#उपलब्धि
June 26, 2025
हिमाचल : जिसे किताबें नहीं दिखीं, उसने जीत ली दुनिया- UPSC क्रैक कर उमेश बने पहले दृष्टिबाधित अफसर
उमेश ने हालातों से कभी नहीं मानी हार
शेयर करें:
सिरमौर। जो देख न सके दुनिया को अपनी आंखों से, उन्होंने देखा सपना दिल की रोशनी से। हिमाचल प्रदेश के एक छोटे से गांव से निकलकर, अपने बुलंद हौसलों और अटूट संकल्प के बल पर उमेश कुमार ने वह कर दिखाया जो लाखों युवाओं का सपना होता है।
पूरी तरह दृष्टिबाधित होने के बावजूद उन्होंने संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) की कठिन परीक्षा पास कर भारतीय राजस्व सेवा (IRS) में चयन पाया और न केवल अपने गांव को, बल्कि पूरे हिमाचल को गौरवांवित किया। वे प्रदेश के पहले दृष्टिबाधित युवा हैं जिन्होंने UPSC क्रैक कर यह कीर्तिमान रचा।
पांवटा साहिब उपमंडल के कोलर गांव के रहने वाले उमेश कुमार की यह यात्रा संघर्षों से भरी रही, लेकिन उन्होंने कभी हालातों के आगे हार नहीं मानी। एक साधारण किसान परिवार में जन्मे उमेश के पिता दलजीत सिंह खेती करते हैं और माता कमलेश कुमारी एक सेवानिवृत्त शिक्षिका हैं। माता-पिता ने कभी उन्हें उनकी शारीरिक सीमा का एहसास नहीं होने दिया और हर कदम पर उनका हौसला बढ़ाया।
उमेश ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गांव के सरकारी स्कूल से ली। पूरी तरह दृष्टिहीन होने के कारण पढ़ाई आसान नहीं थी, लेकिन उन्होंने तकनीक को साथी बनाया और लैपटॉप की मदद से पढ़ाई जारी रखी। हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में एमए करते हुए उन्होंने UGC NET और उसके बाद जेआरएफ जैसी कठिन परीक्षा पास की।
इसके बाद उन्होंने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) में पीएचडी के लिए प्रवेश लिया और शैक्षणिक क्षेत्र में भी अपनी अलग पहचान बनाई। उमेश की सबसे बड़ी उपलब्धि वर्ष 2020-21 में तब सामने आई जब उन्होंने UPSC परीक्षा में अखिल भारतीय स्तर पर 397वीं रैंक प्राप्त की और IRS अधिकारी बनने का सपना पूरा किया। यह सफलता केवल उनके लिए नहीं, बल्कि हर उस युवा के लिए प्रेरणा है जो किसी न किसी चुनौती से जूझ रहा है।
मार्च 2023 में राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक विशेष कार्यक्रम में जब उमेश कुमार ने CPWD और IRS के प्रशिक्षु अधिकारियों के सामने अपने अनुभव साझा किए, तो पूरे सभागार में सन्नाटा छा गया। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के समक्ष दिए उनके भाषण में आत्मविश्वास, विचारों की स्पष्टता और भाषा की गरिमा ने सबको अभिभूत कर दिया।
उमेश की कहानी साबित करती है कि अगर इरादे मजबूत हों, तो आंखों का न देख पाना भी सपनों को साकार करने से नहीं रोक सकता। उनका जीवन इस बात की मिसाल है कि रोशनी केवल आंखों से नहीं, बल्कि आत्मा की आस्था और मन की शक्ति से आती है।
आज उमेश उन हजारों युवाओं के लिए प्रेरणा हैं जो किसी न किसी कमी के बावजूद आगे बढ़ना चाहते हैं। उनकी सफलता हर किसी को यह संदेश देती है कि "मुश्किलें राह की हों या खुद की सीमाएं, जो ठान लें कुछ कर दिखाना, वो मंज़िल पा ही लेते हैं।"