#अव्यवस्था
June 7, 2025
हिमाचल में नियुक्ति से बचने की होड़: कोर्ट बोला- डॉक्टरों को 2 साल ग्रामीण क्षेत्रों में सेवाएं देना जरूरी
पोस्टिंग आदेश के बाद ही कोर्ट की शरण में पहुंचे डॉक्टर
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शिमला। हिमाचल हाईकोर्ट ने साफ किया है कि डॉक्टरों को ग्रामीण क्षेत्र में सेवाएं देना अनिवार्य है। कोर्ट ने ग्रामीण क्षेत्रों में सेवाएं देने और 40 लाख रुपये की बॉन्ड शर्तों से पीछे हटने की कोशिश कर रहे तमाम डॉक्टरों के प्रति नाराजगी जाहिर की है।
बता दें कि मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने एकल पीठ ने पिछले कल ये टिप्पणी की है। यह टिप्पणी उस फैसले पर हुई जिसमें याचिकाकर्ता चिकित्सकों को उनकी मूल एमबीबीएस डिग्री व बिना तारीख वाले चेक वापस करने के आदेश दिए थे। इस पूरे मामले में मुख्य न्यायाधीश गुरमीत सिंह संधावालिया और न्यायाधीश रंजन शर्मा की खंडपीठ ने फैसले को बरकार रखते हुए साफ किया है कि लापरवाह और दोषी अफसरों के खिलाफ कार्रवाई होकर रहेगी।
कोर्ट ने कहा कि अधिकारियों के कारण ही डॉक्टरों की नियुक्ति में देरी हो रही है। वहीं, कोर्ट ने आगे कहा कि याचिकार्ता अपनी जिम्मेदारियों से भाग रहे है। अब इस मामले में अगली सुनवाई 4 अगस्त को होनी तय हुई है।
महाधिवक्ता ने स्पष्ट किया कि इन 49 डॉक्टरों ने 24 जनवरी 2022 को 40 लाख रुपये का बॉन्ड भरा था, जिसमें शर्त रखी गई थी कि पाठ्यक्रम पूरा होने के बाद दो साल तक वे हिमाचल प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाएं देंगे। इस बॉन्ड के बदले उन्हें वजीफा और सुविधाएं दी गई थीं। सरकार की नीति का मुख्य उद्देश्य था कि डॉक्टर प्रशिक्षण लेकर राज्य के दूरदराज़ और गरीब इलाकों में सेवा करें।
गौर करने वाली बात यह है कि ये 49 डॉक्टर हिमाचल के अलावा हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार, पंजाब, केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक और उत्तराखंड जैसे राज्यों से हैं। कई डॉक्टर राज्य से बाहर के होने के चलते बॉन्ड सेवा देने से बचना चाहते हैं।
इन डॉक्टरों को 10 मार्च 2025 को उनके कॉलेजों से रिलीव किया गया था, जबकि पोस्टिंग आदेश 10 अप्रैल को आए। लेकिन सिर्फ 13 दिन बाद, 23 अप्रैल को ही उन्होंने कोर्ट का दरवाजा खटखटा दिया, जो सरकार के अनुसार, नियत प्रक्रिया और नीयत दोनों पर सवाल खड़ा करता है।
सरकार ने यह भी कहा कि अगर सभी प्रशिक्षित डॉक्टर पोस्टिंग से पहले ही कोर्ट का रुख करने लगेंगे, तो फिर राज्य की स्वास्थ्य नीति और ग्रामीण क्षेत्रों के मरीजों का क्या होगा?
महाधिवक्ता ने कोर्ट से आग्रह किया कि ऐसे मामलों में स्पष्ट व्यवस्था और दिशा-निर्देश तय किए जाएं, ताकि राज्य नीति की गरिमा बनी रहे।