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February 23, 2025

हिमाचल में सूखा : लीकेज से बर्बाद हो रहा पानी, बूंद-बूंद को तरस जाएंगे लोग

अंधाधुंध बोरवेल खोदने से ग्राउंड वॉटर लेवल गिरा, अब कार्रवाई के निर्देश

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Himachal News

शिमला। हिमाचल प्रदेश में इस साल अच्छी बारिश-बर्फबारी ना होने के कारण सूखे जैसे हालात बने हुए हैं। इस साल सूखे की आशंका को देखते हुए सुक्खू सरकार ने पानी की बर्बादी रोकने की कोशिशें शुरू कर दी हैं। इसके लिए राज्य के सभी जलस्रोतों का ऑडिट कराने और अवैध बोरवेल के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने के आदेश दिए गए हैं।

बर्बाद हो रहा पानी

हिमाचल प्रदेश के मुख्य सचिव प्रबोध सक्सेना ने जल शक्ति विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव ओंकार शर्मा को निर्देश दिए हैं कि जलस्रोतों से 500 मीटर के दायरे में बने सभी बोरवेल पर सख्त कार्रवाई की जाए और मौजूदा जलस्रोतों की मौजूदा क्षमता और उनमें पानी के अधिकतम उपयोग का सर्वे करवाया जाए।

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इसके अलावा पेयजल स्रोतों में लीकेज को सुधारने को भी कहा गया है। यह आदेश हाल में सामने आई एक रिपोर्ट के बाद दिए गए हैं, जिसमें पाया गया है कि हिमाचल प्रदेश में पानी की सप्लाई का करीब 50 फीसदी हिस्सा लीकेज के कारण तबाह हो रहा है। इसके अलावा अवैध बोरवेल के कारण भूमिगत जलस्तर में भी बड़ी गिरावट देखी जा रही है। इन दोनों ही स्थितियों ने अब जाकर सरकार के कान खड़े कर दिए हैं, क्योंकि राज्य के 12 में से 9 जिलों में कहीं 75 तो कहीं 95 प्रतिशत तक कम बारिश दर्ज की गई है।

अवैध बोरवेल का आंकड़ा जुटाएं

प्रबोध सक्सेना ने अतिरिक्त मुख्य सचिव जलशक्ति को एक कमेटी बनाकर सभी जलस्रोतों का बारीकी से अध्ययन कर पानी का समुचित वितरण सुनिश्चित करने की कार्ययोजना तैयार करने को कहा है। यह कमेटी प्रदेशभर में जलस्रोतों और इनसे हो रही जलापूर्ति से पाइपों में होने वाली लीकेज को रोकने के लिए कदम उठाएगी। अवैध बोरवेल का ब्योरा एकत्र किया जाएगाा।

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IPCC ने दी है चेतावनी

प्रबोध सक्सेना ने रिपोर्ट के आधार पर कुछ जिलों में हर चार से पांच दिन में सिर्फ एक बार ही मिल रहे पानी को देखते हुए वहां बिना अनुमति के बोरवेल खोदे जाने पर भी रोक लगाने को कहा है। जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) ने भी चेतावनी दी है कि भारत के दो सबसे संवेदनशील क्षेत्रों तटीय क्षेत्रों और हिमालय में मौसम में बदलाव की घटनाएं तेजी से स्पष्ट होंगी। घटती हुई हिमरेखा और न्यूनतम बर्फबारी ने यहां के पर्वतीय क्षेत्रों में जल धारण क्षमता को कम कर दिया है।

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