#हादसा
July 2, 2025
हिमाचल : बुजुर्ग दंपति को नींद से उठने तक का नहीं मिला मौक, पानी के सैलाब में मकान समेत बहे दोनों
गांव में सिर्फ सन्नाटा, मलबे का ढेर और बहता हुआ पानी
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मंडी। हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले को मानूसन ने कभी ना भूलने वाले गम दे दिए हैं। गोहर उपमंडल की स्यांज पंचायत का शांत और सरल जीवन जीता छोटा-सा गांव पंगलियुर अब सिर्फ मलबे और सन्नाटे में तब्दील हो चुका है।
1 जुलाई की रात करीब 2 बजे जब पूरा गांव गहरी नींद में था, तभी ज्यूणी खड्ड ने रौद्र रूप धारण कर लिया और दो परिवारों के सपनों, यादों और आशियानों को अपने साथ बहा ले गई। जहां कभी बच्चों की हंसी गूंजती थी, जहां आंगन में मिट्टी की खुशबू होती थी, वहां अब सिर्फ टूटी किताबें, बिखरे कपड़े और टूटी चप्पलों के अलावा कुछ नहीं बचा।
इस तबाही में दो परिवारों के कुल 9 लोग लापता हो गए, जिनमें से कुछ को तो शायद यह भी समझ नहीं आया होगा कि यह उनके जीवन की आखिरी रात है। स्यांज पंचायत के प्रधान मनोज शर्मा बताते हैं कि जैसे ही उन्हें खबर मिली, वे तुरंत घटनास्थल की ओर दौड़े। लेकिन वहां पहुंचकर सिर्फ सन्नाटा और मलबा था—न चीखें थीं, न कोई पुकार, बस बर्बादी का मंजर और बहता हुआ पानी था।
दो घर पूरी तरह जमींदोज हो चुके थे और उनके साथ ही परिवारों का अस्तित्व भी मिट चुका था। गांववालों की आंखों में आस की चिंगारी थी, मगर दिलों में डर था कि कहीं कोई और न चला जाए। पदम सिंह और उनकी पत्नी का कोई सुराग नहीं मिल पाया है। आपदा के वक्त दोनों घर में सो रहे थे। दोनों को नींद से जागने तक का मौका नहीं मिला और दोनों मकान समेत बह गए।
ग्रामीणों का कहना है कि हादसे के तुरंत बाद प्रशासन को सूचित कर दिया गया था, मगर NDRF और SDRF की टीमें 12 घंटे बाद पहुंचीं। इस बीच, मलबा पूरे इलाके में फैल चुका था और रेस्क्यू के लिए जरूरी वक्त बर्बाद हो गया। स्यांज पंचायत प्रधान मनोज शर्मा ने प्रशासन पर लापरवाही का आरोप लगाया, कहा कि यदि रात को ही कार्रवाई शुरू होती तो शायद कुछ लोगों की जान बच सकती थी।
पंगलियुर गांव अब मानो नक्शे से मिटता जा रहा है। यह हादसा सिर्फ एक भौगोलिक तबाही नहीं, बल्कि सामाजिक और भावनात्मक त्रासदी भी है। ग्रामीण अभी भी खुद को संभालने की कोशिश कर रहे हैं। तबाही के बाद का सन्नाटा उस तड़प को बयां करता है जो अब शब्दों में नहीं कही जा सकती।