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May 31, 2025
सावधान हिमाचल! जंक फूड-मसालेदार खाने से बढ़े फैटी लीवर के मामले, बच्चे भी नहीं सुरक्षित
हर दिन अस्पताल में 30-35 मामले आ रहे सामने
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सोलन। हिमाचल प्रदेश में लोगों के खानपान की आदतों में आई लापरवाही का असर अब सीधा उनकी सेहत पर पड़ने लगा है। प्रदेशभर के अस्पतालों में पेट दर्द की शिकायत लेकर पहुंचने वाले मरीजों में फैटी लीवर के मामले चिंताजनक रूप से बढ़े हैं।
हाल ही में की गई स्वास्थ्य जांच और स्क्रीनिंग रिपोर्टों से यह सामने आया है कि फैटी लीवर के मामलों में लगभग 40 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। सबसे हैरानी की बात यह है कि यह बीमारी अब केवल वयस्कों तक सीमित नहीं रही, बल्कि 10 साल तक के बच्चे भी इसके शिकार हो रहे हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि बच्चों में फैटी लीवर की मुख्य वजह अत्यधिक जंक फूड और मसालेदार भोजन की आदत है, जो शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में तेजी से बढ़ी है। क्षेत्रीय अस्पताल सोलन में पिछले कुछ समय से फैटी लीवर के मामले लगातार बढ़ रहे थे, जिसे देखते हुए स्वास्थ्य विभाग ने वहां विशेष स्क्रीनिंग की।
जांच के दौरान पता चला कि प्रतिदिन 30 से 35 मरीज केवल फैटी लीवर से संबंधित लक्षणों के साथ अस्पताल पहुंच रहे हैं। इससे पहले यह संख्या औसतन 20 ही थी। इस स्क्रीनिंग के दौरान यह भी उजागर हुआ कि फैटी लीवर पित्ताशय में पत्थरी बनने का भी बड़ा कारण बन रहा है।
कई मरीजों ने बताया कि उन्हें पहले फैटी लीवर की समस्या थी, और कुछ समय बाद पित्ताशय में पत्थरी पाई गई। सोलन अस्पताल में रोजाना 30 के करीब मरीज पित्त की पत्थरी की समस्या लेकर भी पहुंच रहे हैं।
डॉक्टरों के अनुसार, जब लीवर में 10 फीसदी या उससे अधिक फैट जमा हो जाता है, तब उसे फैटी लीवर कहा जाता है। अगर मरीज तीसरे ग्रेड तक पहुंच जाता है तो उसे लीवर सिरोसिस या लीवर फेल होने जैसी गंभीर समस्याएं हो सकती हैं। इसे तीन ग्रेड में विभाजित किया गया है –
सर्जन विशेषज्ञ डॉ. अंकित शर्मा के अनुसार, यदि समय रहते खानपान और जीवनशैली में बदलाव किया जाए, तो फैटी लीवर छह माह के भीतर ठीक हो सकता है। उन्होंने बताया कि बच्चों में यह समस्या जंक फूड से और बड़ों में अत्यधिक शराब, तेल-मसालेदार भोजन और शारीरिक निष्क्रियता के कारण हो रही है। यदि इन आदतों को नियंत्रित नहीं किया गया, तो यह समस्या घातक रूप ले सकती है।
फिलहाल, इस पूरे अध्ययन और स्क्रीनिंग की रिपोर्ट को प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग को भेजा जा रहा है, ताकि बड़े स्तर पर जनजागरूकता और रोकथाम के लिए कदम उठाए जा सकें। विशेषज्ञों का मानना है कि समय रहते लोगों को सतर्क करना बेहद जरूरी हो गया है, नहीं तो आने वाले समय में यह समस्या एक स्वास्थ्य आपातकाल का रूप ले सकती है।