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May 16, 2025
विक्रमादित्य सिंह के विभाग ने ठेकेदारों की जेब पर डाला बोझ, टेंडर कॉस्ट में कर दी बढ़ोतरी
ठेकेदारों की जेब पर पड़ेगा सुक्खू सरकार के फैसले का असर
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शिमला। हिमाचल प्रदेश की आर्थिक स्थिति लगातार चुनौतीपूर्ण बनी हुई है और राजकोषीय घाटे से जूझ रही सुक्खू सरकार अब विभागीय राजस्व बढ़ाने की दिशा में सख्त कदम उठा रही है। इसी कड़ी में प्रदेश सरकार ने विक्रमादित्य सिंह के लोक निर्माण विभाग के टेंडर दस्तावेजों की लागत में बड़ी बढ़ोतरी की है। सरकार का यह कदम प्रदेश के ठेकेदारों की जेब पर सीधा असर डालेगा, लेकिन राज्य सरकार इसे वित्तीय सुधारों के एक हिस्से के रूप में देख रही है।
दरअसल लोक निर्माण विभाग के अंडर सेक्रेटरी हेमराज शर्मा ने लोक निर्माण विभाग के टेंडर कास्ट में किए गए संशोधन को लेकर नई दरों की सूची लोक निर्माण विभाग के चीफ इंजीनियर को पत्र के माध्यम से भेज दी है। जिसमें लोक निर्माण विभाग के अंडर सेक्रेटरी हेमराज शर्मा द्वारा टेंडर फीस की नई दरों की जानकारी दी गई है।
जो अब परियोजना की लागत के अनुसार चरणबद्ध रूप से बढ़ेगी। 10 करोड़ रुपए से अधिक के कार्यों पर अब प्रति 10 करोड़ की लागत पर ₹10 हजार रुपए की दर से निविदा दस्तावेज की फीस ली जाएगी। उदाहरण के तौर पर 50 करोड़ के काम के लिए अब ठेकेदार को 50 हजार रुपए टेंडर डॉक्यूमेंट की लागत देनी होगी।
प्रदेश सरकार पहले ही स्पष्ट कर चुकी है कि भारी कर्ज और सीमित राजस्व संसाधनों के चलते उसे गैर.जरूरी खर्चों में कटौती और आय स्रोतों में वृद्धि करनी होगी। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू कई बार यह कह चुके हैं कि पूर्ववर्ती सरकारों की आर्थिक नीतियों ने राज्य को कर्ज के दलदल में धकेला है, और अब उनकी सरकार आर्थिक अनुशासन लाने के लिए कड़े फैसले लेने से पीछे नहीं हटेगी। इस टेंडर फीस वृद्धि को भी राज्य सरकार के ऐसे ही एक कदम के तौर पर देखा जा रहा है, जिससे विभागीय स्तर पर आय में इजाफा हो सके और सरकारी व्यय में संतुलन लाया जा सके।
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हालांकिए निर्माण कार्यों से जुड़े ठेकेदारों पहले से ही सरकार से उनकी लंबित पेमेंट ना मिलने के चलते परेशान हैं। अब ऐसे में सुक्खू सरकार द्वारा बढ़ाई टेंडर कास्ट से उनमें और ज्यादा गुस्सा देखने को मिलेगा। ठेकेदारों का कहना है कि पहले से ही महंगाई और संसाधनों की कमी के कारण निर्माण कार्य महंगे हो रहे हैं, और अब टेंडर फीस बढ़ने से परियोजनाएं और अधिक बोझिल हो जाएंगी।
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बता दें कि हिमाचल सरकार अब प्रदेश की बिगड़ती आर्थिक हालत को सुधारने के लिए राजस्व जुटाने की हर संभावित दिशा में काम कर रही है। मुख्यमंत्री सुक्खू की सरकार के लिए यह एक परीक्षा की घड़ी है, जहां उसे विकास और आर्थिक स्थिरता के बीच संतुलन साधना है।