#अपराध

July 17, 2025

हिमाचल: तीन बेटियों के सिर से उठा पिता का साया, बेरोजगारी से तंग युवक ने छोड़ी दुनिया

40 साल की उम्र में परिवार को बेसहारा छोड़ गया शख्स

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Kangra haripur News

कांगड़ा। हिमाचल के जिला कांगड़ा से गुरुवार को एक हृदयविदारक समाचार सामने आया जिसने पूरे इलाके को झकझोर कर रख दिया। देहरा उपमंडल के तहत आते भटोली फकोरियां पंचायत के गांव  रंबियाल निवासी 40 वर्षीय नरेंद्र सिंह, जो तीन मासूम बेटियों का पिता था, ने बेरोजगारी और आर्थिक तंगी से टूटकर आत्मघाती कदम उठा लिया।

 

नरेंद्र सिंह ने गुरुवार दोपहर को अपने घर में कोई जहरीला पदार्थ निगल लिया। जब परिजनों ने उसकी तबीयत बिगड़ती देखी तो तत्काल उसे हरिपुर के स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया। वहां प्राथमिक उपचार के बाद डॉक्टरों ने हालत नाजुक देखते हुए उसे मेडिकल कॉलेज टांडा रेफर कर दिया। लेकिन दुर्भाग्यवश जीवन की डोर नरेंद्र के साथ नहीं रही और देर शाम उसने अंतिम सांसें ले लीं।

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मासूम बेटियों की सूनी आंखें

नरेंद्र सिंह के जाने के बाद उसके परिवार में गम का साया छा गया है। घर में बूढ़ी विधवा मां, पत्नी और तीन नन्ही बेटियां हैं, जो अब बेसहारा हो गई हैं। ये वही बेटियां हैं जिनके सुनहरे भविष्य के लिए नरेंद्र दिन.रात चिंता करता था। वह खुद भले ही फटे पुराने कपड़ों में रह लेता, लेकिन बेटियों की स्कूल फीस, किताबें और ज़रूरतें पूरी करने की कोशिश में कभी पीछे नहीं हटा।

बेरोजगारी से तंग था युवक

परिजनों के अनुसार नरेंद्र पिछले कई महीनों से बेरोजगार था। गांव में कभी.कभार दिहाड़ी मिलती थी तो घर का चूल्हा जलता, नहीं तो सूखी रोटियों से ही पेट भरता। तीन बच्चियों के भविष्य की चिंता ने उसे अंदर ही अंदर खा डाला था। कई बार वो कहता इनकी पढ़ाई कैसे पूरी होगी, मैं कब तक इस असुरक्षा से लड़ता रहूंगा मगर किसी को क्या पता था कि वो मन की इस लड़ाई को यूं हार जाएगा।

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व्यवस्था पर सवाल

इस दर्दनाक घटना ने एक बार फिर ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगारए सामाजिक सुरक्षा और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं को उजागर कर दिया है। आखिर एक जिम्मेदार पिता को इस हद तक टूटने को मजबूर करने वाली व्यवस्था पर कब ठोस कार्य होगा?

पोस्टमार्टम के बाद होगा अंतिम संस्कार

नरेंद्र का शव मेडिकल कॉलेज टांडा के शवगृह में रखा गया है। शुक्रवार को पोस्टमार्टम के बाद पार्थिव देह परिजनों को सौंपी जाएगी। गांव के लोग भी इस घटना से बेहद आहत हैं और परिवार को हर संभव मदद देने की बात कह रहे हैं।

 

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बेटियों की तरफ उम्मीद से देख रही हैं आंखें

अब इन तीन मासूम बेटियों की आंखों में केवल एक सवाल है—“क्या अब भी हमारा कोई भविष्य है?” नरेंद्र चला गया, मगर पीछे जो तीन जीवन अधूरे छोड़ गया, उनके लिए समाज, सरकार और संवेदनशील लोगों को मिलकर अब कुछ करना होगा। यही उस पिता की सच्ची श्रद्धांजलि होगी जिसने आखिरी सांस तक अपनी बेटियों का ख्वाब देखा।

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