#हादसा
September 24, 2025
हिमाचल घूमने आया युवक लैंडस्लाइड की चपेट में आया, 19 दिन से तलाश में भटक रहा पिता
मलबे में दब गया या पार्वती नदी की तेज धारा में बह गया
शेयर करें:
मंडी। कहते हैं कि मां-बाप के लिए संतान ही सबसे बड़ी दौलत और जीवन का सहारा होती है। लेकिन जब वही संतान आंखों के सामने किसी हादसे में गुम हो जाए, तो जीवन एक अंतहीन बोझ में बदल जाता है।
उत्तर-पूर्वी दिल्ली के कर्दमपुरी निवासी 42 वर्षीय नजीर अली पिछले 19 दिनों से इसी पीड़ा के साथ जी रहे हैं। नजीर अली का 17 वर्षीय बेटा मोहम्मद फैज 31 अगस्त को अपने चचेरे भाई और केरल से आए कुछ दोस्तों के साथ मणिकर्ण घूमने गया था।
परिवार ने सोचा था कि पढ़ाई से थोड़ा वक्त निकालकर बेटा दोस्तों के साथ हिमाचल की खूबसूरत वादियों में सुकून पाएगा, लेकिन उन्हें क्या पता था कि यही सफर जिंदगी का सबसे दर्दनाक मोड़ बन जाएगा।
दिल्ली से बस के जरिए मंडी तक पहुंचे ये सभी युवक वहां से टैक्सी कर मणिकर्ण पहुंचे। चार सितंबर की दोपहर जब वे सभी वापस लौट रहे थे, तभी भुंतर-मणिकर्ण मार्ग पर जाच्छणी के पास पहाड़ अचानक टूट पड़ा।
भारी भूस्खलन में ये सभी लोग दब गए। स्थानीय लोगों ने जोखिम उठाकर फैज के चचेरे भाई और उसके तीन दोस्तों को तो मलबे से निकाल लिया, लेकिन अचानक दोबारा हुए भूस्खलन ने मोहम्मद फैज को पूरी तरह अपने आगोश में ले लिया। किसी को समझ ही नहीं आया कि वह मलबे में दब गया या पार्वती नदी की तेज धारा में बह गया।
उस रात भुंतर थाना पुलिस ने नजीर अली को फोन कर यह दुखद सूचना दी कि उनका बेटा हादसे में लापता हो गया है। सूचना मिलते ही वे अपने बड़े भाई और दो परिचितों के साथ दिल्ली से सीधे भुंतर पहुंच गए।
तब से लेकर अब तक नजीर अली हर जगह बेटे की तलाश में भटक रहे हैं-कभी नदी किनारे खड़े होकर घंटों बहते पानी को निहारते हैं, तो कभी भूस्खलन स्थल पर जाकर पत्थरों और मलबे को देखते हैं, मानो अगले ही पल बेटे का चेहरा वहीं से सामने आ जाएगा।
फैज परिवार का सबसे बड़ा बेटा था। ITI से इलेक्ट्रॉनिक्स की पढ़ाई कर रहा था और आगे जाकर घर की जिम्मेदारी संभालने का सपना देख रहा था। नजीर अली, जो खुद पेशे से प्लंबर हैं, बताते हैं कि बेटे के सपनों को पूरा करने के लिए वे हर संभव मेहनत कर रहे थे। अब वही मेहनती हाथ थक चुके हैं।
उनके होंठों पर सिर्फ एक ही सवाल बार-बार आता है कि क्या मेरे बेटे का कुछ पता चला? इस प्रश्न में पिता की उम्मीद, दर्द और बेबसी सबकुछ झलकता है। स्थानीय लोग भी नजीर अली की यह दशा देखकर भावुक हो उठते हैं, लेकिन किसी के पास इस सवाल का उत्तर नहीं है।
भुंतर से लेकर मणिकर्ण तक लोग अब भी फैज की तलाश में जुटे हैं, लेकिन 19 दिन बीत जाने के बाद भी उसका कोई सुराग नहीं लग पाया है। पहाड़ के इस हादसे ने एक पिता की जिंदगी को ठहरा दिया है। हर दिन उनके लिए बस इंतजार का है-एक ऐसे इंतजार का, जिसमें उम्मीद की लौ जलती भी है और बुझती भी।