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January 11, 2025

ऑलिंपिक्स में मेडल लेकर भारत लौटा निषाद- प्रदेश के नेताओं से जाहिर की नाराजगी

पीएम मोदी ने फोन कर दी बधाई

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ऊना। हिमाचल प्रदेश के पैराएथलीट निषाद कुमार ने हाल ही में पेरिस पैरा ऑलिंपिक्स में सिल्वर मेडल जीत कर दूसरी बार हिमाचल का नाम रोशन किया है। मगर हिमाचल के इस होनहार बेटे ने हिमाचल के नेताओं और मंत्रियों से नाराजगी जाहिर की है।

PM मोदी ने फोन कर दी निषाद को बधाई

दरअसल, जहां एक तरह निषाद को उनकी इस सफलता पर PM नरेंद्र मोदी ने फोन पर बधाई दी। वहीं, हिमाचल प्रदेश के किसी भी मंत्री या नेता ने उन्हें बधाई नहीं दी।

 

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PM मोदी और खेल मंत्री से करेंगे मुलाकात

ऊना जिले के छोटे से गांव बदायूं के निषाद कुमार पेरिस पैरा ओलिंपिक में सिल्वर मेडल जीत कर बीते कल ही पैरिस से वापस दिल्ली पहुंचे हैं।  दो दिन तक दिल्ली में रहकर खेल मंत्री और PM नरेंद्र मोदी से मिलने के बाद वह अपने घर बदायूं आएंगे। उन्होंने बताया कि घर पहुंच कर सबसे पहले अपनी मां के हाथों की बनाई खीर खाना चाहते हैं और अपने घर में रखी हुई भैंस का दूध पीना चाहते हैं।

प्रदेश के नेताओं-मंत्रियों ने नहीं दी बधाई

निषाद ने बताया कि सिल्वर मेडल जीतने के बाद PM नरेंद्र मोदी ने उनसे 3 मिनट 13 सेकेंड बात की और उन्हें इस जीत के लिए बधाई दी। मगर हिमाचल का एकमात्र पैराओलंपियन होने के बावजूद मुझे हिमाचल के किसी भी मंत्री या नेता ने फोन कर बधाई देना मुनासिब नहीं समझा।

 

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अन्य खिलाड़ियों पर लुटाया जा रहा खूब प्यार

निषाद ने कहा कि यह दुखद है कि अन्य राज्यों में ओलंपियन खिलाड़ियों पर खूब प्यार लुटाया जा रहा है। वहां की सरकारों द्वारा विजेताओं के लिए इनामों के साथ घोषणाओं की झड़ी लग रही है। वहीं, प्रदेश के किसी भी नेता या मंत्री की तरफ से उनके लिए कोई भी घोषणा नहीं की गई है।

छोटे से गांव से पैरालंपिक तक का सफर

पैरालंपिक में देश के लिए गोल्ड और सिल्वर मेडल जीत कर लाना निषाद के संघर्ष और मेहनत की कहानी को बयां करती है। एक छोटे से गांव से पैरालंपिक तक का सफर निषाद के लिए बिल्कुल आसान नहीं था।

 

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बचपन में कट गया था हाथ

निषाद एक किसान परिवार से संबंध रखते हैं। निषाद जब छह साल के थे तब जानवरों के लिए चारा काटते समय निषाद का हाथ मशीन में आ गया था। हादसे में उनका दायां हाथ कट गया। जिसके कारण निषाद को पैरा खेलों में आना पड़ा।

माता-पिता ने नहीं टूटने दिया हौसला

निषाद को बचपन से ही खेल-कूद का शौक था। इसी कारण निषाद के माता-पिता ने हमेशा निषाद को सपोर्ट किया। निषाद बताते हैं कि निषाद के माता-पिता ने उन्हें कभी महसूस नहीं होने दिया कि वह दिव्यांग हैं। माता-पिता के समर्थन के कारण ही वह इतना बड़ा मुकाम हासिल कर पाए हैं।

 

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धुरंधर खिलाड़ी रही हैं मां

निषाद की मां भी दो खेलों की धुरंधर खिलाड़ी रही हैं। निषाद की मां वॉलीबॉल और डिस्कस थ्रो की प्लेयर रही हैं। ऐसे में मां से प्रेरणा लेकर उन्होंने भी खिलाड़ी बनने और भारत का नाम रोशन करने की ठानी। निषाद ने बताया कि स्कूल और कॉलेज में वह पैरा में नहीं बल्कि सामान्य कैटेगरी के खिलाड़ियों के साथ खेलते थे।

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