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August 16, 2024

शनि प्रदोष व्रत कल: बन रहा महासंयोग, जानें पूजा विधि, मुहूर्त और नियम

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नई दिल्ली। हिंदू धर्म में पूजा-पाठ और व्रत को बहुत महत्व दिया जाता है। हर व्रत किसी ना किसी भगवान को समर्पित है। हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत भगवान शिव को समर्पित एक महत्वपूर्ण व्रत है। यह व्रत हर महीने की त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है। सावन महीने के अंतिम शनिवार के दिन शनि प्रदोष व्रत का शुभ संयोग बन रहा है।

कब है शनि प्रदोष व्रत?

इस बार शनि प्रदोष व्रत 17 अगस्त को यानी कल है। शनिवार को आने वाले प्रदोष तिथि के व्रत को शनि प्रदोष या शनि त्रयोदशी के नाम से जाना जाता है। यह भी पढ़ें: हिमाचल की लड़की को महंगी पड़ी दोस्ती: युवक ने जीरकपुर बुलाकर लूटी आबरू

कब है पूजा का शुभ मुहूर्त?

हिंदू पंचाग के अनुसार, त्रयोदशी तिथि 17 अगस्त को सुबह 08 बजकर 05 मिनट पर शुरू होगी। इस तिथि का समापन अगले दिन यानी 18 अगस्त को सुबह 05 बजकर 50 मिनट पर होगा। पंचांग के अनुसार, इस साल सावन माह का प्रदोष व्रत 17 अगस्त को मनाया जाएगा और शाम को विधिवत पूजा के साथ इसका समापन किया जाएगा।

क्या है शनि प्रदोष व्रत?

शनि प्रदोष व्रत एक विशेष उपवास है जो हिंदू धर्म में भगवान शिव और शनि देव को समर्पित होता है। यह व्रत प्रत्येक माह के त्रयोदशी (प्रदोष) तिथि को रखा जाता है, जब यह दिन शनिवार के दिन पड़ता है, तब इसे शनि प्रदोष व्रत कहा जाता है।

कौन से बन रहे शुभ योग?

इस बार शनि प्रदोष व्रत पर कई शुभ फलदायी योग बन रहे हैं- जिससे इस व्रत का महत्व और भी बढ़ गया है। इस बार
  • प्रीति योग
  • आयुष्मान योग
  • लक्ष्मी नारायण योग आदि शुभ योग बन रहे हैं।
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क्यों रखना चाहिए शनि प्रदोष व्रत?

शनि प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव और शनिदेव की पूजा-अर्चना करनी चाहिए। भगवान शिव शनिदेव के गुरु हैं। ऐसे में भगवान शिव की पूजा करने वाले लोगों पर शनिदेव कभी भी कुदृष्टि नहीं डालते हैं। मान्यताओं के अनुसार, शनि प्रदोष व्रत करने से-
  • शनि देव की कृपा प्राप्ति
शनि देव को न्याय के देवता माना जाता है और उनकी कृपा से व्यक्ति को जीवन में समृद्धि, सफलता और शांतिपूर्ण जीवन प्राप्त होता है। शनि प्रदोष व्रत रखने से शनि देव प्रसन्न होते हैं और उनकी दशा में आने वाली समस्याओं का निवारण होता है। शनि की साढ़ेसाती और अशुभ प्रभाव से भी राहत मिलती है।
  • कष्टों का निवारण
जो लोग शनि की महादशा, साढ़े साती, या ढैय्या से परेशान होते हैं, उन्हें शनि प्रदोष व्रत रखने से लाभ मिलता है। यह व्रत जीवन में आने वाले कष्टों, परेशानियों, और बाधाओं को दूर करने में सहायक होता है।
  • धन-धान्य की वृद्धि
इस व्रत को रखने से व्यक्ति के जीवन में धन-धान्य की वृद्धि होती है। इसे करने से व्यक्ति के आर्थिक समस्याओं का निवारण होता है और परिवार में सुख-समृद्धि का वास होता है।
  • स्वास्थ्य लाभ
शनि प्रदोष व्रत रखने से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। इसे करने से व्यक्ति के भीतर सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, और वह शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत होता है।
  • भगवान शिव की कृपा प्राप्ति
शनि प्रदोष व्रत भगवान शिव को समर्पित होता है, जो सभी देवों में से सबसे अधिक करुणामय और दयालु माने जाते हैं। भगवान शिव की कृपा से व्यक्ति के जीवन में शांति, समृद्धि, और कल्याण की प्राप्ति होती है। यह भी पढ़ें: हिमाचल में यहां आज मनाया जा रहा स्वतंत्रता दिवस, जानिए क्या है कारण

क्या है शनि प्रदोष व्रत की पूजा विधि?

