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October 5, 2024

नवरात्रि के चौथे दिन होती है मां कूष्मांडा की पूजा, जानें कथा और महत्व

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शिमला। हिमाचल प्रदेश के शक्तिपीठों और मंदिरों में सालभर भक्तों का तांता लगा रहता है। मगर नवरात्र के दौरान इन शक्तिपीठों में विशेष रूप से भक्तों की संख्या में भारी वृद्धि होती है। हिमाचल प्रदेश में स्थित ज्वालामुखी, चामुंडा देवी, नैना देवी, ब्रजेश्वरी देवी और चिंतपूर्णी जैसे प्रसिद्ध शक्तिपीठ नवरात्र के समय लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बनते हैं।

शक्तिपीठों में लगा भक्तों का तांता

नवरात्र के नौ दिनों में यहां भक्त बड़ी श्रद्धा और भक्ति भाव से देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों की आराधना करते हैं। इन दिनों मंदिरों को विशेष रूप से सजाया जाता है और कई धार्मिक अनुष्ठान, हवन, जागरण और भंडारे आयोजित किए जाते हैं। लोग मां दुर्गा की कृपा पाने के लिए व्रत रखते हैं और लंबी दूरी तय कर पैदल यात्रा करते हुए मंदिर पहुंचते हैं। यह भी पढ़ें : हिमाचल में 8वीं पास को मिलेगी नौकरी, इंटरव्यू को सिर्फ दो दिन बाकी

मां कूष्मांडा की स्वरूप

आज नवरात्रि का चौथा दिन है। नवरात्रि के चौथे दिन मां कूष्मांडा की पूजा की जाती है। देवी कूष्मांडा को ब्रह्मांड की सृष्टिकर्त्री माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि उनके एक हल्के से मुस्कान द्वारा ब्रह्मांड की रचना हुई थी, इसलिए उन्हें कूष्मांडा नाम से पुकारा जाता है। उनके आठ हाथ होते हैं, जिसमें वे विभिन्न अस्त्र-शस्त्र, माला और अमृत कलश धारण करती हैं और उन्हें अष्टभुजा देवी भी कहा जाता है। देवी का वाहन सिंह है, जो उनके साहस और शक्ति का प्रतीक है। यह भी पढ़ें : हिमाचल : पिंडदान करते वक्त खड्ड में बह गए थे पिता-पुत्र, आज हाथ लगी देह इस दिन भक्तजन देवी को मालपुआ, हलवा और फल अर्पित करते हैं और उनके सामने घी का दीपक जलाकर आराधना करते हैं। चौथे दिन की पूजा साधकों को ज्ञान, स्वास्थ्य और समृद्धि प्रदान करने वाली मानी जाती है। ऐसा माना जाता है कि मां कूष्मांडा की आराधना से रोगों का नाश होता है और व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। नवरात्रि का चौथा दिन शक्ति और सृजन की आराधना के लिए समर्पित होता है, और इस दिन लोग अपने घरों में खुशहाली और सौभाग्य की कामना करते हैं।

कूष्मांडा माता की कथा

नवरात्रि के चौथे दिन माता दुर्गा के कूष्मांडा स्वरूप की पूजा की जाती है। पौराणिक कथा के अनुसार, जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था और चारों ओर अंधकार फैला हुआ था, तब मां कूष्मांडा ने अपने मुस्कान से ब्रह्मांड की रचना की। "कूष्म" का अर्थ है "कुम्हड़ा" (पंपकिन) और "अंडा" का अर्थ है ब्रह्मांड। यह भी पढ़ें : हिमाचल : गहरी खाई में गिरा नारायण, घर लौटते वक्त फिसल गया पांव मां कूष्मांडा को सृष्टि की आदिस्वरूपा माना जाता है। उनकी मुस्कान से सृष्टि का प्रारंभ हुआ, इसलिए उन्हें "कूष्मांडा" नाम से पूजा जाता है। वे अष्टभुजा धारी देवी हैं, जिनके हाथों में कमल, धनुष-बाण, कमंडल, अमृत कलश, चक्र, गदा आदि धारण हैं। कूष्मांडा देवी का निवास सूर्यमंडल के भीतर है, जहां कोई अन्य देवी-देवता नहीं पहुंच सकते।

क्या है पूजा विधि?

