शिमला। हिमाचल प्रदेश में लगातार बढ़ती प्राकृतिक आपदाओं, बाढ़, भूस्खलन और अन्य घटनाओं के कारण कई लोग अक्सर खो जाते हैं। इन समस्याओं का समाधान करते हुए फोरेंसिक विभाग ने एक महत्वपूर्ण पहल की है। प्रदेश में डिजास्टर विक्टिम सेल का गठन किया गया है। यह सेल खोए हुए व्यक्तियों का डाटा बैंक तैयार करेगा, जो गुमशुदा लोगों की पहचान और उनके परिवारों से पुनः मिलाने में मदद करेगा।
ऐसे होगी खोए लोगों की पहचान
फोरेंसिक विभाग के अनुसार, डिजास्टर विक्टिम सेल का मुख्य उद्देश्य उन लोगों की पहचान करना है जो आपदाओं के दौरान गुम हो जाते हैं या जिनके शव मिलते हैं। इस सेल में एकत्रित डाटा का उपयोग करके, डीएनए और अन्य वैज्ञानिक तरीकों से परिवारों की जानकारी जुटाई जाएगी। इससे कई परिजनों को अपने खोए हुए Angehorigen की पहचान करने में सहायता मिली है।
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क्षत-विक्षत शवों की भी हो सकेगी पहचान
आपदाओं के दौरान, जब लोग बह जाते हैं या दब जाते हैं, तो उन्हें खोजने के लिए विशेष अभियान चलाए जाते हैं। हालांकि, भयंकर परिस्थितियों के कारण शवों की पहचान करना एक चुनौती बन जाता है। अक्सर, जब शव बरामद होते हैं, तो उनकी स्थिति ऐसी नहीं होती कि उन्हें पहचानना संभव हो। ऐसे में, फोरेंसिक साइंस विभाग की यह नई पहल पहचान की प्रक्रिया को आसान बनाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।
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इन जगहों पर फोरेंसिक यूनिट
हिमाचल प्रदेश में वर्तमान में तीन जोन और तीन फोरेंसिक यूनिट स्थापित की गई हैं, जिससे पूरे प्रदेश में सेवाएं उपलब्ध होंगी। सार्दन जोन में शिमला, सिरमौर, सोलन और किन्नौर जिले शामिल हैं। सेंट्रल जोन में मंडी, कुल्लू, हमीरपुर, बिलासपुर और लाहुल-स्पीति शामिल हैं, जबकि नोर्थ जोन में कांगड़ा, चंबा और ऊना जिले शामिल हैं। इसके अलावा, नूरपुर, बद्दी और बिलासपुर में तीन फोरेंसिक यूनिट भी स्थापित की गई हैं।
लोगों का रखा जाएगा डाटा
अधिकांश मामलों में, आपदाओं के बाद शवों की पहचान करना एक चुनौती होती है। ऐसे में फोरेंसिक विज्ञान विभाग की मदद से, पहचान करने की प्रक्रिया में तेजी लाने की कोशिश की जा रही है। निदेशालय फोरेंसिक सर्विसेस की निदेशक, डा. मीनाक्षी महाजन ने बताया कि डिजास्टर विक्टिम सेल के माध्यम से खोए हुए लोगों का डाटा रखा जाएगा।
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इससे पहचान व खोज प्रक्रिया को आसान बनाया जा सकेगा। यह पहल केवल एक तकनीकी समाधान नहीं है बल्कि यह एक मानवता की सेवा भी है। जब कोई व्यक्ति गुम हो जाता है तो उसके परिवार के लिए यह एक अत्यंत कठिन समय होता है। उन्हें आशा की एक किरण की आवश्यकता होती है और यह सेल उन्हें वह राहत देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
खोए लोगों को खोजना चुनौती से कम नहीं
आपदाओं की तीव्रता को देखते हुए यह पहल समय की आवश्यकता बन गई है। फोरेंसिक विभाग के साथ-साथ सरकार, पुलिस और एनडीआरएफ-एसडीआरएफ की ओर से विशेष अभियान चलाए जाएंगे ताकि खोए हुए व्यक्तियों की पहचान और खोज की जा सके। यह सहयोग केवल तकनीकी संसाधनों का नहीं, बल्कि मानवता की भावना का भी प्रतीक है।