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July 8, 2025

हिमाचल : 28 साल चला मुकदमा, अब मिला रिटायर कर्मियों को इंसाफ- 2003 से मिलेंगे सारे लाभ

हाई कोर्ट ने दिया प्रमोशन का तोहफा

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High Court Decision

शिमला। हिमाचल प्रदेश में वन विभाग के दो कर्मी, पवन शर्मा और प्रेम चंद, अपने हक और सम्मान की लड़ाई लड़ते-लड़ते सेवानिवृत्त हो गए। परन्तु वर्षों की जद्दोजहद, निरंतर प्रयास और अदालती लड़ाई के बाद अब जाकर उन्हें वह सम्मान मिला, जिसके वे हकदार थे।

28 साल चला मुकदमा

हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने दोनों पूर्व वन कर्मचारियों को वर्ष 2003 से सहायक वन संरक्षक (ACF) के पद पर प्रमोशन का लाभ देने का आदेश पारित किया है। यह मामला लगभग तीन दशकों से न्यायालय की चौखट पर था।

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प्रमोशन के लिए लड़ाई

वर्ष 1997 में पहली बार याचिका दाखिल की गई थी, जब दोनों ने वन विभाग में अपने प्रमोशन और नियुक्ति को लेकर सवाल उठाए थे। उन्होंने सीधे कोटे से डिप्टी रेंजर की पोस्ट के लिए आवेदन किया था, पर उन्हें वन रक्षक के रूप में नियुक्त किया गया।

रिटायर हो गए दोनों कर्मी

हालांकि, न्यायालय ने 2001 में ही आदेश दे दिया था कि उन्हें 1979 से डिप्टी रेंजर की नियुक्ति दी जाए, लेकिन राज्य सरकार ने लगातार अपीलें और पुनर्विचार याचिकाएं दायर कर मामला उलझाए रखा। हाईकोर्ट के बाद मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा, जहां 2011 में सरकार की एसएलपी भी खारिज हो गई।

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हक में आया फैसला

फिर भी सरकार की ओर से आदेश लागू नहीं किए गए, जिससे विवश होकर दोनों पूर्व कर्मियों को अवमानना याचिका दाखिल करनी पड़ी। अंततः 2011 में उन्हें डिप्टी रेंजर पद पर नियुक्त किया गया, लेकिन तब तक प्रमोशन के लिए जरूरी समय और प्रक्रिया में वे पीछे रह गए। 31 दिसंबर 2011 को रिटायरमेंट तक उन्हें ACF बनने का मौका नहीं मिल सका।

2003 से मिलेंगे सारे लाभ

अब न्यायमूर्ति संदीप शर्मा की एकल पीठ ने स्पष्ट कहा है कि यदि इन कर्मियों को समय पर सेवा लाभ दिए जाते, तो वे 2003 व 2004 में उपलब्ध पदों पर ACF के रूप में प्रमोट हो सकते थे। कोर्ट ने विभाग के उस तर्क को भी खारिज कर दिया जिसमें यह कहा गया था कि याचिकाकर्ताओं ने विभागीय परीक्षा पास नहीं की थी। न्यायालय ने पाया कि विभाग में ऐसे कई अन्य कर्मियों को बिना परीक्षा के ही प्रमोशन दिया गया है।

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सेवानिवृत्ति के बाद भी मिली जीत

कोर्ट ने आदेश दिया कि दोनों पूर्व कर्मचारियों को न केवल 2003 से ACF के पद का लाभ दिया जाए, बल्कि उसी आधार पर उनका वेतन निर्धारण, पेंशन संशोधन और अन्य सेवानिवृत्ति लाभ भी सुनिश्चित किए जाएं।

 

इस ऐतिहासिक फैसले से यह साबित होता है कि सत्य और न्याय की राह भले ही लंबी हो, लेकिन उसका अंत हमेशा संतोषजनक होता है। वन विभाग के इन दो कर्मियों की यह लड़ाई न केवल उनकी व्यक्तिगत जीत है, बल्कि उन सभी कर्मचारियों के लिए उम्मीद की किरण है, जो वर्षों से अपने हक के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

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