शिमला। हिंदू धर्म में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। जन्माष्टमी हिंदू धर्म का एक प्रमुख त्योहार है- जो भगवान श्रीकृष्ण के जन्मदिन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। इसे कृष्ण जन्माष्टमी या गोकुलाष्टमी भी कहा जाता है।
यह त्योहार भाद्रपद मास की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की कथा का विशेष महत्व होता है। पूरे देश में हर साल कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व बड़े ही हर्षो-उल्लास से मनाया जाता है।
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इस साल जन्माष्टमी का त्योहार अगस्त में मनाया जा रहा है। इसे लेकर देवभूमि हिमाचल के मंदिरों में तैयारियां भी शुरू हो गई हैं। हालांकि, इस साल की जन्माष्टमी की तिथि को लेकर लोगों में काफी कन्फ्यूजन है।
कब है श्रीकृष्ण जन्माष्टमी?
पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास की अष्टमी तिथि 26 अगस्त को सुबह 3 बजकर 39 मिनट पर शुरू होगी। इस तिथि का समापन 27 अगस्त को सुबह 2 बजकर 19 मिनट पर होगा। ऐसे में इस साल श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व 26 अगस्त यानी सोमवार को मनाया जाएगा।
कौन सा जन्मोत्सव मनाया जाएगा?
ग्रथों के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भादो मास की अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में आधी रात को हुआ था। इस साल रोहिणी नक्षत्र 26 अगस्त को दोपहर 3 बजकर 55 मिनट से शुरू होगा और 27 अगस्त को दोपहर 3 बजकर 38 मिनट पर समाप्त होगा। ऐसे में इस साल भगवान श्रीकृष्ण का 5251वां जन्मोत्सव मनाया जाएगा।
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क्या है पूजा का शुभ मुहूर्त?
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के पूजन का शुभ मुहूर्त 26 अगस्त की दोपहर 12 बजे से 27 अगस्त की दोपहर 12 बजकर 44 मिनट तक रहेगा। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रत का पारण 27 अगस्त को दोपहर 3 बजकर 38 मिनट के बाद किया जाएगा।
क्या है जन्माष्टमी का महत्व?
जन्माष्टमी भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की खुशी में मनाई जाती है, जिन्हें भगवान विष्णु का आठवां अवतार माना जाता है। श्रीकृष्ण का जन्म कंस के अत्याचारों से पृथ्वी को मुक्त कराने के लिए हुआ था। उनका जन्म मथुरा के कारागार में आधी रात को हुआ था।
श्रीकृष्ण ने महाभारत के युद्ध में अर्जुन को भगवद गीता का उपदेश दिया, जो जीवन के गूढ़ रहस्यों और धर्म का प्रतीक है। इसलिए, जन्माष्टमी के दिन गीता के उपदेशों का भी पाठ किया जाता है।
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श्रीकृष्ण का जीवन और उनके उपदेश प्रेम, भक्ति, और धर्म की विजय का संदेश देते हैं। जन्माष्टमी पर उनके जीवन की लीलाओं का स्मरण किया जाता है और उनसे प्रेरणा ली जाती है।
जन्माष्टमी का उत्सव और परंपराएं:
जन्माष्टमी के दिन भक्तगण व्रत रखते हैं- जो रात को 12 बजे भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के बाद पारण के साथ पूरा होता है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति का अभिषेक किया जाता है और उनका श्रृंगार किया जाता है। फिर आधी रात को भगवान के जन्म की पूजा की जाती है।
मंदिरों में भगवान श्रीकृष्ण की विभिन्न लीलाओं की झांकियां सजाई जाती हैं और कृष्ण के बाल रूप का दर्शन कराया जाता है। भक्तजन इस दिन विशेष रूप से मथुरा, वृंदावन, और द्वारका जैसे तीर्थस्थलों पर जाते हैं।
