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September 21, 2024

हिमाचल की अनोखी परंपरा, यहां मिट्टी की मूर्तियों का रचाया जाता है विवाह

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शिमला। हिमाचल प्रदेश में हर सीजन में कोई ना कोई त्योहार और मेले होना आम है। इन त्योहारों में जहां लोग कई समय के बाद परिवार और रिश्तेदारों से मिलते है। वहीं, ऐसे कई त्योहार है जहां पौराणिक कथाओं को एक बार फिर नाटकीय रूप में समाज के सामने पेश किया जाता है। इन्हीं में से एक है रली शंकर का विवाह। ये त्योहार विशेष रूप से जिला कांगड़ा में मनाया जाता है। भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित इस त्योहार में क्या होता है चलिए, आपको बताते हैं।

मिट्टी से बनती है मूर्तियां

यह मेला फाल्गुन के महीने में गांव के बच्चों द्वारा मनाया जाता है। गांव की छोटी-छोटी लड़कियां रीठे की गुठली को मिट्टी में कुछ दिन के लिए दवा देती है। फिर एक सप्ताह बाद इसे निकाला जाता है और अच्छे से साफ कर उसकी पूजा की जाती है। इसके बाद मिट्टी के खिलौने बनाए जाते हैं और उनकी आंखों पर रीठे की गुठलियां लगाई जाती है। इन तीन मूर्तियों में एक शंकर का रूप मानी जाती है, एक माता पार्वती को एक गणेश का रूप होती है। यह भी पढ़ें: हिमाचल : किस बात से परेशान था पंकज, बिना किसी से कुछ कहे छोड़ गया दुनिया

लड़कियां करती है विशेष पूजा

अब जिस घर में रलियां रखी जाती है, उस घर में प्रतिदिन आस पास की लड़कियां सूर्योदय से पहले जमा होती हैं और जंगली फूल लेकर आती है। इसके बाद मिट्टी की बनाई मूर्तियों की खास पूजा की जाती है और रलियां के गीत गाए जाते है। फिर शाम के समय भजन भी गाए जाते है। अब जैसे- जैसे रली के विवाह का दिन नजदीक आता है रौनक और बढ़ने लग जाती है I

विवाह की तैयारियां

विवाह से कुछ दिन पहले रली और शंकर को अलग-अलग घरों में रखा जाता है। अब पूजा एक घर नहीं बल्कि दो घरों में होने लगती है। इसी के साथ लड़कियों की भी दो टोलियां बन जाती है। अब जो भी कार्यक्रम होता है वह शादी की ही तरह होता है। यह भी पढ़ें: हिमाचल : बच्चों के साथ स्कूल से लौट रहा था शिक्षक, खाई में गिर गई कार दिन में रली की तरफ से लड़कियों की टोली रली को एक टोकरी में डाल कर घर-घर जाती है और बदले उन्हें गांव के लोग धान /धन आदि देते है। इन्हीं पैसो से लड़कियां आगे चल कर नई मूर्तियाँ और उनके लिए वस्त्र आदि खरीदती है।

ऐसे आती है बारात

जैसे-जैसे विवाह का दिन आता है, तो गांव के लोग भी पूरा सहयोग लड़कियों को देते है और दावत तक का इंतजाम होता है। सारे कार्यक्रम एक सामान्य लड़का-लड़की की शादी की तरह होते है। विवाह के दिन शंकर के घर से वाकायदा लड़कियां ढोलकी चिमटे के साथ बारात ले कर आती है। यह भी पढ़ें: हिमाचल : गरीब परिवार की बेटी ने किया कमाल, मां का दर्द देख आया ऐसा विचार शादी के गीत गाये जाते है, फिर शादी की तरह लग्न- फेरे दिलवा कर रली और शंकर का विवाह करवा दिया जाता है। इसके बाद रली को शंकर जी के साथ उनके घर के लिए विदा किया जाता है।

रली विसर्जन और रली का मेला

शादी संपन्न होने के बाद बैसाखी के दिन रली और शंकर की मूर्तियों का विसर्जन कर दिया जाता है। इस दिन जिला कांगड़ा में कई मेले आयोजित किए जाते है। खड्डों के पास जाकर लोगों द्वारा रली का विसर्जन किया जाता है। हालांकि, समय बीतने के साथ-साथ अब यह अनूठी परम्परा ख़त्म होने को है।

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