शिमला। हिमाचल प्रदेश के पुलिस जिला बद्दी में खनन माफिया पर सख्त कार्रवाई करने और उसके बाद लंबी छुट्टी पर जाने वाली एसपी बद्दी इल्मा अफरोज की तत्काल नियुक्ति पर हिमाचल हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। जिसमें हिमाचल की सुक्खू सरकार की तरफ से बताया गया कि आईपीएस अधिकारी इल्मा अफरोज ने खुद ही अपने स्थानांतरण की मांग की थी।
इल्मा अफरोज की नियुक्ति याचिका पर हुई सुनवाई
दरअसल लंबी छुट्टी के बाद वापस लौटी आईपीएस अधिकारी इल्मा अफरोज को सरकार ने हिमाचल प्रदेश पुलिस मुख्यालय में तैनाती दी थी। पिछले लंबे समय से विवादों में चल रहे इस मामले को लेकर बद्दी के ही एक स्थानीय निवासी ने हिमाचल हाईकोर्ट में इल्मा अफरोज की नियुक्ति को लेकर याचिका दायर की थी।
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क्या बोला था याचिकाकर्ता
याचिका में सुचा राम नाम के एक शख्स ने हाईकोर्ट में अपील दायर कर आईपीएस इल्मा अफरोज की तैनाती बद्दी में ही करने की मांग की थी। याचिकाकर्ता ने कोर्ट में बताया था कि बद्दी में इल्मा अफरोज की तैनाती के बाद से यहां की कानून व्यवस्था और भी बेहतर हुई थी। इतना ही नहीं इल्मा अफरोज के बद्दी में तैनाती के दौरान यहां की जनता अपने आप को सुरक्षित महसूस करती थी।
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याचिकाकर्ता की ओर से बताया गया कि इल्मा अफरोज एक अच्छी और निडर अधिकारी हैं। एसपी बद्दी रहते हुए उन्होंने नालागढ़ व बरोटीवाला क्षेत्र में कानून व्यवस्था को और बेहतर बनाया। यही नहीं उन्होंने यहां अवैध खनन और ड्रग माफिया के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की। याचिकाकर्ता ने अदालत से गुहार लगाई कि अगर इल्मा अफरोज की तैनाती फिर से बददी में की जाएगी तो वहां के लोग खुद को और महफूज महसूस करेंगे।
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सरकार ने हाईकोर्ट में दिया अपना जवाब
इसी याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति विवेक सिंह ठाकुर और न्यायमूर्ति राकेश कैंथला की बैंच ने राज्य के गृह सचिव और डीजीपी को नोटिस जारी करते हुए इस मामले पर स्पष्टीकरण मांगा है।
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शनिवार को हाईकोर्ट में इस मामले की सुनवाई के दौरान सरकार की तरफ से हाईकोर्ट को बताया गया कि इल्मा अफरोज ने खुद ही अपने तबादले की मांग की थी। उसी आधार पर इल्मा अफरोज को हिमाचल प्रदेश पुलिस मुख्यालय में तैनाती दी गई है। आईपीएस इल्मा अफरोज ने वहां पर ज्वाइनिंग भी दे दी है।
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क्या बोले न्यायाधीश
राज्य के गृह सचिव और पुलिस महानिदेशक की ओर से दिए गए जवाब में मुख्य न्यायाधीश गुरमीत सिंह संधावालिया और न्यायाधीश सत्येन वैद्य की खंडपीठ ने कहा कि अगर कोई अधिकारी स्वयं ट्रांसफर लेना चाहता है, तो उसमें अदालत हस्तक्षेप नहीं कर सकती है।