शनि प्रदोष व्रत की पूजा विधि में भगवान शिव और शनि देव की विशेष आराधना की जाती है। इस व्रत की पूजा विधि को पूरी श्रद्धा और नियमों के साथ करना चाहिए। शनि प्रदोष व्रत के दिन-
  • सुबह जल्दी उठकर स्नान करके साफ-सुथरे कपड़े पहनें।
  • साफ और शांत स्थान पर बैठकर भगवान शिव और शनि देव का ध्यान करें।
  • व्रत का संकल्प लें, जिसमें आप मन, वचन और कर्म से पूरे दिन व्रत का पालन करेंगे और संध्या समय पूजा करेंगे।
  • घर के पूजा स्थल में या मंदिर में शिवलिंग की स्थापना करें।
  • शिवलिंग को गंगाजल, दूध, दही, शहद, और पंचामृत से स्नान कराएं।
  • शिवलिंग पर जल और बेलपत्र अर्पित करें। बेलपत्र भगवान शिव को अत्यंत प्रिय होता है।
  • शनि देव की प्रतिमा या चित्र के सामने सरसों के तेल का दीपक जलाएं।
  • शनि देव को काले तिल, सरसों का तेल, नीले फूल, और काले वस्त्र अर्पित करें।
  • ॐ शं शनैश्चराय नमः मंत्र का जाप, शिव चालीसा और शनि चालीसा का पाठ करें।
  • भगवान शिव और शनि देव को फल, मिठाई, और अन्य प्रसाद अर्पित करें।
  • श्रद्धा के साथ भोग लगाएं और दीपक व धूप जलाकर आरती करें।
  • प्रदोष काल, जो सूर्यास्त से लगभग 1.5 घंटे पहले से लेकर सूर्यास्त के 1.5 घंटे बाद तक का समय होता है, इस समय में भगवान शिव और शनि देव की विशेष पूजा करें।
  • इस समय शिवलिंग पर जल और दूध चढ़ाएं और भगवान शिव का ध्यान करें।
  • व्रत का समापन रात्रि में भगवान शिव की आरती और प्रसाद वितरण के बाद करें।
  • ब्राह्मणों को भोजन कराएं और उन्हें दान-दक्षिणा दें।
  • रात को हल्का भोजन करके व्रत का पारण करें।

क्या है शनि प्रदोष व्रत कथा?

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार एक निर्धन ब्राह्मण अपनी पत्नी और पुत्र के साथ रहता था। उनका जीवन बहुत ही कठिनाई और गरीबी में बीत रहा था। एक दिन ब्राह्मण को अपने पुत्र के लिए कुछ धन प्राप्त करने की चिंता हुई। उसने घर छोड़कर तीर्थ यात्रा करने का निर्णय लिया और भगवान शिव की आराधना में लग गया। कई वर्षों तक ब्राह्मण ने कठोर तपस्या की, लेकिन उसे कोई विशेष लाभ नहीं मिला। एक दिन भगवान शिव ने उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर उसे दर्शन दिए और वरदान मांगने को कहा। ब्राह्मण ने भगवान शिव से धन और सुख-समृद्धि का वरदान मांगा। भगवान शिव ने उसे बताया कि उसकी किस्मत में बहुत अधिक धन नहीं लिखा है, लेकिन यदि वह शनि प्रदोष व्रत का पालन करेगा- तो उसकी सभी इच्छाएं पूरी होंगी। यह भी पढ़ें: हिमाचल में 6 जिले अलर्ट पर: लैंडस्लाइड,फ़्लैश फ़्लड और जरूरत से ज्यादा होगी बारिश! भगवान शिव के निर्देश के अनुसार, ब्राह्मण ने शनि प्रदोष व्रत का पालन करना शुरू कर दिया। कुछ समय बाद शनि देव ने उसकी तपस्या और व्रत से प्रसन्न होकर उसे वरदान दिया। शनि देव ने ब्राह्मण को उसकी गरीबी से मुक्ति दिलाई और उसे समृद्धि और सुख का आशीर्वाद दिया। इस व्रत के प्रभाव से ब्राह्मण का जीवन पूरी तरह से बदल गया। उसके घर में सुख-समृद्धि और धन-धान्य की भरमार हो गई, और उसका परिवार आनंदपूर्वक जीवन व्यतीत करने लगा। इस प्रकार शनि प्रदोष व्रत के पालन से ब्राह्मण को उसकी सभी कठिनाइयों से मुक्ति मिली और भगवान शिव और शनि देव की कृपा प्राप्त हुई।

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