#अपराध

November 29, 2025

हिमाचल की काली सच्चाई- महिलाएं नहीं हैं सुरक्षित- 3 साल में बना खौफनाक रिकॉर्ड

हिमाचल में पिछले तीन वर्षों के आंकड़े चौंकाने वाले

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Himachal Crime Report

शिमला। देवभूमि कहे जाने वाले हिमाचल प्रदेश में महिलाओं की सुरक्षा और बढ़ते अपराध को लेकर गंभीर चिंताएं पैदा कर दी हैं। राज्य विधानसभा के विंटर सेशन में उजागर हुए इन आँकड़ों से खुलासा हुआ है कि, पिछले तीन सालों में 31 अक्टूबर तक 2025 हजारों मामले सामने आए हैं।

न्यायिक प्रक्रिया बेहद धीमी

जानकारी के अनुसार, बीते तीन सालों में कुल 1011 दुष्कर्म के मामले दर्ज किए गए। इनमें से 818 मामलों की जांच पूरी हो चुकी है और इन्हें अदालतों में भेज दिया गया है, जबकि बाकी प्रकरण अभी भी पुलिस जांच के दायरे में हैं।

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इन मामलों में न्यायिक प्रक्रिया बेहद धीमी दिखती है। अब तक सिर्फ 29 मामलों में दोषियों को सजा सुनाई गई है, जबकि 102 मामलों में आरोपी बरी हो चुके हैं। यह आंकड़ा स्पष्ट करता है कि जांच की गुणवत्ता और सबूत प्रस्तुतिकरण को और मजबूती देने की आवश्यकता है। 

हत्या के 248 मामले दर्ज

इसी अवधि में राज्य में हत्या के 248 मामले दर्ज हुए। आश्चर्यजनक रूप से, इतने गंभीर अपराधों में भी सिर्फ दो मामलों में दोष सिद्ध हुआ और सजा दी जा सकी। वहीं आत्महत्या के मामलों की संख्या भी कम नहीं है। तीन साल में हिमाचल में 203 लोगों ने जान दी, यानी औसतन हर साल लगभग 68 आत्महत्याएं। ये आंकड़े मानसिक स्वास्थ्य, सामाजिक दबाव और आर्थिक परिस्थितियों को लेकर गंभीर संदेश देते हैं।

विधानसभा में रखे गए ये आंकड़े

बंजार से भाजपा विधायक सुरेंद्र शौरी ने विधानसभा में तीन वर्षों के अपराधों से संबंधित प्रश्न पूछा था। चूंकि गृह विभाग मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के पास है, इसलिए उन्होंने ही विस्तृत आंकड़ों के साथ जवाब दिया। जवाब में बताया गया कि तीन साल में राज्य में कुल 1462 गंभीर अपराधों की एफआईआर दर्ज हुई है।

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इनमें से 1130 मामलों को अदालत में पेश किया जा चुका है। 87 केस अभी न्यायालयों में लंबित हैं। 49 मामले अभी भी जांच के अधीन हैं। नमें से 148 मामलों की जांच हिमाचल पुलिस कर रही है, जबकि एचपी पावर कॉर्पोरेशन के मुख्य अभियंता विमल नेगी की संदिग्ध मृत्यु की जांच सीबीआई को सौंप दी गई है।

सिर्फ 33 मामलों में ही सजा

तीन वर्षों में दर्ज हुए कुल अपराध मामलों में से केवल 33 मामलों में दोषियों को सजा मिल सकी है। इससे यह संकेत मिलता है कि गंभीर आपराधिक मामलों में भी न्यायिक प्रक्रिया में गति और परिणाम दोनों की कमी बनी हुई है।

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