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December 16, 2025

हिमाचल में 12 हजार लोग चिट्टे के जाल में फंसे : सरकार ने रेड-यलो-ग्रीन जोन में बांटी पंचायतें

हिमाचल में पंचायतों से शुरू हुई नशा-मुक्ति मुहिम

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Himachal Panchayats Chitta Addiction

शिमला। हिमाचल प्रदेश पिछले कुछ समय से नशे का प्रचलन काफी बढ़ गया है। ऐसे में हिमाचल सरकार ने हिमाचल को नशा मुक्त बनाने की ठान ली है। हिमाचल प्रदेश ने नशे के खिलाफ लड़ाई में एक ऐसा ठोस और व्यावहारिक मॉडल पेश किया है- जिसकी गूंज अब राज्य की सीमाओं से निकलकर राष्ट्रीय स्तर तक पहुंच रही है।

नशे के जाल में फंसे 12 हजार

पिछले कई सालों से चिट्टा और अन्य नशों से जूझ रहे युवाओं के लिए यह अभियान केवल सख्ती नहीं, बल्कि संवेदनशीलता और समाधान का संतुलित उदाहरण बनकर उभरा है। पंचायतों को सीधे इस मुहिम से जोड़ते हुए प्रदेश सरकार ने अब तक करीब 12,000 ऐसे व्यक्तियों की पहचान की है, जो नशे की गिरफ्त में हैं या इससे उबरने की प्रक्रिया में हैं।

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पंचायतों से शुरू हुई नशा-मुक्ति मुहिम

इस अभियान की सबसे बड़ी खासियत यह है कि नशा पीड़ितों की पहचान के लिए पंचायती राज संस्थाओं को केंद्र में रखा गया है। गांव और वार्ड स्तर पर रहने वाले प्रतिनिधि और स्थानीय समितियां जमीनी हकीकत से भली-भांति परिचित होती हैं। इसी के चलते सरकार ने राष्ट्रीय स्तर पर एक अनुकरणीय मॉडल पेश किया है।

रेड, यलो और ग्रीन: समस्या की सटीक पहचान

सरकार द्वारा अपनाए गए इस मॉडल के तहत नशा पीड़ितों को तीन स्पष्ट श्रेणियों में बांटा गया है- रेड, येलो और ग्रीन जोन।

  • रेड जोन- रेड जोन में वे लोग रखे गए हैं- जो चिट्टा जैसे अत्यंत घातक नशों के गंभीर आदी हैं और जिनके लिए तत्काल चिकित्सा उपचार, डी-एडिक्शन और कड़ी निगरानी जरूरी है।
  • येलो जोन- येलो जोन में वे व्यक्ति शामिल हैं-जो नशे की गिरफ्त में तो हैं, लेकिन जिनकी स्थिति रेड जोन जितनी गंभीर नहीं है। इनके लिए नियमित काउंसलिंग, परिवारिक सहयोग और निरंतर फॉलो-अप की व्यवस्था की जा रही है।
  • ग्रीन जोन- ग्रीन जोन उन लोगों का प्रतिनिधित्व करता है- जिन्होंने नशे को छोड़ दिया है या छोड़ने की दिशा में सफल कदम बढ़ा चुके हैं। इनका मुख्य फोकस सामाजिक पुनर्वास, रोजगार से जोड़ना और दोबारा नशे की ओर लौटने से रोकना है।

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व्यक्ति-केंद्रित उपचार की दिशा में बड़ा कदम

12 हजार से अधिक लोगों की इस तरह वर्गीकृत पहचान के बाद सरकार अब ‘वन साइज फिट्स ऑल’ की बजाय व्यक्ति-केंद्रित उपचार योजनाएं लागू कर रही है। हर व्यक्ति की स्थिति, पारिवारिक पृष्ठभूमि और नशे की गंभीरता को ध्यान में रखकर उपचार के तहत कार्यक्रम तैयार किए जा रहे हैं।

राष्ट्रीय स्तर पर बन रहा हिमाचल मॉडल

हिमाचल प्रदेश का यह मॉडल इसलिए भी अलग और प्रभावी माना जा रहा है क्योंकि इसमें केवल पुलिस कार्रवाई या पोस्टर-बैनर तक सीमित प्रयास नहीं हैं। पंचायतों, प्रशासन, स्वास्थ्य, शिक्षा और पुलिस विभाग के समन्वय से एक मजबूत और भरोसेमंद डाटाबेस तैयार किया गया है। इसी कारण अन्य राज्य और केंद्र सरकार भी इस मॉडल का अध्ययन कर रहे हैं, ताकि इसे अपने-अपने क्षेत्रों में लागू किया जा सके।

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लगातार चल रही रणनीतिक बैठकें

इस अभियान को गति देने के लिए जिला और उपमंडल स्तर पर नियमित बैठकें की जा रही हैं। इन बैठकों में कई मुद्दों पर अहम चर्चा की जा रही है। जैसे कि-

  • नशा तस्करी से जुड़ी स्थानीय सूचनाओं की समीक्षा
  • नशे के रोकथाम को लेकर रणनीति पर विचार
  • नशे को लेकर जागरूकता अभियान
  • संवेदनशील इलाके व हॉटस्पॉट की पहचान

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जमीनी सूचनाओं पर मंथन, समुदाय की भागीदारी

बैठकों में नशा तस्करी से जुड़ी स्थानीय सूचनाओं की समीक्षा की जा रही है। इसके साथ ही समुदाय आधारित जागरूकता अभियानों की रूपरेखा तैयार की गई है, ताकि आम जनता भी इस लड़ाई का हिस्सा बने। इसके अलावा स्कूलों, कॉलेजों, पंचायत सभाओं और स्वयंसेवी संगठनों के माध्यम से युवाओं और अभिभावकों को नशे के खिलाफ जागरूक किया जा रहा है।

इलाज भी, सख्ती भी

प्रदेश सरकार ने साफ कर दिया है कि नशे के खिलाफ यह लड़ाई लंबी है और इसे अधूरा नहीं छोड़ा जाएगा। एक ओर जहां नशा पीड़ितों के पुनर्वास और समाज में सम्मानजनक वापसी पर जोर रहेगा, वहीं दूसरी ओर नशा तस्करों के नेटवर्क को जड़ से खत्म करने के लिए सख्त कार्रवाई भी जारी रहेगी। विशेष रूप से ग्रीन ज़ोन में शामिल लोगों को मुख्यधारा से जोड़ने के लिए रोजगार, कौशल विकास और सामाजिक सहयोग के कार्यक्रम तेज किए जाएंगे।

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