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September 16, 2024

पितृपक्ष हुए शुरू, जानिए क्यों करना चाहिए श्राद्ध, क्या है इसका महत्व

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शिमला। सनातन धर्म में मान्यता है कि पितृपक्ष में श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करने से पितर प्रसन्न होते हैं। साथ ही पितरों का आशीर्वाद मिलता है- जो कि जीवन में चल रहे पारिवारिक कलह दूर करता है। आज से पितृपक्ष शुरू हो गए हैं- जो कि 2 अक्टूबर तक चलेंगे। कहा जाता है पितृपक्ष में पितर यमलोक से धरती लोक पर आते हैं और अपने वंशजों को हमेशा खुश रहने का आशीर्वाद देते हैं। पितृ पक्ष हर साल भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि से लेकर अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि तक पितृपक्ष चलते हैं। जिन लोगों को अपने पूर्वज की मौत का निर्धारित समय ना पता हो वे पितृ अमावस्या पर श्राद्ध कर उनका आशीर्वाद ग्रहण कर सकते हैं। आज हम आपको बताएंगे कि आखिर श्राद्ध करने का महत्व क्या है। यह भी पढ़ें: हिमाचल : शेयर मार्केट से मोटा ब्याज कमाने चला था युवक, लगा 1.25 करोड़ का चूना

क्यों करना चाहिए श्राद्ध?

श्राद्ध एक महत्वपूर्ण हिन्दू धार्मिक अनुष्ठान है, जिसका उद्देश्य पितरों (पूर्वजों) की आत्मा की शांति और तृप्ति करना है। यह अनुष्ठान पितृ पक्ष के दौरान किया जाता है, जो भाद्रपद माह की पूर्णिमा से अश्विन मास की अमावस्या तक चलता है। श्राद्ध करने के पीछे कई धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक कारण हैं। यहाँ यह बताया गया है कि श्राद्ध क्यों करना चाहिए:
  • पितरों की आत्मा की शांति

श्राद्ध करने का मुख्य उद्देश्य अपने पूर्वजों की आत्मा को तृप्त करना और उनकी शांति के लिए प्रार्थना करना है। माना जाता है कि पितर अपनी संतानों की ओर से श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान प्राप्त करके संतुष्ट होते हैं और उन्हें आशीर्वाद देते हैं। अगर किसी व्यक्ति के पूर्वज की आत्मा तृप्त नहीं होती, तो वह आत्मा भटकती रहती है, जिसे श्राद्ध और तर्पण द्वारा शांति दी जाती है। यह भी पढ़ें: हिमाचल में दिन-दिहाड़े पांच लोगों ने युवक को घेरा, कई बार किए वार
  • कर्म का ऋण चुकाना (पितृ ऋण)

हिन्दू धर्म में कहा गया है कि हर व्यक्ति पर तीन ऋण होते हैं— देव ऋण, ऋषि ऋण, और पितृ ऋण। पितरों की सेवा और श्राद्ध कर्म करके पितृ ऋण का निवारण होता है। इस कर्मकांड से यह माना जाता है कि व्यक्ति अपने पूर्वजों के प्रति अपने उत्तरदायित्व को निभाता है और पितरों को सुख की अवस्था में भेजने में मदद करता है।
  • वंश और परिवार की समृद्धि

ऐसी मान्यता है कि श्राद्ध करने से पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है, जिससे परिवार की सुख-शांति, समृद्धि, और उन्नति होती है। जो व्यक्ति अपने पितरों को याद करके उनकी तृप्ति के लिए श्राद्ध करता है, उसे अपने जीवन में अनेक सुख और समृद्धि प्राप्त होती है। इससे वंश की उन्नति होती है और परिवार में खुशहाली बनी रहती है। यह भी पढ़ें: हिमाचल : बहन की आखों के सामने ब्यास में डूब गया था भाई, अब मिली देह
  • आध्यात्मिक उत्थान और पूर्वजों के प्रति सम्मान

श्राद्ध करने से व्यक्ति को अपने पूर्वजों के प्रति सम्मान और कृतज्ञता व्यक्त करने का अवसर मिलता है। यह एक प्रकार का आध्यात्मिक अनुष्ठान है, जो पितरों के प्रति आभार प्रकट करने का माध्यम है। यह व्यक्ति को उसकी जड़ों से जोड़ता है और उसे यह याद दिलाता है कि वह एक वंश का हिस्सा है और उसके पूर्वजों ने उसे यह जीवन प्रदान किया है।
  • भविष्य में बाधाओं से मुक्ति

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, अगर पितर संतुष्ट नहीं होते, तो उनके वंशजों को जीवन में बाधाओं और कष्टों का सामना करना पड़ सकता है। पितृ दोष (पितरों की नाराजगी) के कारण परिवार में आर्थिक समस्याएं, रोग, संतान सुख की कमी और अन्य कष्ट आ सकते हैं। श्राद्ध और तर्पण करने से पितृ दोष का निवारण होता है और व्यक्ति अपने जीवन में सुख-शांति और समस्याओं से मुक्ति प्राप्त करता है।
  • धर्म और परंपराओं का पालन

