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November 17, 2025
सुक्खू सरकार ने स्थगित किए थे पंचायत चुनाव, अब हाईकोर्ट ने मांगा जवाब; बढ़ी सियासी हलचल
21 दिसंबर को सुक्खू सरकार और राज्य चुनाव आयोग को देना होगा जवाब
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शिमला। हिमाचल प्रदेश में पंचायत चुनाव को लेकर घमासान मचा हुआ है। निर्धारित समय पर पंचायती राज चुनाव करवाने का मुद्दा अब राजनीतिक और कानूनी संघर्ष का रूप ले चुका है। राज्य सरकार द्वारा चुनाव स्थगित करने के फैसले को चुनौती देते हुए दाखिल जनहित याचिका पर हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है और सुक्खू सरकार को 21 दिसंबर तक विस्तृत जवाब दाखिल करने का आदेश दिया है। हाईकोर्ट ने राज्य चुनाव आयोग को भी नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
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मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति गुरमीत सिंह संधावालिया और न्यायमूर्ति जिया लाल भारद्वाज की खंडपीठ ने इस मामले की सुनवाई करते हुए स्पष्ट किया कि चुनाव प्रक्रिया को लेकर उठाई गई सभी कानूनी आपत्तियों का सरकार को संतोषजनक उत्तर देना होगा।
पंचायती राज चुनावों की तारीख नजदीक आने के बावजूद सरकार द्वारा उन्हें आगे बढ़ाने की संभावना जताए जाने पर याचिकाकर्ता ने अदालत का दरवाजा खटखटाया। याचिका में आरोप लगाया गया है कि प्रदेश की कांग्रेस सरकार जानबूझकर चुनावों में देरी कर रही है। प्रदेश सरकार आपदा का हवाला देकर लोकतांत्रिक प्रक्रिया को रोकने का प्रयास कर रही है। अदालत ने याचिका को गंभीरता से लेते हुए सरकार को नोटिस जारी कर स्पष्टीकरण मांगा है। मामले की अगली सुनवाई 22 दिसंबर को होगी।
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दरअसल हिमाचल प्रदेश की सुक्खू सरकार ने मानसून 2025 के कारण हुए भारी नुकसान और खराब सड़कों को देखते हुए पंचायती राज संस्थाओं के दिसंबर में होने वाले चुनावों को स्थगित करने का फैसला किया था। जिसको लेकर 8 अक्टूबर को मुख्य सचिव द्वारा आदेश जारी किए गए थे। आदेशों में कहा गया था कि 2025 के मानसूनी सीजन में आई प्राकृतिक आपदा के चलते कई सड़कें टूट चुकी हैं। ऐसे में पूरी तरह से कनेक्टिविटी होने के बाद ही चुनाव करवाना संभव है। ताकि मतदान कर्मियों और मतदान करने वाली जनता को किसी तरह की असुविधा ना हो।
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हालांकि याचिका पर सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से एडवोकेट जनरल ने अदालत को भरोसा दिलाया कि प्रदेश में पंचायत चुनाव 21 जनवरी से पहले हर हाल में करवा दिए जाएंगे। उनका कहना था कि सरकार केवल आपदा के बाद की व्यवस्थाओं के सामान्य होने का इंतजार कर रही है। वहीं याचिकाकर्ता का आरोप है कि सरकार डिज़ास्टर एक्ट का सहारा लेकर अनिश्चितकाल तक चुनाव को टालने की कोशिश कर रही है, जबकि संविधान स्पष्ट रूप से पंचायतों के पांच वर्षीय कार्यकाल को अनिवार्य बनाता है।
पंचायत चुनाव हिमाचल की जमीनी राजनीति की धुरी माने जाते हैं। सरकार द्वारा चुनाव स्थगित करना विपक्ष के निशाने पर आ चुका है, और अब इस मुद्दे ने हाईकोर्ट के हस्तक्षेप के बाद और ज्यादा तूल पकड़ लिया है। जहां सरकार आपदा और सड़क स्थितियों को आधार बता रही है, वहीं विपक्ष और याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि सरकार राजनी तिक मजबूरी के कारण समय पर चुनाव नहीं करवा रही। अब सभी की नजरें 21 दिसंबर को दायर होने वाले सरकारी जवाब और 22 दिसंबर की सुनवाई पर टिकी हैं, जो पंचायत चुनावों के भविष्य को तय करेगी।