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March 31, 2025

हिमाचल की 1400 पंचायतों ने मनरेगा में नहीं खर्चा एक भी रुपया, हुआ बड़ा खुलासा

सात वर्षों में सैंकड़ों पंचायतों ने नहीं किया मनरेगा फंड का उपयोग

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himachal news

शिमला। हिमाचल प्रदेश में वर्ष 2015 से 2021 तक किए गए सोशल ऑडिट में एक चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार, प्रदेश की 1,406 पंचायतों ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत एक भी पैसा खर्च नहीं किया। यह आंकड़ा सरकार की ग्रामीण रोजगार योजना के प्रभावी क्रियान्वयन पर गंभीर सवाल खड़ा करता है।

सात वर्षों का लेखा-जोखा

मनरेगा के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में हर परिवार को 100 दिनों का रोजगार सुनिश्चित करने का प्रावधान है। हिमाचल प्रदेश में यह सीमा 120 दिन तय की गई है, लेकिन बावजूद इसके कई पंचायतों ने इस योजना के तहत कोई खर्च नहीं किया। वर्षवार आंकड़ों पर नजर डालें तो –

  • 2015 में 68 पंचायतों ने मनरेगा में कोई राशि खर्च नहीं की।
  • 2016 में यह संख्या घटकर 26 हो गई।

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  • 2017 में 34 पंचायतों ने योजना में भाग नहीं लिया।
  • 2018 में बड़ी बढ़ोतरी देखने को मिली और 424 पंचायतें मनरेगा में निष्क्रिय रहीं।
  • 2019 और 2020 में यह संख्या क्रमशः 425 और 418 रही।
  • 2021 में हालांकि यह संख्या घटकर 11 पंचायतों तक सीमित रही।

दिव्यांग लोगों के लिए मनरेगा बनी सहारा

रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि सात वर्षों में कुल 10,803 दिव्यांग व्यक्तियों ने मनरेगा के तहत रोजगार प्राप्त किया। वर्ष 2021 में सबसे अधिक 1,877 दिव्यांग श्रमिकों ने इस योजना का लाभ उठाया, जिससे यह स्पष्ट होता है कि यह योजना जरूरतमंद लोगों के लिए रोजगार का एक महत्वपूर्ण जरिया बनी हुई है।

मनरेगा में मजदूरी दर में हुआ इजाफा

  • प्रदेश में मनरेगा के तहत मजदूरी दर में समय-समय पर वृद्धि दर्ज की गई।
  • 2015-16 में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन की मजदूरी 161.24 रुपए थी।
  • 2021-22 तक यह बढ़कर 202.12 रुपए हो गई।

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  • सात वर्षों में मजदूरी दर में 40.88 रुपए की वृद्धि दर्ज की गई।
  • राज्य सरकार ने पिछले वर्ष मनरेगा के मजदूरी भुगतान में 60 रुपए का अतिरिक्त योगदान किया, जिससे श्रमिकों को आर्थिक लाभ मिला।
  • बजट सत्र 2025-26 के लिए हिमाचल सरकार ने 20 रुपए और बढ़ोतरी कर दी है।

जनजातीय क्षेत्रों में कम रुचि

विशेषज्ञों का मानना है कि जनजातीय, दुर्गम और दूरस्थ क्षेत्रों में मनरेगा को लेकर जागरूकता की कमी है। कई पंचायतों में आवश्यक संसाधनों का अभाव भी देखा गया, जिसके चलते वहां इस योजना पर अपेक्षित रूप से काम नहीं हो पाया। इसके अलावा, मजदूरी के भुगतान में देरी और कार्यों की सुस्त गति भी इस योजना के प्रभावी क्रियान्वयन में बाधा बनी हुई है।

सरकार के सामने बड़ी चुनौती

ग्रामीण विकास एवं पंचायतीराज मंत्री अनिरुद्ध सिंह के अनुसार, हिमाचल प्रदेश में मनरेगा के तहत दिव्यांगजन भी रोजगार प्राप्त कर रहे हैं, मजदूरी दर में सुधार हुआ है, लेकिन दुर्गम क्षेत्रों में इस योजना को लेकर रुचि कम देखने को मिल रही है। सरकार का प्रयास रहेगा कि अधिक से अधिक पंचायतों को इस योजना से जोड़ा जाए और योजना के तहत धनराशि का प्रभावी उपयोग सुनिश्चित किया जाए।

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बहरहाल, मनरेगा जैसी महत्वपूर्ण योजना का सही क्रियान्वयन सुनिश्चित करना सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। जहां यह योजना दिव्यांग और जरूरतमंदों के लिए एक सहारा बनी है, वहीं कई पंचायतों द्वारा फंड का उपयोग न किया जाना चिंताजनक है। सरकार और प्रशासन को मिलकर इस योजना को अधिक प्रभावी बनाने के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है, ताकि ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसरों को बढ़ावा दिया जा सके।

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