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March 19, 2025

हिमाचल बजट सत्र: चिट्टे पर विपक्ष ने दागे सवाल, सदन में हुई तीखी नोकझोंक

विधानसभा में चिट्टे का मुद्दा गरमाया, सत्ता पक्ष और विपक्ष में तीखी बहस

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शिमला। हिमाचल प्रदेश विधानसभा के बजट सत्र में बुधवार को चिट्टे (सिंथेटिक ड्रग्स) का मुद्दा जोर-शोर से उठा। सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच इस गंभीर विषय पर तीखी बहस देखने को मिली। डीएस ठाकुर, मलेंद्र राजन, विनोद कुमार और केवल सिंह पठानिया ने संयुक्त रूप से इस मुद्दे को सदन में उठाया।

सरकार ने उठाए कई सख्त कदम

मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने चिट्टा कारोबार पर अपनी सरकार की कार्रवाई का ब्यौरा देते हुए कहा कि राज्य में नशे के कारोबार पर 30 प्रतिशत की कमी आई है। हालांकि, उन्होंने यह भी माना कि नशा तस्कर हाईकोर्ट से जमानत लेकर फिर से सक्रिय हो रहे हैं। इस समस्या से निपटने के लिए सरकार ने कई सख्त कदम उठाए हैं।

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नशे के खिलाफ सरकार की कार्रवाई

मुख्यमंत्री ने बताया कि ड्रग्स के खिलाफ एक नया कानून लाने की प्रक्रिया जारी है। पुलिस को तस्करों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने के निर्देश दिए गए हैं। नशा तस्करों की संपत्तियां जब्त करने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है, और अब तक 17 लोगों की संपत्ति सीज की जा चुकी है। उन्होंने यह भी बताया कि पिछली सरकार ने ड्रग्स मामलों की निगरानी के लिए सलाहकार बोर्ड का गठन नहीं किया था, लेकिन वर्तमान सरकार ने इस दिशा में ठोस कदम उठाते हुए यह काम पूरा किया है। अब नशे के सप्लायरों को छह से नौ महीने तक जमानत न मिलने की व्यवस्था की जा रही है।

सरकारी कर्मचारियों की संलिप्तता पर सख्त रुख

सरकार ने यह भी स्वीकार किया कि 60 से अधिक सरकारी कर्मचारी नशे की गतिविधियों में संलिप्त पाए गए हैं। मुख्यमंत्री ने स्पष्ट किया कि सत्र समाप्त होते ही इन कर्मचारियों के खिलाफ नियमानुसार सख्त कार्रवाई की जाएगी।

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सोलन जिले के कोटला बहेड़ में 150 बीघा भूमि पर एक आधुनिक नशा निवारण केंद्र स्थापित किया जा रहा है। इसके अलावा, राज्य सरकार एसटीएफ (स्पेशल टास्क फोर्स) के गठन की दिशा में भी आगे बढ़ रही है।

चिट्टे के बढ़ते मामलों पर विपक्ष का सवाल

नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर ने सरकार के दावों पर सवाल उठाते हुए कहा कि प्रदेश में नशे के कारोबार में 30 प्रतिशत कमी आने के आंकड़े को किस आधार पर मापा गया है? उन्होंने यह भी कहा कि पहले ‘उड़ता पंजाब’ की चर्चा होती थी, लेकिन अब ‘रेंगता हिमाचल’ दिखाई दे रहा है। उन्होंने आरोप लगाया कि प्रदेश में हालात बद से बदतर हो गए हैं और 10 से अधिक लोग सड़कों पर चिट्टा लेने के कारण जान गंवा चुके हैं। यह केवल रिपोर्ट हुए मामले हैं, जबकि कई मौतें दर्ज ही नहीं की जातीं। उन्होंने सरकार से पूछा कि क्या पड़ोसी राज्यों के साथ मिलकर नशे की रोकथाम के लिए संयुक्त अभियान चलाया जाएगा?

सीएम सुक्खू का पलटवार

मुख्यमंत्री सुक्खू ने विपक्ष पर पलटवार करते हुए कहा कि जयराम ठाकुर को सनसनी फैलाने की आदत है। उन्होंने कहा कि पिछली सरकार ने एनडीपीएस (नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस) एक्ट के तहत कोई ठोस कार्रवाई नहीं की, जबकि वर्तमान सरकार ने पीआईटी-एनडीपीएस (प्रीवेंशन ऑफ इलिसिट ट्रैफिक इन नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस) एक्ट के तहत कार्रवाई शुरू की है।

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सीएम सुक्खू ने यह भी कहा कि सरकार ने जनता के बीच जागरूकता फैलाने का काम किया है और उनकी कार्रवाई की आम लोग भी सराहना कर रहे हैं। उन्होंने दो टूक कहा कि नशे के कारोबार में शामिल कोई भी व्यक्ति, चाहे वह राजनीतिक हो या प्रशासनिक, बख्शा नहीं जाएगा।

मोदी सरकार का जताया आभार

राज्य सरकार अंतरराज्यीय बैठकों में भाग लेकर नशे की तस्करी रोकने के लिए अन्य राज्यों से सूचनाओं का आदान-प्रदान कर रही है। सरकार ने भारत सरकार को भी इस विषय पर सहयोग देने के लिए धन्यवाद दिया। इंदौरा के विधायक मलेंद्र राजन ने कहा कि चिट्टे से जुड़े मामलों में पुलिस अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ भी कार्रवाई की जा रही है।

वहीं, नाचन विधायक विनोद कुमार ने जानकारी दी कि पिछले तीन वर्षों में चिट्टे से 38 लोगों की मौत हो चुकी है। उन्होंने मांग की कि स्कूलों और कॉलेजों में इस मुद्दे पर जागरूकता बढ़ाने के लिए पाठ्यक्रम तैयार किया जाए।

मुख्यमंत्री ने दिया यह जवाब

मुख्यमंत्री ने जवाब दिया कि 15 मार्च तक पंचायत स्तर पर नशा करने वालों की मैपिंग करने के आदेश दिए गए थे और अब इसका पूरा डेटा उपलब्ध है। उन्होंने आश्वासन दिया कि इसी तरह की मैपिंग अब स्कूलों और कॉलेजों में भी की जाएगी और अगले छह महीनों के भीतर संलिप्त लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।

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बहरहाल, हिमाचल प्रदेश में नशे की समस्या को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच गहरी खींचतान देखी जा रही है। जहां सरकार इसे रोकने के लिए सख्त कदम उठाने का दावा कर रही है, वहीं विपक्ष का कहना है कि हालात नियंत्रण से बाहर हो चुके हैं। आने वाले महीनों में सरकार की कार्रवाई और उसके प्रभाव से ही यह तय होगा कि हिमाचल को ‘रेंगता हिमाचल’ की छवि से बाहर निकालने में कितना समय लगेगा।

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