लोगों की तलाश बेहद चुनौतीपूर्ण होती है। उन्होंने कहा कि लापता लोगों की खोज के लिए पूरी कोशिशें की जा रही हैं, लेकिन पिछले अनुभवों से यह भी स्पष्ट है कि ऐसे आपदाओं में कई लोग कभी नहीं मिल पाते।

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