#अव्यवस्था
December 24, 2025
PM मोदी ने किया हिमाचल के बागवानों से धोखा- विदेशी सेबों को पहुंचाया फायदा, इंपोर्ट ड्यूटी घटाई
हिमाचल का 5500 करोड़ का उद्योग संकट में
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शिमला। पहाड़ों में सेब सिर्फ एक फल नहीं, बल्कि तीन लाख से ज्यादा बागवान परिवारों की रोजी-रोटी, बच्चों की पढ़ाई और पूरे साल की उम्मीद होता है। लेकिन भारत–न्यूजीलैंड के बीच हुआ नया मुक्त व्यापार समझौता (FTA) हिमाचल के इन्हीं बागवानों की उम्मीदों पर भारी पड़ता दिख रहा है। जिस सरकार से बागवानों को संरक्षण की आस थी, उसी सरकार के फैसले ने सेब उत्पादकों को ठगा हुआ महसूस करने पर मजबूर कर दिया है। इम्पोर्ट ड्यूटी घटने के साथ ही हिमाचल का 5500 करोड़ रुपये का सेब उद्योग अब सीधे संकट की ओर बढ़ता नजर आ रहा है।
खबर के मुताबिक, भारत–न्यूजीलैंड FTA के तहत अब न्यूजीलैंड से आने वाले सेब पर इम्पोर्ट ड्यूटी 50 फीसदी से घटाकर 25 फीसदी कर दी गई है। ड्यूटी कम होने का सीधा मतलब है न्यूजीलैंड के सेब अब भारतीय बाजार में पहले से ज्यादा सस्ते दामों पर उपलब्ध होंगे। इससे हिमाचल, जम्मू-कश्मीर और उत्तराखंड में पैदा होने वाले सेब को बाजार में सही कीमत मिलना मुश्किल हो जाएगा।
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हिमाचल के बागवान इसलिए ज्यादा नाराज़ हैं क्योंकि प्रधानमंत्री बनने से पहले नरेंद्र मोदी ने सुजानपुर की रैली में सेब पर इम्पोर्ट ड्यूटी 50 फीसदी से बढ़ाकर 100 फीसदी करने का वादा किया था। बागवानों का कहना है कि ड्यूटी बढ़ाने की बजाय सरकार ने उल्टा उसे घटा दिया, जिससे विदेशी सेब के लिए बाजार खोल दिया गया।
सरकार का तर्क है कि ड्यूटी में कटौती अप्रैल से अगस्त के बीच की गई है, जब हिमाचल का सेब बाजार में नहीं होता। लेकिन सेब उत्पादक इस दावे को सिरे से खारिज कर रहे हैं। स्टोन फ्रूट एसोसिएशन के अध्यक्ष और सेब बागवान दीपक सिंघा का कहना है कि हिमाचल का सेब जून में ही बाजार में आना शुरू हो जाता है और अगस्त में सीजन अपने चरम पर होता है। ऐसे में इसी समय न्यूजीलैंड का सस्ता सेब आना सीधे तौर पर हिमाचल के सेब की कीमतें गिराएगा।
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FTA का असर सिर्फ ताजे सेब पर ही नहीं पड़ेगा। हिमाचल के 6000 फीट से अधिक ऊंचाई वाले इलाकों का सेब बड़ी मात्रा में कंट्रोल्ड एटमॉस्फियर (CA) कोल्ड स्टोरेज में रखा जाता है, जो दिसंबर से लेकर जून तक बाजार में आता है। अब अप्रैल में कम ड्यूटी वाला न्यूजीलैंड का सेब आने से कोल्ड स्टोर में रखे हिमाचली सेब के दाम भी गिरने का खतरा बढ़ गया है।
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सेब उत्पादक संघ के अध्यक्ष सोहन ठाकुर ने साफ कहा कि देश की एपल इंडस्ट्री को बचाने के लिए इम्पोर्ट ड्यूटी 50 फीसदी से बढ़ाकर 100 फीसदी की जानी चाहिए।
उनका कहना है कि जब तक विदेशी सेब पर सख्त शुल्क नहीं लगेगा, तब तक हिमाचल के बागवान सस्ते आयात से मुकाबला नहीं कर पाएंगे।
बागवानों की नाराज़गी की एक बड़ी वजह उत्पादन का अंतर भी है। हिमाचल में प्रति हेक्टेयर सेब की पैदावार औसतन 7 से 8 मीट्रिक टन होती है, जबकि न्यूजीलैंड में यह आंकड़ा 60 से 70 मीट्रिक टन तक पहुंच चुका है।
हिमाचल में एक किलो सेब तैयार करने की लागत करीब 27 रुपये आती है। बागवानों को तभी फायदा होता है जब सेब 50 से 60 रुपये किलो बिके। ऐसे में अधिक पैदावार वाले देशों से सस्ते सेब का आयात हिमाचल के सेब को बाजार से बाहर कर सकता है।
FTA के बाद हिमाचल के बागवानों में गुस्सा और डर दोनों है। उनका कहना है कि अगर यह समझौता ऐसे ही लागू रहा तो हिमाचल, जम्मू-कश्मीर और उत्तराखंड का सेब उद्योग तबाही की ओर चला जाएगा।
बागवान केंद्र सरकार से मांग कर रहे हैं कि या तो सेब पर इम्पोर्ट ड्यूटी बढ़ाई जाए या फिर इस करार पर दोबारा विचार किया जाए, ताकि पहाड़ के बागवानों की मेहनत और भविष्य दोनों बच सके।