#हादसा
July 1, 2025
हिमाचल: कुत्ते के भौंकने से उठे ललित, खौफनाक मंजर देख चिल्लाए... बाढ़ से बचाया पूरा गांव
फ्लड से कुछ मिनट पहले बुजुर्ग ने खाली करवाया गांव
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मंडी। हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले में आज सोमवार तड़के सुबह के करीब चार बजे जब पूरा गांव सो रहा था, तो अचानक बिजली गरजने से साथ भारी बारिश होने लगी। भारी बारिश के बाद भूस्खलन ने धर्मपुर उपमंडल की ग्राम पंचायत लौंगनी के स्याठी गांव को चपेट में ले लिया है। मगर इस आपदा में गांव के एक कुत्ते के भौंकने भर से दर्जनों इंसानी जानें काल का ग्रास बनने से बचा ली।
जानकारी के अनुसार, गांव की पहाड़ी पर बने एक घर के बाहर बंधा कुत्ता जोर-जोर से भौंकने लगा, जिससे उसके मालिक ललित कुमार की नींद खुल गई। ललित बिना समय गंवाए बाहर निकले तो देखा कि, उनके घर के पास ज़मीन फट गई है। बड़ी-बड़ी दरारें पड़ चुकी हैं। ललित ने खतरे को भांपते हुए बिना कुछ ज्यादा सोचे समझे अपने परिवार को बाहर निकाला और चिल्ला-चिल्लाकर बाकी गांववालों को भी अलर्ट किया।
लगातार हो रही बारिश से गांव में लगे बिजली के खंभे गिरेने से धमाके हुए और उन्हीं धमाकों की आवाज को सुनकर गांव के बुजुर्ग धनदेव भी जागे। उन्होंने एक-एक दरवाज़ा खटखटाते हुए सभी गांव वालों को जगाया। जिसके बाद बच्चे, बूढ़ों व महिलाओं, सबको लेकर एक सुरक्षित घर में पहुंचा दिया और फिर थोड़ी ही देर में पूरा गांव मलबे में तब्दील हो गया।
एक तरफ इस भीषण प्राकृतिक आपदा में जहां डेढ़ दर्जन परिवारों के 10 मकान, कई गौशालाएं, 20 खच्चरें, 30 बकरियां, 8 भेड़ें, 5 भैंसें, मोटरसाइकिलें, फर्नीचर, कपड़े, गहने और रोजमर्रा की तमाम चीजें मलबे और पानी के साथ बह गईं। वहीं, दूसरी तरफ राहत की बात है कि इस आपदा में एक भी व्यक्ति को खरोंच तक नहीं आई।
यह सब गांव के एक बुजुर्ग धनदेव की वजह से संभव हो पाया है। धनदेव की सतर्कता ने समय रहते पूरे गांव को जगा कर एक सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया। जिससे इस आपदा में गांव के एक भी व्यक्ति की जान नहीं गई। हालांकि, आपदा में बाकी सब तबाह हो गया। ग्रामीणों ने अपनी आंखों के सामने मौत का मंजर देखा। इस आपदा में लोगों को करीब दो से 3 करोड़ से ज्यादा का नुकसान हुआ है।
बताया जा रहा है कि मंगलवार तड़के लगभग 4 बजे, जब गांव में अधिकांश लोग गहरी नींद में थे और बाहर तेज बारिश और बिजली कड़क रही थी। उसी समय गांव के बुजुर्ग धनदेव को एक चट्टान गिरने की तेज आवाज सुनाई दी।
उन्हें तुरंत खतरे का आभास हुआ। बिना देर किए और खुद की परवाह किए बिना धनदेव ने घर-घर जाकर लोगों को नींद से जगााया। उन्होंने सभी ग्रामीणों को एक सुरक्षित पक्के मकान में इकट्ठा कर लिया।
चंद मिनटों में जो आशंका थी, वही हुआ। पूरा पहाड़ भरभराकर नीचे आया और गांव की पूरी बस्ती को अपने साथ ले गया। जो घर कल तक जिंदा जीवन से भरे थे, वे पल भर में मलबे में तब्दील हो गए।
आपदा के तुरंत बाद ग्रामीण स्कूल और मंदिर की ओर भागे। तब तक पंचायत प्रधान, उपप्रधान और अन्य स्थानीय लोग भी घटनास्थल पर पहुंच चुके थे। पूर्व जिला पार्षद भूपेंद्र सिंह ने घटना की जानकारी मिलते ही SDM, DC और पुलिस प्रशासन को सूचित किया। प्रशासन ने तत्काल राहत कार्य शुरू करते हुए प्रत्येक प्रभावित परिवार को 10-10 हजार रुपये की फौरी सहायता, तिरपाल, राशन और अन्य आवश्यक सामग्री मुहैया करवाई। प्रभावितों को माता जालपा मंदिर स्याठी-त्रयामबला में अस्थाई रूप से ठहराया गया, जहां स्थानीय पंचायत और ग्रामीणों ने भोजन व अन्य जरूरतों की व्यवस्था की।
पूर्व जिला पार्षद भूपेंद्र सिंह ने बताया कि यह इलाका पहले से ही भूस्खलन संभावित क्षेत्र घोषित है। साल 2014 में भी इसी बस्ती को नुकसान हुआ था, जिसके बाद ग्रामीणों ने प्रशासन से बार-बार सुरक्षित स्थान पर पुनर्वास की मांग की, लेकिन सरकारी सिस्टम की लापरवाही ने लोगों की पुकार अनसुनी कर दी।
आज जब पूरी बस्ती उजड़ चुकी है, तो यह सवाल फिर खड़ा हो गया है कि क्या प्रशासन को पहले से ही खतरे की आशंका के बावजूद कोई कदम नहीं उठाना चाहिए था? भूपेंद्र सिंह ने अब मांग की है कि इन परिवारों को स्थायी और सुरक्षित स्थान पर पुनर्वास दिया जाए और हुए नुकसान का सही आकलन कर मुआवजा तुरंत प्रदान किया जाए।
गांव की महिलाएं और बच्चे अभी भी सदमे में हैं, लेकिन लोगों की मदद और प्रशासन की तत्परता से उन्हें थोड़ी राहत जरूर मिली है। लोगों का सवाल अब यह है कि क्या सरकार अब पीड़ित परिवारों की पुकार सुनेगी, या अगली आपदा तक सब कुछ फिर फाइलों में दफन रहेगा?