प्रातः स्नान- नवरात्रि के चौथे दिन प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। व्रत और संकल्प- पूजा से पहले व्रत का संकल्प लें और देवी की पूजा पूरी श्रद्धा के साथ करने का मन बनाएं। कलश स्थापना- पूजा स्थल पर कलश की स्थापना करें और उसमें जल, सुपारी, चावल और सिक्के रखें। मां की प्रतिमा या चित्र- देवी कूष्मांडा की प्रतिमा या चित्र को पूजा स्थल पर स्थापित करें और उनका ध्यान करें। घी का दीपक जलाएं- देवी को घी का दीपक जलाकर आरती शुरू करें। यह भी पढ़ें : हिमाचल : पहले दोनों दोस्तों ने साथ में पी शराब, फिर एक ने ली दूसरे की जा*न सामग्री- देवी को लाल फूल, धूप, अगरबत्ती, फल, पान, नारियल, और मिठाई अर्पित करें। कुम्हड़े का भोग विशेष रूप से उन्हें अर्पित किया जाता है। मंत्र जाप- देवी के निम्नलिखित मंत्र का जाप करें- ॐ देवी कूष्मांडायै नमः आरती- मां कूष्मांडा की आरती करें और उन्हें प्रसाद अर्पित करें। भोग- देवी को मालपुआ, हलवा और पान अर्पित करें। भक्तजन इस दिन फल और मिठाई का भोग लगाते हैं। प्रसाद वितरण- पूजा समाप्त होने के बाद प्रसाद को सभी लोगों में वितरित करें और स्वयं भी ग्रहण करें। यह भी पढ़ें : हिमाचल में फर्जी डिप्लोमा बनाकर पाई टीचर की नौकरी : FIR दर्ज

मां कूष्मांडा की पूजा का मुख्य महत्व

मां कूष्मांडा की पूजा का नवरात्रि में विशेष महत्व है, क्योंकि वे ब्रह्मांड की सृष्टिकर्त्री मानी जाती हैं। उनके नाम का अर्थ ही "कूष्म" (कुम्हड़ा) और "अंडा" (ब्रह्मांड) से जुड़ा है, जो इस बात का प्रतीक है कि उन्होंने अंधकारमय ब्रह्मांड की रचना की। मां कूष्मांडा की पूजा से न केवल सृष्टि के प्रारंभिक तत्वों की ऊर्जा का आह्वान होता है, बल्कि भक्तों को शक्ति, सेहत और समृद्धि भी प्राप्त होती है। उनकी कृपा से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और उत्साह का संचार होता है। सृष्टि की सृजनकर्ता- मां कूष्मांडा को पूरे ब्रह्मांड की रचना का श्रेय दिया जाता है। इसलिए, उनकी पूजा से सृजनात्मकता और नई शुरुआत का आशीर्वाद प्राप्त होता है। स्वास्थ्य और दीर्घायु- देवी के इस स्वरूप की पूजा करने से आरोग्य और दीर्घायु का आशीर्वाद मिलता है। कूष्मांडा माता रोगों को नष्ट कर जीवन में स्वास्थ्य और शक्ति का संचार करती हैं। सकारात्मक ऊर्जा- उनकी पूजा से व्यक्ति के जीवन में नकारात्मकता का अंत होता है और मानसिक शांति और सकारात्मकता का आगमन होता है। वे अपने भक्तों को हर तरह की नकारात्मक ऊर्जा से मुक्त करती हैं। यह भी पढ़ें : हिमाचल : गहरी खाई में गिरा नारायण, घर लौटते वक्त फिसल गया पांव साहस और आत्मविश्वास- मां कूष्मांडा की कृपा से भक्तों को साहस और आत्मविश्वास प्राप्त होता है, जिससे वे जीवन के कठिनाइयों का सामना कर सकें। देवी के अष्टभुजा रूप से भक्तों को शारीरिक और मानसिक बल मिलता है। आध्यात्मिक उन्नति- कूष्मांडा माता की पूजा करने से साधक को आध्यात्मिक विकास का आशीर्वाद मिलता है और उसकी साधना में प्रगति होती है। देवी की उपासना से कुंडलिनी जागरण और ध्यान की गहरी अनुभूति प्राप्त होती है। सुख-समृद्धि का प्रतीक- मां कूष्मांडा की पूजा घर में सुख-शांति और समृद्धि लाती है। वे अपने भक्तों को धन-धान्य से सम्पन्न करती हैं और जीवन में संतुलन और खुशहाली बनाए रखती हैं।

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