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July 11, 2025

कर्ज में डूबी सुक्खू सरकार पर पड़ी "आपदा", सीमित लोन लिमिट से कैसे देगी बाढ़ पीड़ितों को राहत

प्रदेश झेल रहा केंद्र की कैपिंग और कर्ज का संकट

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Himachal Budget Crisis

शिमला। हिमाचल प्रदेश इस समय दोहरी चुनौती से जूझ रहा है एक ओर राज्य मानसून के चलते आई प्राकृतिक आपदाओं से त्रस्त है, तो दूसरी ओर आर्थिक संकट की गहराई लगातार बढ़ती जा रही है। आपदा से राहत एवं पुनर्वास कार्यों का दायित्व उठाने में सरकार की स्थिति पहले से ही कमजोर वित्तीय आधार के चलते और अधिक दयनीय हो गई है। क्योंकि कर्ज लिमिट भी अब कम हो गई है।

केंद्र की कैपिंग और कर्ज का संकट

वित्तीय वर्ष 2025-26 में हिमाचल सरकार को केंद्र सरकार की ओर से सिर्फ 7,000 करोड़ रुपये तक कर्ज लेने की अनुमति है। लेकिन जुलाई तक इसमें से करीब 4,200 करोड़ रुपये का उपयोग हो चुका है।

 

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इसका अर्थ है कि अब शेष बचे 3,800 करोड़ रुपये से ही सरकार को अपनी वित्तीय ज़रूरतें पूरी करनी होंगी, जबकि हर महीने सिर्फ वेतन, पेंशन और ब्याज अदायगी जैसे जरूरी खर्चों के लिए ही लगभग 2,800 करोड़ रुपये की आवश्यकता रहती है।

डी.ए. और राहत पैकेज की चुनौती

इसमें वेतन पर 2,000 करोड़ रुपये, पेंशन पर 800 करोड़ रुपये, पहले से लिए गए कर्ज के ब्याज पर 500 करोड़ और मूलधन चुकाने पर 300 करोड़ रुपये खर्च होते हैं। इस स्थिति में सरकार का अन्य योजनाओं या आपदा राहत के लिए अतिरिक्त खर्च निकालना बेहद कठिन हो गया है। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने बजट भाषण में कर्मचारियों को 3 फीसदी डी.ए. देने की घोषणा की थी, जो 15 मई, 2025 से लागू होना है।

 

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लेकिन मौजूदा हालात में इसके लिए धन जुटा पाना एक बड़ी चुनौती बन गई है। वहीं, आपदा पीड़ितों के लिए विशेष राहत पैकेज की योजना भी निर्माणाधीन है, जिस पर अंतिम निर्णय आगामी कैबिनेट बैठक में लिया जा सकता है।

उम्मीदें 16वें वित्तायोग पर टिकीं

प्रदेश सरकार को मौजूदा संकट से बाहर निकालने की उम्मीद अब 16वें वित्तायोग की सिफारिशों पर टिकी है, जो 1 अप्रैल, 2026 से लागू होंगी। मुख्यमंत्री सुक्खू ने वित्तायोग के अध्यक्ष डॉ. अरविंद परगढ़िया से मुलाकात कर राज्य को अधिक राजस्व घाटा अनुदान (RDG) देने की मांग रखी है।

 

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गौरतलब है कि, 15वें वित्तायोग के कार्यकाल में हिमाचल को मिलने वाली आर.डी.जी. लगातार घटती गई 2020-21 में जहां यह 11,431 करोड़ थी, वहीं 2025-26 में यह घटकर मात्र 3,257 करोड़ रह गई है। इससे प्रदेश की आर्थिक स्थिति पर गंभीर असर पड़ा है। राज्य पर कुल कर्ज़ अब एक लाख करोड़ रुपये के करीब पहुंच चुका है, जो भविष्य की वित्तीय स्थिरता पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर रहा है।

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