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October 1, 2025
हिमाचल : दुकानदार ने कैरी बैग के लिए 6 रुपये, अब महिला को लौटाएगा आठ हजार- जानें पूरा मामला
चप्पल खरीदने शोरूम में आई थी महिला
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शिमला। हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में एक दुकानदार को ग्राहक से कैरी बैग के पैसे वसूलना महंगा पड़ गया है। कैरी बैग के 6 रुपये वसूलने के मामले में एक दुकानदार को अब ग्राहक को शुल्क समेत आठ हजार रुपये देने होंगे।
जिला उपभोक्ता आयोग ने एक अहम आदेश जारी करते हुए यह साफ कर दिया है कि कोई भी दुकानदार या शोरूम ग्राहकों से कैरी बैग के नाम पर अतिरिक्त शुल्क नहीं वसूल सकता। आयोग ने इस मामले को अनुचित व्यापार व्यवहार मानते हुए ग्राहकों के पक्ष में निर्णय सुनाया है।
21 जनवरी 2024 को शिमला के लोअर बाजार स्थित बाटा शूज स्टोर में प्रीति सूद नामक महिला चप्पलें खरीदने गईं। उन्होंने 249.50 रुपये प्रति जोड़ी की दर से दो जोड़ी चप्पल खरीदीं। लेकिन जब बिल देखा गया तो उसमें 505 रुपये अंकित थे, जबकि दोनों चप्पलों की वास्तविक कीमत 499 रुपये बनती थी।
महिला ने जब स्टोर प्रबंधक से अतिरिक्त राशि का कारण पूछा, तो पता चला कि 6 रुपये कैरी बैग के लिए वसूले गए हैं। बिल के साथ जो पेपर बैग दिया गया, उस पर बाटा इंडिया लिमेटेड की ब्रांडिंग थी, जबकि बैग का वास्तविक निर्माता AUM Polyprint Pvt. Ltd. था।
शिकायतकर्ता ने तर्क दिया कि यह बैग न तो उनका खरीदने का इरादा था और न ही इसकी मांग की गई थी। बल्कि स्टोर ग्राहकों से कैरी बैग का पैसा लेकर अपनी कंपनी का विज्ञापन कर रहा था। इसी आधार पर उन्होंने आयोग में शिकायत दर्ज करवाई।
4 सितंबर 2025 को आयोग ने एकपक्षीय कार्यवाही में आदेश सुनाते हुए कहा कि कैरी बैग को बिक्री का अभिन्न हिस्सा माना जाएगा। ग्राहकों से इसके लिए अलग से शुल्क लेना न तो कानूनी है और न ही नैतिक। दुकान मालिक का कर्तव्य है कि खरीदे गए सामान को ग्राहक तक सुरक्षित तरीके से पहुंचाने के लिए निःशुल्क कैरी बैग उपलब्ध कराए।
6 रुपये बैग शुल्क शिकायतकर्ता को वापस किया जाए। मानसिक उत्पीड़न के लिए 5,000 रुपये मुआवजा दिया जाए। मुकदमेबाजी खर्च के तौर पर 3,000 रुपये अदा किए जाएं। इन सभी राशि का भुगतान 45 दिनों के भीतर किया जाना अनिवार्य होगा।
शिमला समेत प्रदेश के कई बड़े शहरों में यह आम प्रथा बन चुकी है कि बड़े शोरूम और ब्रांड स्टोर ग्राहक से महंगे सामान खरीदवाने के बावजूद कैरी बैग का शुल्क अलग से वसूलते हैं।
छोटे दुकानदार, रेहड़ी-पटरी वाले या फेरीवाले सामान को बैग या अखबार में लपेटकर ग्राहकों को मुफ्त में देते हैं।
जबकि बड़े शोरूम ग्राहकों पर यह अतिरिक्त भार डालते हैं, जो उपभोक्ता अधिकारों के खिलाफ है। आयोग ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि ग्राहक से यह अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वह अपने हाथों में सामान लेकर ही बाहर निकले।
जिला आयोग के अध्यक्ष डॉ. बलदेव सिंह ने कहा कि इस तरह की प्रथाओं को सेवा में कमी और अनुचित व्यापार व्यवहार माना जाएगा। यदि कोई शोरूम या स्टोर ऐसा करता है तो ग्राहक उपभोक्ता आयोग में शिकायत दर्ज कर मुआवजा प्राप्त कर सकता है।