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May 27, 2025

हिमाचल : पहले छिन गई टांग, फिर आपदा में गिर गया मकान- परिवार के पास नहीं रोटी तक के पैसे

पत्नी पर आई घर चलाने की जिम्मेदारी- लोगों के घर किया काम

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Bilaspur News

बिलासपुर। हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले का एक परिवार आज दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हो गया है। बिलासपुर जिले की घुमारवीं विधानसभा क्षेत्र के गांव तियूण (गढ़) निवासी 80 प्रतिशत विकलांग चुंहकू राम और उनकी पत्नी भागा देवी की जिंदगी आज समाज के सामने एक बड़ा सवाल बनकर खड़ी है।

दर-दर ठोकरे खा रहा परिवार

यह वृद्ध दंपति गरीबी, लाचारी और सरकारी बेरुखी के ऐसे मोड़ पर आ पहुंचा है, जहां इंसान की जिजीविषा भी घुटनों के बल बैठ जाती है। दिहाड़ी मजदूरी करके कभी रोटी का इंतजाम करने वाले चुंहकू राम की जिंदगी उस दिन पूरी तरह बदल गई जब वह सिली-सोलन में रेत की खान में मजदूरी करते हुए हादसे का शिकार हो गया।

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टांग में गिरी पत्थर

खान से गिरे एक पत्थर ने उसकी टांग कुचल दी और PGI ई चंडीगढ़ में इलाज के दौरान उसकी टांग काटनी पड़ी। इसके बाद वह विकलांग हो गया और मजदूरी करने में असमर्थ हो गया।

पत्नी ने संभाली जिम्मेदारी

पति की अपंगता के बाद घर चलाने की जिम्मेदारी भागा देवी के कंधों पर आ गई। अपने छोटे-छोटे बच्चों और बीमार पति की परवरिश के लिए भागा देवी लोगों के घरों में दिहाड़ी करने लगी। इस बीच उन्हें ग्राम पंचायत द्वारा वर्ष 2007 में मुख्यमंत्री आवास योजना के तहत दो कमरों का एक छोटा मकान मिला, जिसमें परिवार किसी तरह अपना गुजारा करने लगा।

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बारिश ने छीन लिया एकमात्र आशियाना

वर्ष 2023 में प्रदेश में हुई भारी बारिश ने उनके इस छोटे से घर को भी तबाह कर दिया। मकान जमींदोज हो गया और पटवार हलका ने नुकसान का निरीक्षण कर रिपोर्ट भी बनाई, पर आज तक ना कोई मुआवजा मिला और ना ही तिरपाल तक दी गई।

गांव वालों की दरियादिली बनी सहारा

इन हालातों में गांव के ही एक व्यक्ति मक्खन सिंह के खेत में एक स्थानीय व्यक्ति द्वारा दी गई तिरपाल से टैंट बनाकर इस परिवार ने सिर छुपाया। बाद में गिरे हुए मकान की टीन से खोखा बनाया गया और उसमें एक चारपाई रखी गई। मगर वह भी टिकाऊ नहीं था। अंततः गांव के ही रूप लाल नामक व्यक्ति ने उन्हें अपने घर का एक कमरा रहने के लिए दे दिया, जिसमें आज यह दंपति रह रहा है।

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बीमारी ने और तोड़ डाला

हाल ही में चुंहकू राम की तबीयत बिगड़ गई और वह सांस की बीमारी से जूझने लगा। उसे ऑक्सीजन की जरूरत पड़ने लगी। इस कठिन समय में स्थानीय लोगों ने एंबुलेंस की व्यवस्था की और उसे IGMC शिमला पहुंचाया, जहां किसी तरह उसकी जान तो बच गई, लेकिन इलाज के खर्च ने परिवार की कमर पूरी तरह तोड़ दी।

बच्चे अब दिहाड़ी पर

अब जब बच्चे बड़े हो गए हैं तो वह भी दिहाड़ी पर मजदूरी करके मां-बाप की देखभाल कर रहे हैं, लेकिन यह नाकाफी है। इस परिवार को आज भी सरकारी योजनाओं का सीधा लाभ नहीं मिल रहा, जो कि प्रशासनिक तंत्र की असफलता को उजागर करता है।

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परिवार को मिले हर संभव मदद

जिला विश्वकर्मा सभा के अध्यक्ष रमेश कौंडल ने प्रशासन से आग्रह किया है कि इस मामले को प्राथमिकता से लेते हुए मौके पर जाकर निरीक्षण किया जाए और नियमों से हटकर भी मदद की जाए। वहीं, ग्राम पंचायत तियूण खास के प्रधान रूप लाल का कहना है कि परिवार को BPL सूची में डाला गया है और पंचायत अपनी ओर से मदद करने का हर संभव प्रयास कर रही है।

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