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June 26, 2025

हिमाचल : 12 बार असफल हुआ, मगर नहीं टूटा हौसला- किसान के बेटे ने अफसर बन रचा इतिहास

खेतीबाड़ी करते हैं आनंद के माता-पिता

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Anand Kumar

बिलासपुर। ये तो आप सब ने सुना ही होगा कि जिन्हें राहों से डर नहीं लगता, वो कांटों में भी मंज़िल तलाश लेते हैं। इन शब्दों को साबित कर दिखाया है हिमाचल के बिलासपुर जिले में स्थित छोटे से गांव में रहने वाले आनंद कुमार ने।

बड़ा अफसर बना आनंद

घुमारवीं उपमंडल की ग्राम पंचायत दधोल के छोटे से गांव दधोल कलां के आनंद कुमार मंगलम ने यह पंक्तियां अपने जीवन में साकार कर दी हैं। हिमाचल प्रदेश अधीनस्थ संयुक्त सेवाएं परीक्षा (Allied Services Exam)-2023 में शानदार प्रदर्शन करते हुए उन्होंने एक्साइज एंड टैक्सेशन इंस्पेक्टर कम ऑफिसर के पद पर चयन प्राप्त किया है।

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नहीं मानी कभी हार

उनकी इस उपलब्धि ने न केवल उनके परिवार, बल्कि पूरे गांव का मान बढ़ाया है। आनंद का सफर कोई आसान नहीं रहा। सीमित संसाधनों, आर्थिक तंगी और बार-बार की असफलताओं के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी।

 

आनंद ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा एसबीएम स्कूल दधोल से शुरू की। दूसरी से चौथी कक्षा तक की पढ़ाई उन्होंने हिम आँचल पब्लिक सीनियर सेकेंडरी स्कूल दधोल से की। इसके बाद उन्होंने उच्च शिक्षा की ओर कदम बढ़ाया और शिमला यूनिवर्सिटी से एमफिल तक की पढ़ाई पूरी की।

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दूध बेच और खेतीबाड़ी कर पढ़ाया बेटा

उनके जीवन की सबसे बड़ी ताकत रहे हैं उनके माता-पिता—पिता सुरेन्द्र कुमार और मां संतोष देवी। मां एक आंगनबाड़ी कार्यकर्ता हैं और पिता ने खेती व दूध बेचकर अपने बेटे की पढ़ाई का पूरा खर्च उठाया। जब कभी हालात डगमगाए, तब मां-बाप की निःस्वार्थ मेहनत ने आनंद को फिर से संभाला।

12 बार मिली आनंद को सफलता

आनंद ने बताया कि इस मुकाम तक पहुंचने से पहले उन्हें 12 मेन्स परीक्षा और तीन इंटरव्यू में असफलता का सामना करना पड़ा। लेकिन हर बार उन्होंने खुद को और मजबूत किया, हौसलों को गिरने नहीं दिया। उन्होंने निरंतर अभ्यास, धैर्य और आत्मविश्वास को अपनी सबसे बड़ी पूंजी बनाकर सफलता पाई।

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हर घर में हो रही आनंद की चर्चा

आज आनंद कुमार मंगलम की सफलता ने न सिर्फ उनके परिवार को गौरवान्वित किया है, बल्कि गांव के हर युवा को यह भरोसा दिया है कि मेहनत कभी बेकार नहीं जाती। गांव में अब उनके नाम की चर्चा हर घर में हो रही है। ग्रामीणों ने आनंद के माता-पिता को बधाइयों से नवाज़ा है और बच्चे उन्हें अपना रोल मॉडल मानने लगे हैं। आनंद की कहानी हमें यह सिखाती है कि कठिनाइयों के बावजूद अगर संकल्प मजबूत हो, तो मंजिल दूर नहीं होती।

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