हिन्दू धर्म में श्राद्ध कर्म को एक धार्मिक और सांस्कृतिक परंपरा माना गया है। यह एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है, जो पीढ़ियों से चला आ रहा है। इस परंपरा को निभाना न केवल धार्मिक कर्तव्य का पालन करना है, बल्कि परिवार और समाज में स्थिरता और सामंजस्य बनाए रखने का भी प्रतीक है। यह भी पढ़ें: इंडेन गैस कंंपनी में धांधली! बिना गैस सिलेंडर मिले डिलिवरी का आया मैसेज

श्राद्ध पक्ष 2024 की तिथियां:

  • पूर्णिमा श्राद्ध: 17 सितंबर 2024 (मंगलवार)
  • प्रतिपदा श्राद्ध: 18 सितंबर 2024 (बुधवार)
  • द्वितीया श्राद्ध: 19 सितंबर 2024 (गुरुवार)
  • तृतीया श्राद्ध: 20 सितंबर 2024 (शुक्रवार)
  • चतुर्थी श्राद्ध: 21 सितंबर 2024 (शनिवार)
  • पंचमी श्राद्ध: 22 सितंबर 2024 (रविवार)
  • षष्ठी श्राद्ध: 23 सितंबर 2024 (सोमवार)
  • सप्तमी श्राद्ध: 24 सितंबर 2024 (मंगलवार)
  • अष्टमी श्राद्ध: 25 सितंबर 2024 (बुधवार)
  • नवमी श्राद्ध: 26 सितंबर 2024 (गुरुवार)
  • दशमी श्राद्ध: 27 सितंबर 2024 (शुक्रवार)
  • एकादशी श्राद्ध: 28 सितंबर 2024 (शनिवार)
  • द्वादशी श्राद्ध: 29 सितंबर 2024 (रविवार)
  • त्रयोदशी श्राद्ध: 30 सितंबर 2024 (सोमवार)
  • चतुर्दशी श्राद्ध: 1 अक्टूबर 2024 (मंगलवार)
  • अमावस्या श्राद्ध (महालय): 2 अक्टूबर 2024 (बुधवार)

क्या होता है पितृपक्ष?

पितृपक्ष को श्राद्ध पक्ष के नाम से भी जाना जाता है। इस समय में अपने पूर्वजों का श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान किया जाता है ताकि उनकी आत्मा को शांति मिले और उनके आशीर्वाद से परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहे। यह भी पढ़ें: सेब मार्केट धड़ाम- 300 से 400 रुपये कम हुआ पेटी का दाम, बागवान हताश किसे करवाना चाहिए भोजन? पितृपक्ष के दौरान भोजन कराने का विशेष महत्व है और इसे पितरों की आत्मा की शांति और तृप्ति के लिए किया जाता है। भोजन कराने से पूर्वजों का आशीर्वाद मिलता है। पितृपक्ष के दौरान ब्राह्मणों, गरीबों, जरूरतमंदों, वृद्धाश्रम, अनाथालय, परिवार के सदस्य, अपने रिश्तेदारों, गाय, कुत्ते, कौवे और अन्य जीवों को भोजन कराना चाहिए।

किन चीजों से खुश होते हैं पितृ?

पितृपक्ष में श्राद्ध कर्म करते समय पूजन सामग्री में-
  • रोली
  • सिंदूर
  • छोटी सुपारी
  • रक्षा सूत्र
  • चावल
  • जनेऊ
  • कपूर
  • हल्दी
  • देसी घी
  • शहद
  • काले तिल
  • तुलसी के पत्ते
  • जौ
  • हवन सामग्री
  • मिट्टी का दिया
  • अगरबत्ती
  • दही
  • कपास
  • गंगाजल
  • खजूर आदि चीजें जूरूर शामिल करनी चाहिए। इन चीजों से पितृ खुश होते हैं।

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क्या है पितृपक्ष का महत्व?

पितृपक्ष का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है। ऐसा माना जाता है कि इस समय पितरों की आत्माएं पृथ्वी पर आती हैं और अपने परिवार से तर्पण और श्राद्ध की प्रतीक्षा करती हैं। इस अवधि में पितरों को सम्मानपूर्वक याद कर तर्पण किया जाता है ताकि वे संतुष्ट होकर आशीर्वाद दें। अगर किसी ने अपने पूर्वजों का सम्मान नहीं किया, तो उसे पितृदोष की समस्या हो सकती है, जिससे जीवन में परेशानियां आ सकती हैं।

पितृपक्ष पर क्या करें?

  • श्राद्ध: श्राद्ध का अर्थ है श्रद्धा से पूर्वजों का स्मरण करना। इसमें पंडित द्वारा पितरों के लिए विशेष पूजा और दान किया जाता है।
  • तर्पण: पितरों को जल अर्पित कर उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की जाती है।
  • पिंडदान: इसे खासतौर पर पिंड के रूप में अन्न (चावल के पिंड) और जल अर्पित करने की प्रक्रिया कहा जाता है।
  • दान: इस दौरान गरीबों और ब्राह्मणों को भोजन, वस्त्र और दक्षिणा दान देना शुभ माना जाता है।

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