#अव्यवस्था
December 21, 2025
हिमाचल में मनरेगा के पैसों का हिसाब गोलमाल : कागजों में की बड़ी गड़बड़ी, अब खुली पोल
पंचायतों के सोशल ऑडिट में हुआ बड़ा खुलासा
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सोलन। देश में एक तरफ जहां लोकसभा ने दो दशकों से चल रही रोजगार गारंटी योजना मनरेगा की जगह रोजगार और आजीविका मिशन (ग्रामीण) विधेयक 2025 पारित कर दिया है। जिसके बाद पूरे देश में कांग्रेस पार्टी प्रदर्शन करती दिख रही है, वहीं हिमाचल प्रदेश में मनरेगा के कार्यों में हुई गड़बड़ी ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा है ।
सोलन जिले में मनरेगा के तहत कराए गए विकास कार्यों की जमीनी हकीकत सोशल ऑडिट में सामने आ गई है। जिले की ग्राम पंचायतों में हुए सोशल ऑडिट के दौरान पैसों व कागजों की हेराफेरी का मामला सामने आया है।
जिले की 217 पंचायतों में करीब 62.10 लाख रुपए की कथित अनियमितताओं का खुलासा हुआ है। यह आंकड़ा न सिर्फ प्रशासनिक लापरवाही की ओर इशारा करता है, बल्कि ग्रामीण विकास योजनाओं की निगरानी व्यवस्था पर भी गंभीर सवाल खड़े करता है।
सोशल ऑडिट रिपोर्ट के अनुसार कुल सामने आई अनियमितताओं में 91,444 रुपए की राशि सीधे वित्तीय गड़बड़ी के दायरे में आती है, जबकि 61.19 लाख रुपए की अनियमितता ‘डेविएशन’ यानी स्वीकृत कार्यों से विचलन से जुड़ी है।
दरअसल, सोलन जिले में ग्राम पंचायतों की कुल संख्या 240 है- जिनमें से 217 पंचायतों का सोशल ऑडिट कर लिया गया है। इसी ऑडिट में पाया गया है कि ज्यादातर मामले डेविएशन के हैं। यानी नियमों की अनदेखी की गई है। जैसे कि जहां काम स्वीकृत था- उसकी जगह पर किसी और जगह पर काम कर दिया गया।
यहां देखें ब्लॉक वाइज अनियमितता का ब्यौरा-
मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए ADC सोलन राहुल जैन ने कहा कि सोशल ऑडिट में सामने आए अधिकांश मामले डेविएशन से संबंधित हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि इन मामलों का समाधान ग्राम सभा की बैठकों में चर्चा और रिकॉर्ड सुधार के माध्यम से किया जा सकता है।
ADC ने बताया कि जिला प्रशासन ने इस संबंध में सभी BDO को पत्र लिखकर निर्देश जारी कर दिए हैं। संबंधित ग्राम पंचायतों से ऑडिट में उठाए गए सवालों पर स्पष्टीकरण और जवाब तलब किया जाएगा। जहां आवश्यक होगा, वहां सुधारात्मक कार्रवाई भी अमल में लाई जाएगी।
वहीं, प्रशासन इसे तकनीकी और प्रक्रिया से जुड़ा मामला मान रहा है, लेकिन इतनी बड़ी राशि का डेविएशन यह सवाल जरूर खड़ा करता है कि मनरेगा जैसे अहम रोजगार और विकास कार्यक्रम की निगरानी कितनी प्रभावी है। आने वाले समय में यह देखना अहम होगा कि सोशल ऑडिट की रिपोर्ट के बाद दोषी अधिकारियों और पंचायत प्रतिनिधियों के खिलाफ क्या ठोस कदम उठाए जाते हैं।