#विविध
July 11, 2025
हिमाचल आपदा : बाढ़ के सैलाब में बही पत्नी और 3 बेटियां, घर की जगह बचा सिर्फ मलबा
गांव छोड़कर चला गया इंद्र, नहीं देखना चाहता मुड़कर
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मंडी। हिमाचल के मंडी जिले की खूबसूरत सराज घाटी को बरसात कभी ना भूलने वाली गम दे गई है। 30 जून की रात को जो आपदा सराज घाटी में आई- उसने ना सिर्फ हिमाचल बल्कि पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। इस त्रासदी में कई परिवार पूरी तरह उजड़ गए हैं।
बारिश थम चुकी है, लेकिन गांवों में पसरा सन्नाटा व मातम और हर चेहरे पर फैला ग़म इस बात की गवाही दे रहा है कि इस आपदा ने सिर्फ मिट्टी और पत्थर ही नहीं, बल्कि इंसानों के अरमान, रिश्ते और भविष्य सब कुछ बहा दिए।
सराज की पखरैर पंचायत का देजी गांव अब वीरान हो चुका है। कभी यहां हंसी-ठिठोली से गुलजार रहने वाले 35 लोगों का परिवार अब 11 अपनों की असमय विदाई का ग़म झेल रहा है। इनमें से 9 लोग एक ही परिवार से थे, जिन्हें बाढ़ ने चंद मिनटों में निगल लिया। घरों की जगह अब सिर्फ मलबा और बिखरी यादें बची हैं।
इंद्र सिंह उन लोगों में से एक हैं जिनकी पूरी दुनिया उजड़ गई। पत्नी भुवनेश्वरी और तीन बेटियां- एकता, दिवांशी और कामाक्षी सब की सब उस रात अपने ही घर में बह गईं। इंद्र अब उस जगह को देखना भी नहीं चाहता जहां कभी उसका आशियाना था। दुख इतना गहरा है कि शब्द भी उसके सामने फीके लगते हैं। वह अब ज्यूणी वैली में अपने भाई के पास शरण लिए हुए है। इंद्र ने बताया कि बाढ़ ने संभलने का मौका ही नहीं दिया और चंद मिनटों में उसका संसार उजड़ गया।
मुकेश की कहानी भी कम मार्मिक नहीं है। बेटी की सलाह मानकर वह उस रात घर नहीं गया, बस एक आखिरी बार फोन पर बात हुई थी। लेकिन जब तक वह लौटता, सब कुछ खत्म हो चुका था। उसकी जुड़वां बेटियां सुभांशी और उर्वशी, और आठ साल का बेटा सुरांश- सभी काल के गाल में समा चुके थे। अब वह अपने भाई के साथ रह रहा है, लेकिन अंदर से टूट चुका है।
मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू भी पीड़ितों के इस दर्द को करीब से महसूस करने के लिए काफिला छोड़कर पैदल ही रील गांव पहुंचे। उन्होंने पीड़ित परिवारों से मुलाकात की और उन्हें ढांढस बंधाया। लेकिन यह वह घाव हैं जिन्हें न तो कोई शब्द भर सकते हैं और न ही कोई आश्वासन।
पखरैर पंचायत में 51 घर, 15 गोशालाएं, एक प्राथमिक स्कूल, हेल्थ सब सेंटर, आयुर्वेदिक डिस्पेंसरी और पशु चिकित्सालय पूरी तरह नष्ट हो चुके हैं। राहत शिविरों में लोग अब भी खुले आसमान के नीचे हैं, जहां भूख, ठंड और अपनों की याद हर रात एक नए दुःस्वप्न को जन्म देती है।
सराज घाटी के गांवों में अब न चूल्हे जलते हैं, न ही बच्चों की किलकारियां सुनाई देती हैं। समय के साथ मलबा हट जाएगा, रास्ते बहाल हो जाएंगे, लेकिन जो खालीपन इन परिवारों में घर कर चुका है, उसे भरने में शायद पूरी उम्र लग जाए।