शिमला। हिमाचल प्रदेश के बाजारों में त्योहारों की अलग ही धूम दिखाई दे रही हैं। पहले जहां नवरात्रि और दशहरा को लेकर मार्केट में लोगों की चहल-पहल थी। वहीं, अब करवा चौथ, धनतेरस और दिवाली को लेकर मार्केट में लोगों की काफी भीड़ है।
बाजार में दुकानें रंग-बिरंगी चूड़ियों, साज-श्रृंगार के सामान और रंगीन लाइटों से भरी पड़ी हैं। करवा चौथ को कुछ ही दिन बाकी हैं- ऐसे में महिलाएं काफी उत्साहित हैं। करवा चौथ के पर्व के लिए महिलाएं बाजारों से कपड़ों, गहनों और श्रृंगार के सामान की खूब खरीददारी कर रही हैं। इतना ही नहीं सूबे के ब्यूटी पार्लर्स में करवा चौथ के दिन सजने-संवरने के लिए महिलाओं ने एडवांस बुकिंग कर रखी है।
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क्या होता है करवाचौथ?
करवा चौथ का व्रत काफी कठिन होता है। महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और खुशाली के लिए ये व्रत रखती हैं। जबिक, कई कुवारीं कन्याएं भी इस व्रत को गणेश भगवान के लिए रखती हैं। इस व्रत को करने से उनके बीच का प्रेम और आपसी विश्वास और मजबूत होता है। महिलाएं दिनभर भूखे-प्यासे रह कर ये व्रत रखती हैं और फिर शाम को चांद को अर्घ्य देने के बाद इस व्रत को खोलती हैं।
कब है करवा चौथ?
इस साल करवा चौथ 20 अक्टूबर को मनाया जाएगा। दरअसल, हर साल करवा चौथ कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। इस साल कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी 20 अक्टूबर को सुबह 6 बजकर 45 मिनट पर शुरू होगी और 21 अक्टूबर को सुबह 4 बजकर 16 मिनट पर खत्म होगी।
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सरगी खाने का समय
करवा चौथ का व्रत शुरू करने से पहले सरगी खाने की परंपरा है। करवा चौथ के व्रत वाले दिन सूर्योदय से करीब दो घंटे पहले तक महिलाएं सरगी खा सकती हैं। इस साल सरगी खाने का ब्रह्म मुहूर्त 4 बजकर 25 मिनट तक होगा।
व्रत खोलने का समय
करवा चौथ के दिन चंद्रोदय के बाद महिलाएं अपने व्रत खोल सकती हैं। इस दिन-
- पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 5 बजकर 46 मिनट से लेकर 7 बजकर दो मिनट तक रहेगा।
- जबकि, शाम को 7 बजकर 54 मिनट पर चंद्रोदय हो जाएगा।
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करवा चौथ के नियम-
करवा चौथ वाले दिन महिलाओं को कई नियमों का पालन करना पड़ता है। जैसे कि-
- सरगी खाना
- सूर्योदय से लेकर चंद्र दर्शन तक निर्जल व्रत
- श्रृंगार और पूजा
- चंद्रमा की पूजा
- सात फेरों के मंत्र
- कथा सुनना
करवा चौथ से जुड़ी कथा-
करवाचौथ से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं हैं, लेकिन उनमें से एक प्रमुख और प्रसिद्ध कथा वीरवती की है। इस कथा के अनुसार, वीरवती नाम की एक सुंदर और धर्मनिष्ठ महिला थी, जो सात भाइयों की इकलौती बहन थी। शादीह के बाद वीरवती ने अपने पहले करवाचौथ पर अपने पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखा।
वीरवती ने सूर्योदय से पहले सरगी खाकर व्रत शुरू किया और पूरे दिन बिना भोजन और पानी के रहीं। जैसे-जैसे दिन बीतने लगा, वीरवती को भूख और प्यास से बहुत अधिक कष्ट होने लगा। अपनी बहन की यह स्थिति देखकर, उसके सातों भाई चिंतित हो गए और अपनी बहन को व्रत तुड़वाने की योजना बनाई।
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भाइयों ने एक पेड़ पर जाकर आग जला दी और छल से एक दर्पण का उपयोग करके वीरवती को यह विश्वास दिलाया कि चंद्रमा निकल चुका है। भाइयों की बात मानकर वीरवती ने चंद्रमा को देखकर व्रत तोड़ दिया और भोजन कर लिया। जैसे ही उसने व्रत तोड़ा-वैसे ही उसे यह सूचना मिली कि उसके पति की अचानक गंभीर रूप से बीमार होने से मृत्यु हो गई है। यह सुनकर वीरवती को बहुत दुख हुआ।
वीरवती को पश्चाताप हुआ कि उसने बिना चंद्रमा को ठीक से देखे व्रत तोड़ा था। अपने पति को पुनः जीवित करने के लिए उसने पूरे वर्ष कठिन तप किया और करवाचौथ का व्रत विधिपूर्वक किया। उसकी भक्ति और तप से प्रसन्न होकर, यमराज ने उसके पति को जीवनदान दिया और इस तरह से वीरवती को अपने पति का जीवन वापस मिला।