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कई स्थानों पर कृष्ण की रासलीला का मंचन होता है- जिसमें उनके जीवन की कहानियों का नाटकीय प्रदर्शन किया जाता है। कई जगहों पर जन्माष्टमी के दिन दही हांडी का आयोजन होता है, जिसमें मटकी में दही या मक्खन भरकर ऊंचाई पर लटकाया जाता है और लोग मानव पिरामिड बनाकर इसे फोड़ते हैं। यह आयोजन श्रीकृष्ण की माखनचोरी की लीलाओं का प्रतीक है।
जन्माष्टमी के दिन भगवान कृष्ण के भजन-कीर्तन का आयोजन होता है, जिसमें भक्तजन भगवान का गुणगान करते हैं और उनके नाम का जप करते हैं।
इस दिन भगवान कृष्ण को विशेष रूप से मक्खन, मिष्ठान्न, और फल अर्पित किए जाते हैं, और बाद में इन्हें प्रसाद के रूप में बांटा जाता है।
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जन्माष्टमी से जुड़ी कथाएं:
जन्माष्टमी से कई प्रसिद्ध कथाएं और पौराणिक कहानियां जुड़ी हुई हैं- जो भगवान श्रीकृष्ण के जीवन, उनकी लीलाओं और चमत्कारों को दर्शाती हैं। ये कथाएं धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व के साथ-साथ मनोरंजक भी हैं। यहां कुछ प्रमुख कथाएं दी जा रही हैं-
कंस का अत्याचार:
मथुरा के राजा कंस को आकाशवाणी से पता चला कि उसकी बहन देवकी का आठवां पुत्र उसकी मृत्यु का कारण बनेगा। इस डर से कंस ने अपनी बहन देवकी और उसके पति वसुदेव को कारागार में डाल दिया। उसने उनके सात पुत्रों को मार डाला।
कृष्ण का जन्म:
जब देवकी का आठवां पुत्र (श्रीकृष्ण) आधी रात को पैदा हुआ, तो कारागार के द्वार स्वतः खुल गए और वसुदेव उन्हें यमुना नदी पार कर गोकुल में नंद बाबा और यशोदा के पास ले गए। कंस के भय से कृष्ण को गोकुल में छिपाकर रखा गया, जहां उन्होंने अपनी बाल लीलाएं कीं।
पूतना राक्षसी:
कंस ने कृष्ण को मारने के लिए पूतना नामक राक्षसी को भेजा, जिसने एक सुंदर महिला का रूप धारण कर लिया। वह गोकुल में कृष्ण के पास आई और उन्हें जहरीला दूध पिलाने का प्रयास किया।
कृष्ण का चमत्कार:
बालकृष्ण ने पूतना के जहरीले दूध को पीते हुए उसे मार डाला। पूतना का वध कृष्ण की पहली राक्षसी वध की लीला मानी जाती है, जो उनके ईश्वरत्व और अद्भुत शक्तियों का परिचय देती है।
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कालिया नाग की कथा:
यमुना नदी में कालिया नामक विषैला नाग रहता था, जिसके विष से नदी का जल प्रदूषित हो गया था। एक दिन कृष्ण ने अपने मित्रों के साथ खेलते हुए नदी में छलांग लगा दी और कालिया नाग से युद्ध किया।
कृष्ण का विजय:
कृष्ण ने कालिया को पराजित कर उसके सिर पर नृत्य किया, जिसके बाद नाग ने हार मान ली। इस घटना के दौरान, शेषनाग ने कृष्ण के ऊपर अपना फन फैलाकर उन्हें छत्र प्रदान किया, जो कृष्ण के दिव्य रूप का प्रतीक है।
इंद्र देव की नाराजगी:
गोकुल के लोग भगवान इंद्र की पूजा करते थे ताकि अच्छी वर्षा हो और उनकी फसलें उगें। एक दिन कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत की पूजा करने का सुझाव दिया क्योंकि वह उनकी गायों को चारा और सुरक्षा प्रदान करता था। इंद्र इससे नाराज हो गए और गोकुल पर भारी वर्षा और तूफान भेजा।
कृष्ण का चमत्कार:
कृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठाकर गोकुलवासियों को इंद्र के प्रकोप से बचाया। इंद्र ने अपनी गलती मानी और कृष्ण की शक्ति को स्वीकार किया।
माखन चोरी की कथा:
कृष्ण को माखन बहुत प्रिय था, और वे अपने सखाओं के साथ गोकुल की गलियों में मटकी फोड़कर माखन चुराते थे। उनकी यह लीला इतनी प्रसिद्ध हुई कि उन्हें "माखन चोर" कहा जाने लगा।
मां यशोदा की प्रेम कथा:
एक बार कृष्ण की माखन चोरी से परेशान होकर मां यशोदा ने उन्हें दंडित करने की कोशिश की। लेकिन जब उन्होंने कृष्ण के मुख में पूरा ब्रह्मांड देखा, तो वह उनके ईश्वरत्व को समझ गईं और उनकी भक्ति में लीन हो गईं।